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सहवाग! खेल पत्रकार भौंकने वाले प्राणी नहीं

[caption id="attachment_18092" align="alignleft" width="77"]मनीष शर्मामनीष शर्मा[/caption]एक दिन पहले राजधानी दिल्ली में महान बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने एक किताब का विमोचन किया. कार्यक्रम के होस्ट ने उनसे पूछा- जब क्रिटिक्स (आलोचक या समालोचक) आपकी आलोचना करते हैं, तो आपको कैसा लगता है. सहवाग ने कहा, “मैं मस्त हाथी की तरह चलता रहता हूं और वे जानवरों की तरह भौंकते रहते हैं. मैं बिल्कुल भी उनकी परवाह नहीं करता”. अरे ये क्या कह दिया सहवाग ने.

मनीष शर्मा

मनीष शर्मा

मनीष शर्मा

एक दिन पहले राजधानी दिल्ली में महान बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने एक किताब का विमोचन किया. कार्यक्रम के होस्ट ने उनसे पूछा- जब क्रिटिक्स (आलोचक या समालोचक) आपकी आलोचना करते हैं, तो आपको कैसा लगता है. सहवाग ने कहा, “मैं मस्त हाथी की तरह चलता रहता हूं और वे जानवरों की तरह भौंकते रहते हैं. मैं बिल्कुल भी उनकी परवाह नहीं करता”. अरे ये क्या कह दिया सहवाग ने.

सहवाग जैसा लिजेंडरी खिलाड़ी और शांत स्वभाव का व्यक्ति आखिर इन शब्दों का इस्तेमाल कैसे कर सकता है? वो भी कैमरे के सामने! जिसे पूरा देश देख रहा है!! जी हां, सहवाग ने अप्रत्यक्ष रूप से खेल पत्रकारों को कुत्ता करार दिया. क्या कोई और जानवर भी भौंकता है? मेरे खयाल से नहीं. अगर कोई और भौंकता है तो मेरे भी सीमित ज्ञान में इजाफा कर दें. इसी के साथ सहवाग ने उस शख्स को भी भौंकने वाला जंतु करार दिया, जिनकी किताब का विमोचन करने वह आए थे. आखिर ऐसे कैसे बोल सकते हैं सहवाग? निश्चित ही सहवाग ने इन शब्दों से हिंदुस्तान के उन बड़े-बड़े क्रिटिक्सों को भी भौंकने वाला जंतु करार दिया, जिन्होंने उनकी ऑटोबायोग्राफी लिखी या जो अपनी चिंतन रूपी स्याही से उन्हें या उनकी बिरादरी मसलन क्रिकेटरों पर अपनी कलम घिसते हैं या घिसते रहते हैं.

मैं भी पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर हूं और कह सकता हूं कि ज्यादातर क्रिकेटरों की सोच पत्रकारों को लेकर अजीबोगरीब होती है. शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने के बाद तो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वे डायलाग बोल देते हैं- ”मैंने पहले आपको कहीं देखा है”. वैसे कहीं न कहीं इसके लिए कुछ हद तक पत्रकार भी दोषी हैं. मुझे याद है कि जब सहवाग ने अपने रेस्त्रां का उदघाटन किया, तो खेल पत्रकारों का झुंड रेस्त्रां में टूट पड़ा. अच्छी बात है, दोस्त (?) ने बुलाया था. पर उससे भी आक्रामक अंदाज में वो उनके लिए रखे भोज पर टूटे. मानों वो सिर्फ इसी मकसद से वहां गए थे. और मुझे पूरा विश्वास है कि अगर सहवाग आज फिर से खेल पत्रकारों को आमंत्रित करते हैं, तो नजारा कुछ ऐसा ही होगा. इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वीरू ने किसे और क्यों भौंकने वाला जंतु करार दिया.

बेशक क्रिकेटरों की तरह इन पत्रकारों के लिए नाश्ता, डिनर, नींद ही ओढ़ना-बिछाना नहीं होती. पर काफी हद तक होती है. मुझे पूरा भरोसा है कि कई पत्रकार क्रिकेट ज्ञान के मामले में देश के ज्यादातर प्रथण श्रेणी क्रिकेटरों को पानी पिला सकते हैं. निश्चित ही सहवाग सहित क्रिकेटरों को पत्रकारिता व्यवसाय और पत्रकारों को गंभीरता से समझने की जरूरत है. ये भूल जाते हैं कि कैसे खुद सहवाग सहित इनकी बिरादरी के सभी सदस्य बचपन के दिनों में या शोहरत और पैसा आने से पहले कैसे इन भौंकने वाले जंतुओं के पास अपने फोटो लेकर जाते हैं. गिड़गिड़ाकर उनके बारे में लेख लिखने और फोटो छापने का अनुरोध करते हैं. सर-सर कहकर पुकारते हैं.

पर क्या मौकापरस्ती है जनाब. जब यही शोहरत की बुलंदियों पर होते हैं, तो यही ‘सर’ सहवाग को भौंकने वाले जंतु दिखाई लगने लगते हैं. बस, आपकी तारीफों में कसीदे काढ़ते रहें, तो सब ठीक, वर्ना भौंकने वाले जंतु. नहीं सहवाग नहीं, क्रिटिक्स या पत्रकार कुत्ते नहीं हैं. बहुत ही गलत बयानबाजी की है आपने और आपको इसके लिए माफी मांगनी चाहिए. ईश्वर आपको सद्धबुद्धि दे. वैसे भौंकने वाले प्राणी आपको जरूर माफ कर देंगे.

लेखक मनीष शर्मा महुआ न्यूज में स्पोर्ट्स एडिटर के पद पर कार्यरत हैं.

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0 Comments

  1. Rajen

    September 16, 2010 at 5:00 am

    Manish Ji,
    yehi darshata hai ki kya antar hai sehwag aur sachin main. Jo dusre ko insaan nahi samjta woh khud kya achha insaan hoga…Bhgwan wakai sahwag ko sadbuddhi de.

  2. mohit bakshi

    September 16, 2010 at 8:15 am

    ye najafgarh ke nawab ka badbolapan hai,isiliye to wo chah kr bhi sachin ki barabri nhi kr skte ye janab

  3. सन्नी सिंह

    September 16, 2010 at 10:02 am

    याद कीजिए एक साल पहले सहवाग ने डीडीसीए के कामकाज की आलोचना की थी, तो क्या वो भी भौंक रहे थे। गलती सहवाग की नहीं हैं, कुछ जर्नलिस्ट उसके दलाल बन गए हैं और वह उन्हीं को विद्वान मानता है। सहवाग सरीखे खिलाड़ियों को अब भौकने वाले आलोचक नहीं, बल्कि पट्टे बंधे हुए कुत्ते चाहिए, जो उनके इशारे पर ही दूसरों पर भौंकें। सहवाग बमुश्किल चार-पांच साल और खेलेंगे, उसके बाद शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास होगा। अभी जरा दौलत और शोहरत की गर्मी ज्यादा जोर मार रही है। सहवाग एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं, लेकिन एक बेवकूफ इनसान भी हैं। ये देश की विडंबना है कि ऐसे चूतिया लोग युवाओ का आदर्श बन रहे हैं।

  4. s k

    September 16, 2010 at 12:07 pm

    Manish ji ye wording kitab ke bemochan per kahe the ya phir kisi watch (timex) ghadi ke bimochan per, its clearly shows jab aadmi bada ho ja ta hai to dusere us ko chote lagne lakte hai

  5. विजय

    September 16, 2010 at 3:22 pm

    सहवाग आज अपनी औकात भूल गए हैं और वह दिन भूल गए, जब वह राहुल सांघवी सरीखे सीनियर प्लेयरों की मालिश खुलेआम किया करते थे। यही नहीं, यदि सतीश शर्मा उर्फ नीलू नहीं होते, तो सहवाग नजफगढ़ के खेतों में ही बल्ला भांज रहे होते। लेकिन कहते है ना कुत्ते को घी हजम नहीं होता है….

  6. ajay golhani

    September 16, 2010 at 3:49 pm

    सहवाग ने मुहावरे का प्रयोग किया है. इसका गलत अर्थ निकलना ठीक नहीं. उसकी बैटिंग स्टाइल बिंदास है इसीलिए इसमें बुरा लगने वाली कोई बात नहीं है.

  7. विजय

    September 17, 2010 at 2:16 pm

    क्या किसी खिलाड़ी के अच्छा खेलने से उसे कुछ भी बोलने की छूट दे देनी चाहिए। बिल्कुल, सहवाग ने मुहावरे का यूज किया है, लेकिन व्यंग्य की रूप में और इस मुहावरे का मतलब जिसे समझ नहीं आ रहा हो, वही इसके दूसरे मायने निकालने की मशक्कत करे। सहवाग ने यह बात आईसीसी वर्ल्ड कप के लिए टाइमैक्स घड़ी के लॉन्चिंग के दौरान कही थी, पुस्तक विमोचन के दौरान तो वह अपने पट्टे बंधे पत्रकारों के साथ था। भला वहां क्यों बोलता…खेल को मानव ने इसलिए ईजाद किया, ताकि उसका मानसिक और शारीरिक विकास हो सके। लेकिन लगता है सहवाग का शारीरिक विकास तो ठीक हुआ है, लेकिन मानसिक गंदगी जमी रह गई।

  8. majid azmi, mahuaa news

    September 18, 2010 at 4:05 am

    बेहद अफसोस की बात है..कि सहवाग…वो भी सहवाग !!! ने भौंकने वाला कुत्ता बोला यक़ीन से परे लगता है..लेकिन अगर सहवाग ने ऐसा कह कर अपना क़द कहीं ना कहीं ज़रुर छोटा कर लिया है..शायद लोग सही कहते हैं कि दौलत और शोहरत इंसान को अंधा बना देता है और सोचने समझने की सलाहियत खो बैठता है और सहवाग का ये बयान जीता जागता उदाहरण है..और सचिन इसी लिए महान है…

  9. k rashid

    September 21, 2010 at 4:20 pm

    manish ji………….aapko saadhuvaad sahwag se jude is prakaran ko saamne laane ke liy………darasal sahwag jitni bulandi par pahuch sakte the lagta hai pahuch gaye……isiliye patrakaro ke sarokar bhare sawal unhe bhokne ka ehsaas karate hai….

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