रंग लाया इस्तीफा देने से इनकार करना और संयुक्त रूप से संघर्ष करने का फैसला लेना : कमजोर दिल वाले पत्रकार के हाथ लगा घाटा : सहारा के टीवी चैनलों से अब तक की सबसे बड़ी छंटनी शुरू किए जाने की कवायद पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। सूत्रों के अनुसार बीते दिनों नोएडा में मीटिंग बुलाकर 50 से ज्यादा मीडियाकर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद इनमें से ज्यादातर पत्रकारों ने बगावती तेवर अपना लिए। सभी एकजुट हो गए। पहले तो इन लोगों ने नोएडा की मीटिंग में इस्तीफे के पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर किया। बाद में ये सभी संयुक्त रूप से लखनऊ पहुंच गए। वहां स्थित सहारा मुख्यालय में बैठे निदेशकों तक अपनी बात पहुंचाई।
सहारा के कर्ताधर्ताओं ने पत्रकारों की बात सुनी। बताया जाता है कि निदेशकों ने यह मसला सहाराश्री सुब्रत राय सहारा के पास भी पहुंचाया। आखिरकार प्रबंधन ने पत्रकारों के हित में फैसला किया। छंटनी के शिकार पत्रकारों को फौरी राहत देते हुए काम करने के लिए कह दिया। इससे बेरोजगारी के मुहाने पर पहुंच चुके कई दर्जन पत्रकारों के चेहरे पर रौनक लौट आई। सूत्रों का कहना है कि शीर्ष प्रबंधन कई दर्जन पत्रकारों के संयुक्त विरोध और आंदोलन से समूह की छवि खराब होने की आशंका से दबाव में आ गया। शीर्ष प्रबंधन ने पूरे मामले को फिलहाल टालने में ही अपनी भलाई समझी।
उधर, जिन कमजोर हृदय पत्रकारों ने नोएडा की मीटिंग में तीन महीने की सेलरी के लालच में इस्तीफे के पत्र पर दस्तखत कर दिए थे, उनके इस्तीफे मंजूर कर लिए गए हैं। उन्हें किसी तरह की कोई राहत नहीं मिल सकी है। सूत्रों का कहना है कि प्रबंधन की कोशिश यही थी कि नोएडा की बैठक में ही सभी से इस्तीफे ले लिए जाएं लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद ज्यादातर पत्रकारों ने इस्तीफा नहीं दिया। इसके बाद प्रबंधन के लोगों ने इन्हें डराया-धमकाया तो भी ये पत्रकार नहीं माने। मीटिंग से बाहर आने के बाद सबने संगठित तौर पर अपनी लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। इस लड़ाई के पहले चरण में अपनी बात सहारा के निदेशकों तक पहुंचाने का निर्णय लिया गया। संयोग ये रहा कि पत्रकारों को पहले ही कदम पर सफलता मिल गई।
पर सूत्र कहते हैं कि मुश्कलें अभी खत्म नहीं हुई हैं। पत्रकारों के संगठित हो जाने को सहारा का शीर्ष प्रबंधन नोएडा आफिस के वरिष्ठ लोगों का फेल्योर मान रहा है। कहा जा रहा है कि प्रबंधन भी इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला है। अब बजाय इकट्ठे लोगों को निकालने के, ‘धीरे-धीरे और एक-एक कर निपटाने’ की रणनीति अपनाई जाएगी ताकि कोई संयुक्त विरोध या आंदोलन न हो पाए। संभव यह भी है कि जिन्हें हटाया जाना है, उन सभी का पहले चरण में तबादला कर दिया जाए और कुछ महीनों बाद दूसरे चरण में इस्तीफा ले लिया जाए। ‘सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत की तर्ज पर प्रबंधन चाहता है कि छंटनी की लिस्ट में शामिल मीडियाकर्मियों को नौकरी से निकाल भी दिया जाए और कहीं कोई हो-हल्ला भी न हो।
उधर, राहत पाने से खुश सहारा के कई पत्रकारों ने भड़ास4मीडिया को फोन कर धन्यवाद दिया और कहा कि अगर उनके साथ हुए अन्याय को प्रमुखता से न प्रकाशित किया गया होता तो शायद पत्रकार इतनी जल्दी एकजुट न होते, प्रबंधन से लड़ाई लड़ने का मूड न बना पाते और प्रबंधन भी छवि खराब होने के डर से सभी को काम पर न लौटाता।