[caption id="attachment_16766" align="alignleft"]अजीत अंजुम[/caption]न्यूज 24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम का दरबार इन दिनों फेसबुक पर हर रोज सजा रहता है. वे नित्य सुबह टीआरपी फेंकू सवाल उछालते हैं और जनता दौड़ी हुई आती है. देखते ही देखते उनके सवालों पर तगड़ा विमर्श शुरू हो जाता है. एक भड़ासी साथी उनके दरबार के अर्काइव को खंगालने में जुट गया तो एक से तीन दिसंबर (2009) के बीच हुई एक मजेदार विमर्श हाथ लगा. लीजिए, आपको पढ़ाते हैं कि टीवी में कैसी-कैसी मूर्खताएं, सहज गल्तियां, मानवीय त्रुटियां आदि हो जाया करती हैं और अपनी ही गल्तियों पर टीवी वाले दिल खोलकर हंसते भी हैं व खुद को कोसते भी हैं. यह एक स्वस्थ परंपरा शुरू हो रही है कि अपनी गल्तियों पर खुद बातचीत करो और उसे स्वीकार भी करो. पूरा मसला कुछ इस तरह है.
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फेसबुक, अजीत अंजुम, टीआरपी पर किचकिच
Ajit Anjum : हर हफ्ते टीआरपी आने का सिलसिला खत्म होना चाहिए? अगर अखबार को सरकुलेशन हर हप्ते नहीं आता है तो टीवी की रेटिंग क्यों? मैं लगातार ये कह रहा हूं कि टैम की रेटिंग तीन या छह महीने में आने लगे तो टीवी न्यूज चैनलों की तस्वीर बदल जाएगी. मैंने तीन साल पहले हंस में एक कहानी भी लिखी-फ्राईडे. तब रेटिंग शुक्रवार को आया करती थी… अब बुधवार को. आज आशुतोष ने भी टीआरपी खत्म करने की वकालत की है. आप क्या सोचते हैं? शनिवार को आईबीएन-7 के कार्यक्रम मुद्दा में भी मैंने यही कहा था टीआरपी टीवी पत्रकारिता की दुश्मन है. राजदीप सरदेसाई, सतीश जैकब, एनके सिंह और चंदन मित्रा भी मुद्दा के गेस्ट थे. राजदीप ने कहा कि कई चैनल टीआरपी खत्म करने के पक्ष में नहीं भी हो सकते हैं क्योंकि विज्ञापन इसी आधार पर तय होते हैं.