श्री ऋषि नागर जी, आप तो ‘बहुत अच्छे’ इंसान हैं। आपको अखबारी दुनिया में किसने लाया, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि अखबार से पहले आप करते क्या थे। जहां तक मुझे याद है, आप एक छोटे स्कूल में पढ़ाते थे जहां पढने वाले बच्चों की संख्या बेहद कम थी। अपनी करियर की बेहतरी के लिए आप जुलाई, 1999 में जागरण में एक संवाद सहयोगी बनने के लिए आए। अक्टूबर 1999 में जागरण जालंधर से शुरू होने वाला था। राकेश शांतिदूत ने आपकी काफी अच्छी मार्केंटिंग की थी। भोलेनाथ श्री निशिकांत ठाकुर ने आपको सिटी इंचार्ज बना दिया।
आप हमेशा यह कह कर भोलेनाथ को भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में करते थे कि आपकी पत्नी व बेटे को केंसर है। जागरण से आपको निकाला नहीं गया बल्कि जागरण में आपको तरक्की दी गई। मुख्य संवाददाता के बाद आपको विशेष संवाददाता बनाया गया। जैसा कि अमूमन होता है, आपको विशेष संवाददाता बनना अच्छा नहीं लगा क्योंकि सिटी रिपोर्टिंग से आप उपर सोच ही नहीं रहे थे। शायद इसमें आपका कोई अपना स्वार्थ हो, यह आपका अपना मामला है। लेकिन यदि मुख्य संवाददाता से उपर सोचते होते तो अभी मीनाक्षी के टीम के सदस्य होकर चंडीगढ़ ब्यूरो देख रहे होते और ऐसी स्थिति में श्री निशिकांत आपको देवता तुल्य नजर आते।
नागर जी, किसी पर कोई आरोप लगाने से पहले यह सोचना चाहिए कि आप जो आरोप लगा रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है। इंसान पर क्रोध सवार होता है तो उसका विवेक स्वत: नष्ट हो जाता है। अपने विवेक को जगा कर अपनी अंतरआत्मा से पूछिए कि क्या श्री निशिकांत ने आपके साथ कभी भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया है? श्री नागर जी, निशिकांत जी को आपसे प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है कि वे कैसे हैं और किन लोगों को रखा है। उनके द्वारा रखे गए लोगों में कुछ में ही गधे के लक्षण मिलते हैं जो कालांतर में स्वत:अपना मार्ग चुन लेते हैं।
–संजय कुमार