: कथाकार शेखर जोशी चंद्रयान पुरस्कार से सम्मानित : कोलकाता में आयोजित एक समारोह में प्रख्यात आलोचक व जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार मिश्र ने कहा कि वर्तमान समय में साहित्य, कला व संस्कृति गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है।
इस दौर में आदमी की रचनाधर्मिता चुनौतियों के बीच खड़ी है। उन्होंने कहा कि ये निहायत ही रचना विरोधी समय है और साहित्य अभिव्यक्ति का इतना स्खलन पहले कभी नहीं हुआ था। मिश्र ने कहा कि यदि समय का चरित्र यही रहा तो फिर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आने वाले दिन में आदमी कितना आदमी रह जाएगा। देखा जाए तो आज आदमी का भी क्षरण हो रहा है और बाजारतंत्र हम पर हावी है। शिवकुमार मिश्र ने ये बातें भारतीय भाषा परिषद् सभागार में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा। इस मौके पर मानिक दफ्तरी ज्ञानविभा ट्रस्ट कि ओर से हिंदी के प्रख्यात कथाकार शेखर जोशी को चंद्रयान पुरस्कार – २०१० से नवाजा गया। संस्था के ट्रस्टी धनराज दफ्तरी ने पुरस्कार स्वरुप जोशी को ३१ हजार रुपये की राशि,शॉल व श्रीफल प्रदान किए।
शिवकुमार मिश्र ने इस मौके पर शेखर जोशी के सम्मान में कहा कि जोशी नई कहानी आन्दोलन के उन सदस्यों में से हैं, जिन्होंने नई कहानी को गाँव से जोड़ा। उन्होंने कहा कि जोशी ने औद्योगिक मजदूरों पर कहानी लिखी, जिसमे यथार्थ के सही संदर्भों को उन्होंने उभारा। यही नहीं, जोशी ने नई कहानी के तमाम दुसरे लोगों के साथ इसे व्यापक आयाम भी दिया था।
मिश्र ने कहा कि गांव को आधार बनाने के बावजूद शेखर जोशी ‘मैला आँचल’ के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की तरह आंचलिकता के शिकार नहीं बने। उन्होंने कहा कि जोशी की कहानी यथार्थ की व्याख्या करते हुए जरूरी व गैर -जरूरी के बीच के फर्क को स्पष्ट करती है। दूसरी ओर रेणु की त्रासदी यह रही कि आंचलिकता की रौ में उनसे जरूरी चीज़ें पीछे छूट गयी। मिश्र के मुताबिक ‘मैला आँचल’ में आंचलिकता के रूपवाद को मनोरंजन के रूप में पेश किया गया है। इसी संदर्भ में मिश्र ने शेखर जोशी की ‘दाज्यू’, ‘कोसी का घटवार’, ‘नौरंगी बीमार है’ आदि कई कहानियों का जिक्र करते हुए कहा कि जोशी कि कहानियों में यथार्थ का चित्रण हमें मिलता है।
इस मौके पर शेखर जोशी ने सम्मान के लिए आयोजक संस्था के प्रति आभार जताते हुए कहा -मैंने बहुत नहीं लिखा और यदि मैं सलीके से लिख पाया और आपकी नजर उस पर पड़ी है तो उसके प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ। उन्होंने कहा कि यह सम्मान उनका नहीं, बल्कि उनका उन पात्रों का है जो पाठकों के मन में रच बस गए हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रवास के दौरान वामपंथी राजनीति की तरफ उनका रुझान होने लगा। जोशी ने कहा -जो थोडा बहुत मैं सलीके से लिख पढ़ पाया उसका श्रेय इलाहाबाद के साहित्यिक माहौल को है। इस मौके पर नई पीढ़ी के लेखकों से निवेदन करते हुए जोशी ने कहा- जो हम लिखें, उसमे कुछ प्रकाश हो, हताशा न हो। उनके मुताबिक साहित्य से हमें कुछ ऐसा भी मिलना चाहिए जिससे प्रेरणा मिले।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय भाषा परिषद् के निदेशक विजय बहादुर सिंह ने लेखक को साहित्य का “डेंजर ज़ोन” करार देते हुए कहा कि वह (लेखक) हमें बताता है कि समाज कितने हद तक खतरे के निशान से ऊपर जा रहा है। उन्होंने कहा कि संकट के समय समाज में हमेशा आता रहता है। देखा जाए तो कभी-कभी वेदना भी समाज को जागृत करती है। सिंह ने कहा कि कवि व वेदना हमें बताते है कि समाज में अभी बहुत कुछ जीवित है। उनके मुताबिक बैचैनी व उकताहट से ही साहित्य बचा रहता है।
कार्यक्रम का संचालन पत्रकार प्रकाश चंडालिया ने किया। उन्होंने शेखर जोशी की कहानी “दाज्यू” का पाठ भी किया। समारोह में डा. कृष्ण बिहारी मिश्र, आलोचक व कथाकार विमल वर्मा, श्रीहर्ष, अरुण महेश्वरी, डा. अमरनाथ, आयोजक संस्था के ट्रस्ट अध्यक्ष प्रीतम दफ्तरी व नन्दलाल टांटिया आदि भी मौजूद थे। धनराज दफ्तरी ने धन्यवाद दिया।