टीवी को टीआरपी से बचाने की जोरदार मांग संसद में उठी है। भाजपा नेता एवं पूर्व सूचना-प्रसारण मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने देश में टीवी चैनलों के गिरते स्तर के लिए टीआरपी को जिम्मेदार ठहराते हुए इसके लिए रेगुलेटर बनाने की सरकार से मांग की। श्री प्रसाद ने सोमवार को राज्यसभा में टेलीविजन चैनलों के कार्यक्रमों में बढती अश्लीलता और फूहडता पर अल्पकालिक चर्चा की शुरुआत करते हुए यह बात कही। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से टीवी चैनलों पर ‘सच का सामना’ जैसे कार्यक्रम दिखाने पर राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया हुई है। उन्होंने कहा कि आज देश में 480 टीवी चैनल हैं और करोड़ घरों में टेलीविजन सेट हैं तथा 24 घंटे चलने वाले 45 खबरिया चैनल हैं। इस पर देश की साठ से सत्तर करोड़ जनता आज टीवी देखती है। उन्होंने कहा कि आज टेलीविजन माध्यम बहुत सशक्त है और टीवी पर होने वाली बहसों का स्तर भी बढ़ा है, टीवी के कई कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं लेकिन चैनल के लोग कहते हैं -“आज वही दिखता है जो बिकता है।”
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि टीआरपी टीवी चैनलों को नियंत्रित कर रहा है इसके पीछे एक निहित स्वार्थों का गठजोड़ काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि टेलीविजन में बहुत अच्छे पत्रकार हैं और कई विज्ञापन भी आये हैं, स्टिंग आपरेशन के जरिए सांसदों को पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में टीवी ने दिखाया और संसद में दोषी सांसदों की सदस्यता भी समाप्त कर दी, लेकिन कई बार स्टिंग आपरेशन के नाम पर फर्जी कार्यक्रम भी दिखाए गए जैसे दिल्ली सरकार की एक टीचर के मामले में। क्या उसकी भरपाई हो सकती है ? उन्होंने “गुड़िया” प्रसंग में टीवी की भूमिका की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि वह मीडिया पर सरकारी अंकुश लगाने के पक्ष में नहीं है, वह चाहते हैं कि सरकार कम से कम हस्तक्षेप करे “पर कुछ तो करना पड़ेगा।” उन्होंने कहा कि टीआरपी को नियंत्रित करने के लिए एक रेगुलेटर बनाना होगा और किसी कार्यक्रम की टीआरपी घंटे या दिन भर के लिए नहीं बल्कि महीने भर के लिए तय हो उसमें सभी तरह के लोग हों। “आखिर मीडिया की भी एक जिम्मेदारी बनती है”- उन्होंने कहा। कांग्रेस के ई. नचिप्पन ने कहा कि सभी विकसित देशों में अश्लीलता के खिलाफ कानून हैं। अमेरिका. ब्रिटेन और कनाडा उनमें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भारत में भी ऐसा कानून लाया जाना अब जरूरी हो गया है । माकपा की वृंदा करात ने मीडिया के बेलगाम वर्ग को नियंत्रित करने के लिये एक नियामक प्राधिकरण गठित किये जाने की मांग की। उन्होंने दो साल पहले सरकार द्वारा स्थापित “कमेटी आन कन्टेंट कोड” की सिफारिशों का हश्र भी जानना चाहा। उन्होंने कहा कि भारतीय विज्ञापन परिषद और प्रसारणकर्ताओं के निकाय आत्म नियमन करने में विफल रहे हैं इसलिये सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।
सपा के कमाल अख्तर ने टीवी कार्यक्रमों पर समाज के कायदे कानूनों से खिलवाड करने का आरोप लगाते हुये मांग की कि एक समिति या ऐसा सेंसर बोर्ड बनाया जाये जो इनकी प्रस्तुति पर निगरानी रखे। उन्होंने कहा कि गांव देहात में भी जब कोई नाच गाने का कार्यक्रम होता है तो उन्हें जिलाधीश से अनुमति लेनी होती है, इसके विपरीत करोडों लोगों के घर बेरोकटोक पहुंचाये जा रहे कार्यक्रमों पर कोई निगरानी है ही नहीं। अन्नाद्रमुक के डा. के मलैस्वामी ने इस बारे में प्रभावशाली कानून की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कानून बस नाम का ही है। उन्होंने मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर आत्म नियंत्रण की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने दो टूक शब्दों में यह आरोप भी लगाया कि समाज का सबसे बडा नुकसान मीडिया ने खराब कार्यक्रमों के जरिये किया है। मनोनीत सदस्य श्याम बेनेगल ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार की कोई भूमिका नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी खुद समझकर उसके अनुरूप अपनी सीमायें तय करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि टीवी एक सामाजिक माध्यम है और उसके 90 प्रतिशत दर्शक परिवार होते हैं, ऐसे में मीडिया को अपने को नियंत्रित करने के लिये एक निकाय बनाना चाहिये जिसमें समाज के हर वर्ग के व्यक्ति शामिल हों। राजद के राजनीति प्रसाद ने भी टीवी कार्यक्रमों में संयम की जरूरत को रेखांकित किया। भाजपा की माया सिंह ने कहा कि टी आर पी की होड में मीडिया ने संयम बरतना छोड दिया है और मर्यादायें भंग कर दी गईं हैं।
कांग्रेस के शांताराम एल नाइक ने कहा कि यह अजीब है कि केबल नेटवर्क वालों पर तो पाबंदी है कि वे खराब कार्यक्रम प्रसारित न करें, लेकिन कार्यक्रम निर्माताओं के लिये ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं। द्रमुक की वसंती स्टेन्ली ने सवाल उठाया कि क्या सरकार टीवी चैनलों को नियंत्रित करने के लिये कुछ कर सकती है? उन्होंने भी टीवी चैनलों द्वारा आत्मनियमन की जरूरत पर बल दिया। भाजपा के वेंकैया नायडू ने सरकार से टीवी कार्यक्रमों के जरिये परोसी जा रही हिंसा और अश्लीलता को रोकने की मांग की। उन्होंने इसके लिये भारतीय प्रेस परिषद की तर्ज पर लेकिन अधिकारों से फोन ओतप्रोत एक संस्था के गठन की मांग की। कांग्रेस के राजीव शुक्ला ने टीवी चैनलों को नियंत्रित करने के लये एक नियामक प्राधिकरण का गठन करने की मांग की। उन्होंने कहा कि न्यूज चैनलों को टीआरपी की हर हफ्ते क्यों जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि क्या हमारे देश की संस्कृति वह निजी कंपनी तय करेगी जो टीआरपी का काम करती है और जिसकी लगाम विज्ञापन कंपनियों के हाथों में हैं। राकांपा के डा. जनार्दन वाघमारे ने देश की सांस्कृतिक धरोहर बचाने के लिये सरकार से आगे आकर ठोस कदम उठाने का आह्वान किया। भाजपा के कलराज मिश्र ने टीआरपी की होड़ में लगे टी वी चैनलों पर भद्दे. वीभत्स और उत्तेजक कार्यक्रम एवं विज्ञापन दिखाने का आरोप लगाते हुए इससे निपटने के लिए एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक नीति तैयार करने की मांग की। कांग्रेस की प्रभा ठाकुर ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ संस्कृति का दमन नहीं होना चाहिए।