‘‘लाख अन्यायपूर्ण और अनुचित आलोचनाओं व प्रलोभनों के बावजूद सोनिया गांधी ने जिस गरिमा और गंभीरता के साथ सत्ता की कामना का बलिदान किया, वो अपने आप में एक मिसाल है। वो एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिज्ञ हैं जिन्हे ग्रामीण और शहरी संभ्रान्त वर्ग समान रूप से पसंद करता है। हमारे देश में ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्होंने महाद्वीपों, सभ्यताओं और भाषाओं के बंधन को इतनी आसानी से पार किया है और जिनको दुनिया गंभीरता से सुनती है। सोनिया गांधी का दिल हमेशा गरीबों, कमजोरों और सुविधाविहीन लोगों की भलाई के लिए धड़कता है…।” पाठक इन शब्दों को पढ़कर परेशान या गुमराह न हों, न ही इन पंक्तियों के लेखक का कांग्रेसीकरण हो गया है। ये शब्द हैं इनफोसिस के अध्यक्ष नारायण मूर्ति के। पाठकों को बताते चलें कि ये वहीं नारायण मूर्ति हैं जिनका नाम एक दौर में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए हवा में रहा था।
माफ कीजिएगा कि उपरोक्त इटैलिक हिंदी वाक्य जरा कठिन प्रतीत हो रहे हैं। दरअसल ये पीटीआई की खबर का शब्दश: अनुवाद है जो नारायणमूर्ति ने पांडित्यपूर्ण अंग्रेजी में दिया था। मौका था 15 सितंबर 2009 को मैसूर में इनफोसिस के दूसरे ग्लोबल एजुकेशन सेंटर के उदघाटन का जो सोनिया गांधी के हाथों संपन्न हुआ। लेकिन खबर ये नहीं है।
ठीक उसी दिन मैसूर से तकरीबन 2500 किलोमीटर उत्तर में पंजाब के शहर लुधियाना में सोनिया गांधी के बेटे और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूथ कांग्रेस के एक ट्रेंनिंग कैम्प का उदघाटन करते हैं। इस कैम्प में य़ुवा कांग्रेसियों को चार दिन का ट्रेनिंग दिया जाना है कि तृणमूल जनता (ग्रासरुट मासेज) तक कैसे पहुंचा जाए और कांग्रेस को कैसे सत्ता की स्वाभाविक पार्टी बनाए रखा जाए। इस कैम्प को साफ्ट स्किल की ट्रेंनिंग देने के लिए बंगलूरु से एक कंसलटेंसी को बुलाया जाता है जिसका नाम है- इस्टीट्यूट आफ लीडरशिप एंड इस्टीट्यूशनल डेवलपमेंट। इस फर्म की साइट पर जाएं तो पता चलता है कि इसके डायरेक्टर का नाम है- डा. जी के जयराम। डा. जयराम इंफोसिस लीडरशिप इस्टीट्ट्यूट के प्रमुख रहे हैं। इस फर्म को एक ट्रस्ट चलाती है जिसकी एक ट्रस्टी हैं रोहिणी निलकेणी। रोहिणी निलकेणी, नंदन निलकेणी की पत्नी हैं। अब ये बताना कोई जरुरी नहीं है कि ये वही नंदन निलकेणी हैं जिन्हें सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली यूपीए सरकार ने हजारों करोड़ रुपये वाली अपने सबसे बड़ी महात्वाकांक्षी परियोजना ‘यूनिक आईडेंटीफिकेशन कार्ड’ का अध्यक्ष बनाया हुआ है।
अब यहां दो अनुमान तो लगाए ही जा सकते हैं। अगर बीजेपी के धुरंधर, डा. कलाम जैसे वैज्ञानिक को राष्ट्रपति बनाकर ‘सेक्युलर’ होने का तमगा हासिल कर सकते हैं तो भला कांग्रेस क्यों नहीं डा. नारायण मूर्ति को राष्ट्रपति बनाकर अपना आधुनिकतावादी चेहरा दिखा सकती? बिल्कुल दिखा सकती है। माना कि पिछले बार वाम दल एक महिला के नाम पर अड़ गए थे। अब क्या परेशानी है? नारायणमूर्ति ने अपने आपको निष्ठावान तो कमसे कम साबित कर ही दिया है!
इस खबर का मकसद न तो नारायण मूर्ति की पहुंच का मर्सिया पढ़ना है न ही उनकी गरिमा और अहमियत को ठेस पहुंचाना। इस खबर का मकसद सनसनीखेज पत्रकारिता करने वाले भाई बंधुओं को आईना दिखाना है कि असल सनसनी तो यहां थी जिसमें वे चूक गए। खैर, हमारे देश में लकीर पीटने का भी रिवाज रहा है, सो वो अभी भी इस पर अमल कर सकते हैं।