सहारा के न्यूज चैनलों से सैकड़ों लोगों को हटाए जाने की शुरुआत : नोएडा में आज हुई बैठक में 50 से ज्यादा लोगों पर गिरी गाज : मीडियाकर्मियों के लिए बेहद बुरी खबर। मंदी और छंटनी के कारण पहले ही बेरोजागर हो चुके हजारों मीडियाकर्मियों की भीड़ में करीब 150 से लेकर 350 नए मीडियाकर्मी शामिल होने जा रहे हैं। ये सभी सहारा समूह के टीवी न्यूज चैनलों से हैं। इनमें पत्रकार, कैमरामैन, टेक्नीशियन सभी तरह के मीडियाकर्मी शामिल हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सहारा का प्रबंधन अपने टीवी न्यूज चैनलों के लिए आठ प्रदेशों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, एनसीआर और मुंबई) में कार्यरत के करीब 150 से लेकर 350 पत्रकारों / कैमरामैनों / टेक्नीशियनों आदि को हटाने की तैयारी कर चुका है।
इसी उद्देश्य से आज सहारा के नोएडा स्थित मुख्यालय में कई राज्यों के कर्मियों की बैठक बुलाई गई थी। भड़ास4मीडिया तक पहुंची जानकारी के अनुसार प्रबंधन ने नोएडा की आज की बैठक में बुलाए गए सभी मीडियाकर्मियों के सामने कई तरह के प्रस्ताव रखे हैं। पहला प्रस्ताव तो यही है कि इस्तीफा देकर तीन महीने की अग्रिम सेलरी ले लीजिए। दूसरा प्रस्ताव है कि स्टाफर की बजाय स्ट्रिंगर बन जाइए और प्रति खबर के आधार पर पेमेंट लीजिए। तीसरा प्रस्ताव है कि दो साल के लिए एलडब्लूपी (लीव विदाउट पे) ले लीजिए।
प्रबंधन ने साफ कर दिया है कि अब वे इस भारी भरकम खर्च के साथ चैनल चलाने की स्थिति में नहीं हैं। लिहाजा टीम का पुनर्गठन करना पड़ेगा। सूत्रों का कहना है कि मीटिंग में आए कुछ लोगों ने इस्तीफे सौंप दिए हैं और कई लोगों ने विचार करने के लिए वक्त मांगा है। कुल मिलाकर आज 50 से ज्यादा लोगों पर गाज गिराई गई है। यह क्रम जारी रहने के आसार हैं। इस बैठक को लेकर पूरे सहारा ग्रुप के टीवी कर्मियों में तरह-तरह की खबरें और आशंकाएं दो दिन पहले से ही फैली हुई हुई थी। बताया जाता है कि यही प्रक्रिया अन्य राज्यों के विभिन्न सेंटरों / ब्यूरो में काम करने वाले कर्मियों के साथ भी अपनाई जाएगी। कोशिश ये है कि इतनी बड़ी छंटनी को इकट्ठे न अंजाम दिया जाए ताकि किसी तरह का कोई बवाल न हो सके। इसीलिए बैठक अलग-अलग बुलाई जा रही है। 20 अगस्त को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के सभी फील्ड रिपोर्टरों की बैठक बुलाई गई है।
सहारा प्रबंधन से जुडे सूत्रों का कहना है कि सहारा अब दूसरे न्यूज चैनलों के माडल को अपनाना चाह रहा है। जिस तरह दूसरे न्यूज चैनल सिर्फ प्रदेशों की राजधानियों में स्टाफर रखते हैं और बाकी जगहों पर स्ट्रिंगर के जरिए काम चलाते हैं, उसी तरह सहारा भी कम से कम खर्च में चैनल चलाने की कवायद के तहत अपने ज्यादातर स्टाफरों को हटाने की योजना बना चुका है। वर्षों से जमे-जमाए स्टाफर खुद का यह अंजाम देख काफी व्यथित हैं। भड़ास4मीडिया के पास सहारा समय से जुड़े करीब दो दर्जन से ज्यादा टीवी जर्नलिस्टों के फोन आए। सबकी चिंता एक ही है कि मंदी की इस महामारी के दौर में जब हर चैनल छंटनी कर जाब के लिए नो इंट्री का बोर्ड टांग चुका है, सहारा से बेकार हुए लोगों को कहां नौकरी मिलेगी। सूत्रों का कहना है कि यूपी में बरेली का ब्यूरो प्रबंधन पहले ही बंद कर चुका था। अब कानपुर, आगरा, मेरठ, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर के ब्यूरो भी बंद कर दिए जाएंगे। यहां के ब्यूरो चीफों की नौकरी सुरक्षित मानी जा रही है लेकिन इन लोगों को भी ब्यूरो चीफ की बजाय फील्ड रिपोर्टर के रूप में काम करने को कहा गया है। मतलब, एक तरह से डिमोशन झेलना पड़ेगा। खबरें भेजने के लिए अब एफटीपी का सहारा लिया जाएगा। इसी तरह उत्तराखंड में सिर्फ देहरादून में ब्यूरो काम करेगा। बाकी जगहों पर स्ट्रिंगर काम करेंगे। भड़ास4मीडिया ने आज हुई बैठक के बारे में जानकारी करने के लिए सहारा के मीडिया प्रोजेक्ट के हेड सुमित रॉय को फोन किया पर उन्होंने फोन नहीं उठाया।
ज्ञात हो कि सहारा के न्यूज चैनलों में पहले भी कई छंटनी के कई दौर चल चुके हैं। एक एक कर ढेर सारे लोगों को हटाया जा चुका है। एक दौर था जब सहारा से नामवर सिंह और मंगलेश डबराल जैसे दिग्गज हटाए गए थे तो पूरे देश में विरोध के स्वर उठे थे। महाश्वेता देवी जैसी साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता ने भी सहाराश्री को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया था। पर अब जब आम मीडियाकर्मी सहारा से हटाया जा रहा है तो कहीं से कोई विरोध का स्वर नहीं उठ रहा है।
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