काम पर लिए गए लोगों की नौकरी नहीं बचेगी : लड़ाई लड़ने को लेकर पीड़ितों के संगठन में भी दो-राय : सहारा के टीवी न्यूज चैनलों के जिन 50 से ज्यादा मीडियाकर्मियों को दुबारा काम पर जाने के लिए कह दिया गया था, उनकी नौकरी जाएगी। प्रबंधन ने एक उच्च स्तरीय बैठक कर इनके भाग्य का फैसला कर दिया है। किसी भी हालत में छंटनी की आंधी न रोकने को कहा गया है, बस, स्पीड धीमी रखने के निर्देश दिए गए हैं। रणनीति भी बदल दी गई है। बजाय इकट्ठे बुलाने के, दो-दो, चार-चार के समूह में छंटनी के लिए लोगों को बुलाया जाएगा। उनके सामने कई तरह के आप्शन रखे जाएंगे। फिर भी अगर इस्तीफा नहीं दिया तो बहुत दूर का ट्रांसफर झेलना पड़ेगा। इस फंडे पर काम भी शुरू हो चुका है। बनारस में सहारा समय के ब्यूरो में काम करने वाले रत्नेश राय का तबादला श्रीनगर कर दिया गया है। बनारस ब्यूरो के ही निमेष राय को गुवाहाटी जाने के आदेश मिले हैं। इलाहाबाद के सुशील तिवारी को जम्मू जाने को कहा गया है। आगरा के विनोद चौधरी को नोएडा एचआर को रिपोर्ट करने को कहा गया है।
इतनी दूर ट्रांसफर होने से कई लोग खुद ब खुद इस्तीफे के प्रस्ताव को स्वीकार करने लगे हैं। सूत्रों के अनुसार कानपुर से कैमरामैन पंकज निगम ने इस्तीफा दे दिया है। बनारस से कैमरामैन आलोक ने इस्तीफा दिया है। बनारस से ही अनिल मिश्रा के इस्तीफे की सूचना है। आगरा से कैमरामैन बृज के भी इस्तीफा देने की सूचना है। पंकज और आलोक के बारे में बताया जाता है कि इनकी घर की स्थितियां ऐसी नहीं हैं कि वे दूर के तबादले को झेल सकें। जो लोग इस्तीफा दे रहे हैं, प्रबंधन उन्हें तीन महीने का अग्रिम वेतन दे रहा है। कई और भी लोगों के दबाव में आकर इस्तीफा देने की सूचना है। प्रबंधन ने सभी ब्यूरो आफिसों के प्रभारियों को आदेश दिया है कि वे अब कम किराए वाले जगहों पर आफिस ले जाएं। ब्यूरो की सभी गाड़ियों को हटा दिया गया है। सिर्फ हर जगह एक-एक गाड़ियां छोड़ी गई हैं।
सूत्रों का कहना है कि जब छंटनी के शिकार सहाराकर्मी समूह में सहारा के लखनऊ स्थित मुख्यालय पहुंचे तो वहां प्रबंधन ने इनसे तात्कालिक निजात पाने के लिए काम पर जाने को कह दिया लेकिन उधर ब्यूरो प्रभारियों को एचआर के जरिए फोन कराके इन लोगों से कहलवा दिया गया कि फिलहाल छुट्टी पर चले जाएं। मैनेजमेंट ने फूट डालो वाली रणनीति पर काम शुरू कर लोगों को इस्तीफे के लिए राजी करना शुरू कर दिया है। उधर, सहारा के पीड़ितों ने जो संघ बनाया था, उसको भी लेकर आपस में मतभेद पैदा हो गए हैं। कई लोगों का मानना है कि अगर वे इस्तीफा नहीं देंगे तो तीन महीने के अग्रिम वेतन से हाथ धोना पड़ेगा। कुछ लोगों का कहना है कि जब प्रबंधन इस्तीफा लेने पर तुल गया है तो विरोध करके इससे नहीं जीता जा सकता। दूसरे, विरोध करने से पत्रकारिता का करियर भी चौपट होने का खतरा है। उधर, कुछ लोग विरोध करने का मूड बनाए हुए हैं और सभी पीड़ितों से संपर्क कर एकजुट होकर लड़ाई लड़ने का आह्वान कर रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि सहारा प्रबंधन खर्च बचाने के लिए हर स्तर पर कवायद कर रहा है। इसके पीछे दो तरह की बातें कही जा रही हैं। या तो सहारा समूह किसी आर्थिक संकट में है, जिससे निजात पाने के लिए वह खर्चे कम कर रहा है या फिर सहारा के मीडिया वेंचर को धीरे-धीरे कांट्रैक्ट पर देने की तैयारी चल रही है। जहां कहीं भी सहारा ने अपने टीवी चैनल की फ्रेंचाइजी दी, वहां पहले छंटनी कर स्टाफ की संख्या सीमित की ताकि ठेके पर लेने वाला बंद अपने मन मुताबिक नई भर्तियां कर सके। सहारा के न्यूज चैनलों में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। इनमें से करीब 300 लोगों को हटाने का अभियान चल रहा है। सहारा के वित्तीय संकट के बारे में कहा जा रहा है कि पैरा बंकिंग से आ रहे पैसे को रिजर्व बैंक के नए निर्देशों के बाद अन्य प्रोजेक्ट्स में नहीं लगाया जा सकता। इस कारण नगदी की समस्या आन खड़ी हुई है। इससे निपटने के लिए कम से कम खर्च में अन्य प्रोजेक्ट चलाने की रणनीति बनाई गई है। कभी सहारा की नौकरी को सरकारी नौकरी कहा जाता था, पर आज तस्वीर पलट चुकी है।