अमर उजाला और न्यूज 24 में काम करने के बाद इन दिनों टीवी टुडे नेटवर्क के साथ कार्यरत पत्रकार सैयद ज़ैग़म इमाम का पहला उपन्यास आ चुका है। ‘दोज़ख़’ नामक इस उपन्यास को राजकमल ने प्रकाशित किया है। यह उपन्यास मज़हब और इंसानियत के बीच चलने वाली एक अजीबोगरीब कशमकश की कहानी है। एक ऐसे लड़के कि दास्तान जिसके हिंदू या फिर मुसलमान होने का मतलब ठीक से नहीं पता। मालूम है तो सिर्फ इतना कि वो एक इंसान है जिसकी सोच और समझ किसी मजहबी गाइडलाइन की मोहताज नहीं है।
असल में इस उपन्यास की कहानी के बहाने भारतीय समाज के उस धार्मिक ताने बाने को उकेरने की कोशिश की गई है जो मजहब और नफरत की राजनीति से उभरने से पहले देश के शहरों और कस्बों की विरासत था, जहां मुसलमान अपने धर्म के प्रति सजग रहते हुए भी इस तरह के बचाव की मुद्रा में नहीं होते थे जैसे आज हैं। उपन्यास का नायक अलीम अहमद उर्फ अल्लन उसी माहौल का रुपक रचता है और अपनी सहज और स्वत स्फूर्त धार्मिकता के साथ हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों की सीमाओं से परे चला जाता है। उपन्यास में कम उम्र में होने वाले प्रेम की तीव्रता, एक मुस्लिम परिवार की आर्थिक तंगी, पीढ़ियों के टकराव और एक बच्चे के मनोविज्ञान का भी बखूबी अंकन हुआ है। बनारस की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस उपन्यास में कई जगह भद्दी गालियां हैं और कहीं कहीं हालात से उपजी अश्लीलता भी लेकिन इन सबके बावजूद यह उपन्यास अपने आप में मुकम्मल है और कई बार दिल को छूता है। आंखों की कोर गीली कर जाता है।
लेखक जै़ग़म इमाम का जन्म 2 जनवरी 1982 को बनारस में हुआ। शुरुआती पढ़ाई लिखाई बनारस के कस्बे चंदौली (अब जिला) में करने के बाद 2002 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य व प्राचीन इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की। 2004 में माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ जर्नलिज्म (भोपाल, नोएडा) से मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की डिग्री ली। 2004 से पत्रकारिता में हैं। ज़ैग़म इमाम को सराय सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) की ओर से 2007 में इंडिपेंडेंट फेलोशिप दी गई। वे इन दिनों प्रेम पर आधारित अपने दूसरे को उपन्यास को पूरा करने में व्यस्त हैं। उपन्यास के अलावा कविता, गजल, व्यंग्य और कहानियों में उनकी विशेष रुचि है। कई व्यंग्य कवितएं और कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं।