मीडिया हाउसों में नए लोग जब नौकरी मांगने जाते हैं, उनके इंटरव्यू होते हैं तो उनका पाला किस-किस तरह के जीवों से पड़ता है, यह उन नए-नवेले पत्रकारिता शिशुओं से पूछो जो डिग्री लेने के बाद इंटरव्यू देने जाते हैं। सुधी सिद्धार्थ नामक एक पत्रकारिता की छात्रा को एक बड़े चैनल ने इंटरव्यू के लिए बुलाया। सुधी सारे एक्जाम व इंटरव्यू में पास हो गई लेकिन वह फेल हुई तो एचआर हेड के इंटरव्यू में। एचआर हेड कौन थीं, एचआर हेड ने क्या पूछा, कैसा टूटा इस लड़की का सपना, किस तरह हुआ इस लड़की का फाइनल राउंड इंटरव्यू…. इसके बारे में खुद सुधी ने एक ब्लाग पर लिख कर बताया है। ब्लाग का नाम है सलाम जिंदगी। इस ब्लाग को पत्रकारिता के कुछ छात्रों ने मिलजुल कर शुरू किया है और वे इस पर अपने संवेदनशील सपनों, भावनाओं का इजहार करते हैं। सलाम जिंदगी ब्लाग से सुधी का लिखा यह आलेख भड़ास4मीडिया के पाठकों के लिए पेश है-
मानसिक प्रताड़ना या मानसिक बलात्कार? …जरा सोचिए
तिरंगे में कितने रंग होते हैं….?
…..जी तीन
और चक्र नहीं होता क्या…?
…जी होता है..
कौन से रंग का…?
….नीला
तो फिर चार रंग हो गए न! इतना नहीं पता तुम्हें…?
आप सोच रहे होंगे कि मैं तिरंगे को लेकर ये क्या लिख रहीं हूं। पर आपको बता दूं, इन सवालों की धार कर रही थी किसी के सपनों को तार-तार। यहां पर एक ब्रेक लेते है। पहले मैं आपको बताती हूं कि आखिर मामला यहां तक पहुंचा कैसे।
रविवार की खूबसूरत सुबह। मोबाईल पर एक कॉल। ये कोई ऐसी वैसी कॉल नहीं। इंटरव्यू कॉल थी। खुशी का ठिकाना नहीं रहा। भई इसी दिन का तो इंतजार था। फिर क्या, शुरू हो गई तैयारी। पूरे दिन न्यूज चैनलों को देखा। अखबार तो ऐसे पढ़ा जैसे सारी जिन्दगी की मेहनत आज ही हो जाएगी। और तो और, कंगाली के दौर में नेट पर 10 रुपये भी कुर्बान कर दिए। मिनिस्ट्रीज से लेकर राजनीतिक हलचल तक, सब दिमाग के फोल्डर में कैद हो चुका था। बेचैनी इतनी की रात में कई बार उठकर घड़ी देखी। सुबह समय से पहले ही ऑफिस पहुंच गई। हाथों में झोला और आंखों में चश्मा। दिल में गजब का आत्मविश्वास। इतने बड़े चैनल में इंटरव्यू जो था। करीब तीस चालीस लोग थे। एक-एक करके सबका नाम पुकारा जाने लगा। दिल की धड़कन बढ़ गईं। मौका मिलने पर बैग में पड़े कुछ कागजों को उलट-पलट रही थी। मेरा नंबर भी आ गया। दिल में ठान लिया था। जितना भी आता है, इंटरव्यू की टेबल पर उड़ेल दूंगी।
सामने बड़े-बड़े लोग। इस एक पल को खुद को सबसे खुशनसीब मान रही थी मैं। करीब बीस मिनट अपनी प्रतिभा का प्रमाण देने के बाद जब केबिन से बाहर निकली तो सबसे पहले अपनी घनिष्ठ मित्र को फोन किया। बोली… आज तो किला फ़तह कर लिया हमने, शाम को पार्टी होगी, सारे सही जवाब दिए हैं, देखना अब सब सही हो जाएगा।
थोड़ी देर में बाकी सभी को जाने के लिए कह दिया गया। बस मैं रह गई। विश्वास और बढ़ गया कि बस मंजिल दूर नहीं है। ऐसे में तीन घंटे बैठे-बैठे कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला। फिर एक सज्जन ने बताया… आपका एचआर राउंड बचा है, जाइए मैडम बुला रहीं हैं। मन में कहा… पैसा चाहे कुछ भी मिले लेकिन पोस्ट से कोई समझौता नहीं करूंगी। उधर लोग एचआर हेड के दिव्य ज्ञान की चर्चा कर रहे थे। मैं संभलकर आगे गई। चैम्बर में देखा… मैडम कुर्सी पर बैठी फोन पर बात कर रहीं थीं, हाथों में रिमोट, सामने एलसीडी पर कैटरीना कैफ चल रहीं थीं। मुझे देखते ही बोलीं… ओह हो, तुम हो !!!….सबसे पहले तुम्हें निपटाती हूं…..
एक के बाद एक सवाल। मैं तो समझ ही नहीं पा रहीं थी की हो क्या रहा हैं। मेरे लिए हिन्दी में लिखना जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती बन गया। ख्वाबों और खयालों की दुनिया लुट चुकी थी। मेरा रिज्यूम तो ऐसे फेंका जैसे कह रही हों कि पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं। महज पंद्रह मिनट में केबिन के बाहर और अंदर की दुनिया समझ में आ गई। अपने सपनों की अर्थी कांधे पर लिए बाहर आ गई और आज तक जवाब न मिला। क्या था ये? साक्षात्कार या मानसिक बलात्कार??
सुधी के इस लिखे पर आई दर्जनों टिप्पणियों को पढ़ने के लिए और टिप्पणी देने के लिए क्लिक करें- सलाम जिंदगी