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साहित्य

मायूसी

हरीश चंद्र बर्णवाल लघुकथा

न्यूज रूम में मायूसी छाई हुई थी। वो भी सिर्फ एक हमारे चैनल के लिए ही क्यों, बल्कि इंडस्ट्री के तमाम बाकी नये न्यूज चैनलों के लिए बुरा दौर जो चल रहा था। कोई बड़ी खबर ही नहीं आ रही थी। चूंकि टेलीविजन इंडस्ट्री के लिए न्यूज चैनल बिल्कुल नए नए थे, इसलिए झगड़ा टीआरपी का नहीं था, बल्कि अपने अस्तित्व को बनाए रखने का था। लोग न्यूज चैनल देखें, इसके लिए जरूरी था कि बड़ी घटनाएं होती रहें।

<p align="center"><img src="http://www.bhadas4media.com/images/stories/food/hb.jpg" border="1" alt="हरीश चंद्र बर्णवाल " title="हरीश चंद्र बर्णवाल " hspace="6" width="181" height="138" align="left" /><font color="#ff0000">लघुकथा</font></p><p align="justify">न्यूज रूम में मायूसी छाई हुई थी। वो भी सिर्फ एक हमारे चैनल के लिए ही क्यों, बल्कि इंडस्ट्री के तमाम बाकी नये न्यूज चैनलों के लिए बुरा दौर जो चल रहा था। कोई बड़ी खबर ही नहीं आ रही थी। चूंकि टेलीविजन इंडस्ट्री के लिए न्यूज चैनल बिल्कुल नए नए थे, इसलिए झगड़ा टीआरपी का नहीं था, बल्कि अपने अस्तित्व को बनाए रखने का था। लोग न्यूज चैनल देखें, इसके लिए जरूरी था कि बड़ी घटनाएं होती रहें। </p>

हरीश चंद्र बर्णवाल लघुकथा

न्यूज रूम में मायूसी छाई हुई थी। वो भी सिर्फ एक हमारे चैनल के लिए ही क्यों, बल्कि इंडस्ट्री के तमाम बाकी नये न्यूज चैनलों के लिए बुरा दौर जो चल रहा था। कोई बड़ी खबर ही नहीं आ रही थी। चूंकि टेलीविजन इंडस्ट्री के लिए न्यूज चैनल बिल्कुल नए नए थे, इसलिए झगड़ा टीआरपी का नहीं था, बल्कि अपने अस्तित्व को बनाए रखने का था। लोग न्यूज चैनल देखें, इसके लिए जरूरी था कि बड़ी घटनाएं होती रहें।

टेलीविजन के नये नवेले पत्रकारों में भी काम करने का जज्बा पूरे उफान पर था। पर हर रोज कहां से कोई बड़ी घटना हो, जिसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए। कोई खबर आए भी तो वो दो-तीन मिनट से ज्यादा देर टिकती ही नहीं। ऐसे में पिछले कई दिनों से न्यूजरूम में मनहूसी छाई हुई थी। 

हफ्ते भर बाद एक दिन अचानक न्यूजरूम में हलचल शुरू हो गई। एसाइनमेंट से खबर आई कि अमृतसर में आतंकवादियों ने एक प्लेन हाइजैक कर लिया है। फिर क्या था। नये-नये टेलीविजन न्यूज चैनल के सारे लखटकिया पत्रकार (हजारोंटकिया पत्रकार भी शामिल हैं, लेकिन अखबार के पत्रकारों के सामने खुद को लखटकिया ही मानते थे) इस खबर पर टूट पड़े। उन्हें ये पता था कि इस खबर में काफी दम है। देश के एलिट क्लास के लिए ये एक बहुत बड़ी खबर है। दरअसल इससे पहले आईसी 814 विमान के अपहरण के दौरान टेलीविजन न्यूज चैनलों की लोकप्रियता में भारी इजाफा हुआ था। तमाम न्यूज चैनलों की टीआरपी भी एटरटेनमेंट चैनलों के मुकाबले काफी बढ़ी थी। ऐसे में सारे पत्रकार युद्धस्तर पर इस खबर पर पिल पड़े।

कोई ब्रेकिंग न्यूज लिखने में लगा था। तो कोई एंकर को घटना की जानकारी देने में। कोई प्लेन हाइजैक की भयावहता को अपनी स्क्रिप्ट की धार में पिरो रहा था, तो कोई इस घटना के बारे में तफ्सील से पता करने में। जूनियर पत्रकारों में कोई अमृतसर का फुटेज निकाल रहा था तो कोई आईसी 814 विमान का फुटेज। एक शख्स तो बकायदा आईसी 814 विमान अपहरण कांड के जरिये ये लिखने में जुटा था कि विमान अपरहण की ये घटना कितनी बड़ी है या फिर हो सकती है।

इस खबर को ताने हुए करीब 2-3 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक एसाइनमेंट के सीनियर एडिटर नवची चीखते हुए आए और आउटपुट से कहने लगे कि ये खबर ड्रॉप कर दो। ये सुनते ही आउट पुट के तमाम लोगों के मुंह से एक चीख निकली – “क्या हुआ, क्यों ड्रॉप कर दें।“ फिर अचानक नवची ने आउट पुट के सीनियर एडिटर पिकलू की तरफ देखते हुए कहा “कोई अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि खुद सेना के जवान मॉक एक्सरसाइज कर रहे हैं। दरअसल वे देखना चाहते थे कि अगर इस बार अपहरण हुआ तो वो कैसे हेंडल करेंगे।“ इसे सुनते ही पिकलू ने आउट पुट के लोगों को सारे काम रोकने के आदेश दिए… और कहा “इसे क्या दिखाएं… साला ये भी टुच्ची खबर निकली। अब इसमें भी कोई दम नहीं।“ एक बार फिर न्यूजरूम में मायूसी छा गई।  


लेखक  हरीश चंद्र बर्णवाल न्यूज चैनल आईबीएन7 में एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं। उनसे संपर्क करने के लिए आप उन्हें उनकी मेल आईडी [email protected] This e-mail address is being protected from spambots, you need JavaScript enabled to view it  पर मेल कर सकते हैं।

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