घपलों-घोटालों वाले राज्य झारखंड की राजधानी रांची के एक बड़े अखबार में बड़े पद पर बैठे एक पत्रकार का नाम आजकल घपले-घोटाले में खूब उछल रहा है। कहा जा रहा है कि कई जायज-नाजायज तरीकों से उन्होंने अपने संस्थान को तो कमवाया ही, खुद भी काफी कमाई की।
ऐसा सीबीआई के छापे के बाद के बाद पता चला है। सीबीआई ने पिछले दिनों रांची में करोड़ों रुपये के दवा घोटाले के संबंध में कई जगहों पर छापेमारी की तो घोटालेबाजों से इन पत्रकार महोदय के गहरे रिश्ते का राज भी खुला। घोटालेबाजों ने पत्रकार महोदय को उपकृत करने के लिए इनके बेटे को डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के नाम पर 25 लाख रुपये दे दिए। इसकी खबर रांची के कई अखबारों में प्रकाशित हुई पर पत्रकार महोदय का किसी ने नाम नहीं प्रकाशित किया। भड़ास4मीडिया के पास सिर्फ दो अखबारों की कटिंग मौजूद है, जिसमें इन पत्रकार महोदय का जिक्र है। इन दोनों कटिंग को यहां प्रकाशित किया गया है। बताया जा रहा है कि इस पत्रकार के पीछे न सिर्फ उनका संस्थान लग चुका है बल्कि सीबीआई ने भी घेरेबंदी शुरू कर दी है। वैसे, कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि पत्रकार महोदय ने कुछ भी नाजायज नहीं किया क्योंकि वे जिस संस्थान में हैं वहां मालिक तो मालिक, उनके उपाध्यक्ष टाइप के लोग भी सोने-चांदी-कोयले की खदानें अखबार के नाम पर हासिल कर उसका सफल संचालन करते-कराते हैं। ऐसे में अगर यह प्रवृत्ति नीचे तक बढ़ती जाती है तो इसके लिए दोषी सिर्फ कोई पत्रकार नहीं नहीं बल्कि वह संस्थान और उसका प्रबंधन है जो सबको लूटने-खाने की खुली छूट देता जा रहा है।
दवा घोटाले को लेकर सीबीआई द्वारा रांची में की गई छापेमारी में पत्रकार महोदय का नाम आने से रांची में हर पत्रकार एक दूसरे के कान में फुस्स-फुस्स करता-पूछता-बताता घूम रहा है लेकिन कोई आरोपी पत्रकार का नाम खुलेआम नहीं ले रहा है और न ही अखबार में छाप पा रहा है क्योंकि आखिरकार मामला तो अपने घर का ही है। अगर कोई अखबार इन आरोपी पत्रकार महोदय का नाम छाप देगा तो ये आरोपी पत्रकार महोदय उस नाम छापने वाले अखबार के किसी पत्रकार का नाम किन्हीं अन्य अनैतिक कार्य करने के आरोप में अपने यहां छाप सकते हैं। तो यह आपस में दुश्मनी न करने का अघोषित समझौता भी हो सकता है, इसलिए आरोपी पत्रकार का नाम किसी अखबार में नहीं छप रहा। सिर्फ एक पत्रकार कहकर काम चलाया जा रहा है। कल्पना कीजिए, पत्रकार की जगह अगर घोटालेबाजों से लाभ लेने वालों में किसी दूसरे शख्स का नाम होता तो मीडिया वाले उसकी किस कदर ऐसी-तैसी कर देते?
भड़ास4मीडिया को विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार घाटालेबाजों से गहरे रिश्तों के आरोपी इस पत्रकार का संस्थान भी अब उनसे निजात पाने की तैयारी में है। एक आंतरिक समिति आरोपों की जांच करने में जुटी है। उधर, इस संस्थान का शीर्ष संपादकीय नेतृत्व भी बदला है जिससे पत्रकार महोदय की दिक्कतें बढ़ी हैं। ऐसे में अगर कुछ महीनों में यह संस्थान नैतिकता की दुहाई देते हुए पत्रकार महोदय से नाता तोड़ ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं लेकिन दिक्कत यही है कि संस्थान खुद जब गलत काम करने-कराने के आरोप में आकंठ गहरे डूबा हो तो वह अपने किसी संपादक या पत्रकार को नैतिकता के नाम पर बेदखल करने की जुर्रत भला कैसे कर सकता है। खैर, इस दौर में कुछ भी संभव है।
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