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दुख-दर्द

हां जिंदगी बोलो न…ये कौन सा मुकाम है

शैलेंद्र सिंह को कुछ अलग तरीके से याद किया है अगस्त्य अरुणाचल ने। शैलेंद्र की कविता की कुछ लाइनों को आगे बढ़ाते हुए अपने शब्दों के जरिए शैलेंद्र से बातें की हैं अगस्त्य अरुणाचल ने। कवि की संवेदना को कवि बनकर महसूस किया है अगस्त्य अरुणाचल ने। ब्लैक, बोल्ड, इटैलिक लाइनें शैलेंद्र की हैं और रंगीन लाइनें अगस्त्य अरुणाचल की हैं।

अगस्त्य अरुणाचल

शैलेंद्र सिंह को कुछ अलग तरीके से याद किया है अगस्त्य अरुणाचल ने। शैलेंद्र की कविता की कुछ लाइनों को आगे बढ़ाते हुए अपने शब्दों के जरिए शैलेंद्र से बातें की हैं अगस्त्य अरुणाचल ने। कवि की संवेदना को कवि बनकर महसूस किया है अगस्त्य अरुणाचल ने। ब्लैक, बोल्ड, इटैलिक लाइनें शैलेंद्र की हैं और रंगीन लाइनें अगस्त्य अरुणाचल की हैं।

जिंदगी..ये कैसा मुकाम है

ये कहां आकर तुम ठहर गई हो

क्या आगे बढ़ना सचमुच ही दुष्कर है

तो पीछे ही लौट पड़ो

क्योंकि मुझे याद है..

पिछले कुछ पलों में राहत मिली थी

हां जिंदगी.. पीछे ही लौट पड़ो

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काश कि ज़िंदगी लौट पड़ती

काश कि वक्त का पहिया पीछे चल देता

एक बारसिर्फ एक बार….

फिर तुम इस कविता को आगे बढ़ाते..

जिंदगी से कुछ और बतियाते

संजीदगी से धर्म का मर्म बताते..

इस मध्य में तो दिखती नहीं कोई मुक्ति

वो तो बुद्ध ही थे जो चुन लिए मध्यपथ

मुझसे तो कुछ भी होता नहीं वैसा

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जिंदगीनिर्दोष तो कल की तरह मैं आज भी हूं

क्यों अपना लिया इतना दर्द

हांमांपापा का उठ गया था साया..

लेकिन दीदी ने तो तुम्हें प्यार दिया था

दर्द बन गई लेखनी की स्याही

फिर – ‘जानता हूं जिंदगी‘..

तुम्हारी कविता संग्रह आई

फिर भी तुम्हें कहां था चैन

लेखनी में स्याही थी बाकी

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कुछ छूट गया है”- तुमने लिख डाली

तब जहां ने तुमको जाना 

दिल के दर्द को कुछ पहचाना

निदा फ़ाज़ली को कहना पड़ा था

इतनी कम उम्र में इतना दर्द..

हमने अपने जीवन में नहीं देखा

हां..जिंदगी को जीना तुमने सिखलाया

यारों को यारी तुमने समझाया 

अब तुम कहां चले गए हो  

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सबकी संगत छोड़ गए हो

देखो जिंदगी तुम्हें करती है याद 

दोहराती है तुम्हारी दरख्वास्त

हां जिंदगी बोलो

ये कौन सा मुकाम है

मुझे यहां से कहीं ले चलो

सिर्फ एक एहसान कर दो

मेरी संवेदना मुझे लौटा दो

एक लेखक होने की इतनी सजा है

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तुम्हारी कसम

अब कभी मैं लिखूंगा कुछ भी नहीं

मां को चिट्ठी भी नहीं

पापा को पत्र भी नहीं

दीदी को हां..हां

उसे भी नहीं

पर मेरी भावना मेरी संवेदना मुझे लौटा दो

तुम्हारी लेखनी में स्याही है बाकी

देखो .. बेटा तकता है राह तुम्हारी

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बिटिया का कुछ तो ख्याल करो

एक बार वापस लौट कर जाओ

लेकिन तुम तो कुछ सुनते ही नहीं

यार तो यार, दीदी की भी नहीं..

इतनी दूर तुम चले गए हो

दर्द का भंवर छोड़ गए हो

अब भी जिंदगी करती है याद तुम्हेंअगस्त्य अरुणाचल

हम सबका आखिरी सलाम तुम्हें।


लेखक अगस्त्य अरुणाचल टीवी जर्नलिस्ट हैं और इन दिनों इंडिया न्यूज चैनल में बतौर एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क करने के लिए आप [email protected] का सहारा ले सकते हैं.

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