हिंदी मीडिया में काम करने वाले साथी किन-किन स्थितियों और मनःस्थितियों में होते हैं, उसकी एक बानगी यह कहानी है जिसे हरीश चंद्र बर्णवाल ने लिखा है। इस कहानी को हिंदी साहित्य की मशहूर पत्रिका कथादेश की तरफ से पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
-संपादक, भड़ास4मीडिया
संवेदनहीनता
बहुत दिनों के बाद मुझे कुछ अच्छा असाइनमेंट मिला था।
न्यूज़ रूम के भीतर पोप जॉन पाल द्वितीय पर सभी कहानी लिखने और वीडियो एडिटिंग करवाने की ज़िम्मेदारी मुझे दी गयी थी। दरअसल मैंने ही अपने बॉस को बताया था कि पोप की सेहत लगातार गिर रही है। ऐसा लगता है ज़ल्द ही ये भगवान को प्यारे हो सकते हैं। न्यूज़ चैनल के लिए ये एक बहुत बड़ी ख़बर होगी। ऊँचे तबके के लोगों की इस ख़बर पर पैनी नज़र है। क्यों न पोप पर कुछ अच्छे पैकेज बनाकर पहले से रखे जायें। कभी इनकी मौत हो गई तो फिर हम दूसरे चैनलों के मुकाबले इसे अच्छे से कवर कर पाएंगे । बॉस को ये आईडिया पसंद आया और उन्होंने ये ज़िम्मेदारी मुझे सौंप दी।
‘आखिरकार लम्बी बीमारी के बाद पोप जॉन पाल द्वितीय नही रहे।’
‘पोप की मौत से पूरी दुनिया में शौक की लहर फ़ैल गई है।’
….कुछ ऐसी ही शुरुवाती पंक्तियों के साथ मैंने स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर की। हर दृष्टिकोण से मैंने पोप पर कई पैकेज तैयार किए।
लेकिन पोप हैं की लम्बी बीमारी के बावजूद कई दिनों तक लम्बी घडि़याँ गिनते रहे। अब मरे, तब मरे की स्थिति थी। इसी में एक हफ्ता गुज़र गया। मैं ज़बर्दस्त मेहनत करके अब तक कई पैकेज बना चुका था। लेकिन ये पैकेज तभी चलाये जा सकते थे, जब पोप की मौत हो जाए।
इधर पोप न तो पूरी तरह से ठीक हो रहे थे, और न ही उनकी सेहत में सुधार हो रहा था। पर इस चक्कर में मैं पूरी तरह से बेकाम हो गया था। कहाँ तो मैं एक नए कांसेप्ट के साथ आगे बढ़ने की सोच रहा था, लेकिन मेरे सहकर्मी ही मेरा मजाक उड़ा रहे थे कि साले कर क्या रहे हो।
थक हारकर मैंने एक दिन तय किया की अब सारी स्टोरी लाइब्रेरी में जमा करके किसी दूसरे प्रोजेक्ट में लग जाऊँगा।
एक दिन थका-हारा मैं घर पंहुचा कि मेरे एक साथी का फ़ोन आया। उसने बताया की पोप की मौत हो चुकी है। मैं काफी खुश हुआ की अब मेरी सभी स्टोरी चलेंगी। मैं बिना देर किए दफ्तर पहुँच गया। तब तक कई स्टोरी चल चुकीं थी। सभी सहकर्मी मुझे बधाई दे रहे थी कि मैंने कितना बढ़िया काम किया है।
दूसरे चैनल जहाँ पोप की वही घिसीपिटी खबर दिखा रहे थे, वहीं हम इसका बेहतरीन कवरेज सभी एंगल से कर रहे थे। कुछ सहकर्मियों ने बधाई देते हुए कहा की लग ही नही रहा की ये स्टोरी मैंने पोप की मौत से पहले लिखी है। तभी एक शख्स की आवाज़ सुनाई पड़ी, …यही तो एक पत्रकार की संवेदनशीलता है!!!
हरीश चंद्र बर्णवाल से उनकी मेल आईडी [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।