सलमान और मुलायम की मांग- मीडिया करप्शन भी लोकपाल के दायरे में आए!

द हिंदू अखबार में दो खबरें पिछले दिनों प्रकाशित हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय कानून और सामाजिक न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक न्यूज चैनल पर एंकर के सवालों के जवाब में उन्हीं से सवाल पूछ लिया कि ”…मीडिया करप्शन को टीम अन्ना वर्जन के लोकपाल के अधीन जांच का विषय क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए. क्या हम लोगों को नीरा राडिया टेप का यहां जिक्र नहीं करना चाहिए.

मर्डोक के अखबार में टीओआई, जागरण और भास्कर की नीचता की कहानी छपी

हमारे देश के अखबारों और चैनलों के मालिक रुपर्ट मर्डोक बन जाना चाहते हैं. इसलिए क्योंकि रुपर्ट मर्डोक दुनिया के सबसे बड़े मीडिया माफिया माने जाते हैं. पर इस मीडिया माफिया ने भारत के अखबारों के पेड न्यूज जैसा गंदा खेल खेलने को बहुत बुरा माना है और इसी कारण इन भारतीय अखबारों का नाम लिख लिखकर इनकी नीचता की कहानी प्रकाशित की है.

संपादक आदित्य सिन्हा की नई सनसनी

: पेड न्यूज मुक्त अखबार होने का लिखित ऐलान कर डाला : जैसे पुलिस थानों के सामने लिखा होता है कि दलालों का प्रवेश वर्जित, पर थानों में सबसे सहज इंट्री इन्हीं दलालों की होती है, उसी तरह अब पेड न्यूज सिंड्रोम को भुनाने की कोशिश मीडिया हाउस करने लगे हैं और इसकी पहली कड़ी में आज से मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक डेली न्यूज एंड एनालिसिस (डीएनए) ने फर्स्ट पेज पर एक मुहर नुमा लोगो प्रकाशित करना शुरू किया है जिसमें पेड न्यूज लिखे शब्द के उपर क्रास का निशान बना हुआ है.

If journalists can’t finish paid news, paid news will finish the journalists- P Sainath

Amitabh ThakurP Sainath talked a great deal about the phenomenon of Paid news in great details. He said that Paid news has been defined extremely well by the Press Council of India as any news or writing appearing as having been done in consideration of cash or kind. This phenomenon had been there in Indian media industry for at least the last decade as an undercurrent but 2009 became the year of Tsunami for Paid news. He said that he felt really satisfied by the fact that he could take credit for breaking the story of Paid news in Hindu during the period April to November 2009 during the Maharashtra assembly elections.

Journalists were at best minor Villains or comic relief in the Radia Tapes- P Sainath

[caption id="attachment_18977" align="alignleft" width="236"]P SainathP Sainath[/caption]P Sainath needs no introduction. The man who is considered the leading proponent of development journalism in India and one who has his feet firmly grounded in rural India with as much ease as he is seen interacting with the intellectual giants around the globe, Sainath is a Magsaysay award winner and has many more recognitions to his credit.

पेड न्यूज विरोधियों के लिए मौका, करें शिकायत

पेड न्यूज से जुड़े मसलों की जांच-पड़ताल और गाइड लाइन के लिए बनी पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी कर लोगों से अनुरोध किया गया है कि वे पेड न्यूज से जुड़े दस्तावेजों, सुबूतों, आलेखों, अपने विचार आदि को कमेटी के पास पहुंचाएं. इसके लिए मेल आईडी, फैक्स नंबर, फोन नंबर, पता दिए गए हैं. सभी पत्रकार बंधु इस मौके का इस्तेमाल करें और पेड न्यूज से जुड़ी बातें इस कमेटी तक पहुंचाएं ताकि गंदे खेल पर लगाम लगाने की कोशिशों को बल मिले. विज्ञप्ति नीचे है. ध्यान रखें, यह सब लिखने भेजने का वक्त सिर्फ दो हफ्ते का है जिसकी गिनती कल से शुरू हो चुकी है. -संपादक, भड़ास4मीडिया

क्या पेड न्यूज़ के खिलाफ मुहिम बेकार गई (अंतिम)

मुकेश कुमारअब सवाल ये उठता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर हुआ है तो क्या ये मान लिया जाए कि पेड न्यूज़ का विरोध करना बेकार है? एक बार फिर ये साबित हो गया है कि चौतरफा विरोध का मीडिया संस्थानों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। वे पहले की तरह ही अपनी टारगेट तय कर रहे हैं और उसे पूरा भी। इसके लिए बेशक उन्हें नए रास्ते खोजने पड़ रहे हैं मगर वे अपना रास्ता बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें मुनाफ़ा चाहिए और किसी भी कीमत पर चाहिए, इसके लिए पत्रकारिता की ऐसी-तैसी होती हो तो हो। यानी वे बदलने वाले नहीं हैं चाहे लोग उन्हें कोसते रहें और हाहाकार मचाते रहें।

पेड न्यूज़ कारोबार में चैनलों ने भी दिखाया दम (2)

ंमुकेश कुमारहालाँकि बिहार में चुनाव के पहले से ही पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर चल रहा था। इसमें दल या संभावित प्रत्याशी शामिल नहीं थे। ये मुख्य रूप से सरकार कर रही थी। नीतीश कुमार की विभिन्न नामों से की गई चुनाव यात्राओं के एवज में चैनलों को मोटी राशि बाँटी गई। यानी पहले से ही मीडिया को दाना डालकर पटा लिया गया था। लेकिन आचार संहिता लागू होने के बाद और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग और पत्रकारों की मुहिम की वजह से ऐसा लगता था कि शायद इस बार उनके लिए मुश्किल होगी। फरवरी में लाँच हुए मौर्य टीवी ने तो पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ बाकायदा मुहिम ही छेड़ दी थी, इसलिए भी ये उम्मीद की जा रही थी कि न्यूज़ चैनल ऐसा नहीं करेंगे।

नंगई कम दिखी पर पेड न्यूज़ चालू आहे (1)

मुकेश कुमारबिहार चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन की ऐतिहासिक विजय ने पेड न्यूज़ के कारोबार और चुनाव पर उसके प्रभाव से लोगों का ध्यान  हटा दिया है। लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक संपन्न हो गया है और अब इस बात की ज़रूरत नहीं है कि पेड न्यूज़ और मीडिया की भूमिका की पड़ताल की जाए। मगर इसकी ज़रूरत है, क्योंकि तभी पता चलेगा कि बिहार के चुनाव कितने निष्पक्ष हुए और धन के बल पर मीडिया का किसने कैसा इस्तेमाल किया गया।

पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन की कुछ तस्वीरें

पटना में कल आयोजित पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन की कुछ तस्वीरें प्राप्त हुई हैं. इन्हें प्रकाशित कराया जा रहा है. इस सम्मेलन में सबसे खास बात यह थी कि पत्रकारों को भ्रष्ट बनाने वाले नेताओं के प्रतिनिधि के रूप में लालू यादव और राम विलास पासवान मौजूद थे तो पत्रकारों से नैतिकता व सरोकार की अपेक्षा रखने वाले ईमानदार नेता दीपांकर भट्टाचार्या भी मौजूद थे. इस तरह, पेड न्यूज के अघोषित पैरोकार व पेड न्यूज के खुल्लमखुल्ला विरोधियों की मौजूदगी में हुए इस सम्मेलन ने सबको अहसास कराया कि अगर हालात नहीं बदले गए तो कोई नहीं बचेगा, न देश, न समाज. तस्वीरें नीचे हैं. -एडिटर

नेताओं का ऐलान- पेड न्यूज का खेल न खेलेंगे

: लेकिन लोगों में नेताओं के कहे पर संशय : बिहार की धरती से एक और आंदोलन की शुरुआत : पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन में उठी पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज : एंटी पेड न्यूज फोरम की वेबसाइट शुरू : मीडिया संस्थानों व बाजार के दबाव के कारण पेड न्यूज के कारोबार को बढ़ावा :

‘अब चोर भी लेंगे चोरी न करने की कसम!’

: सवाल केवल पेड न्यूज का ही नहीं : चुनावों के समय मीडिया में पेड न्यूज मीडिया के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर आंदोलन कई रूपों में पिछले 40 सालों से चलता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि जो इस कुरीति का विरोध करते हैं, वही पत्रकार जब अपने मीडिया हाऊस में निर्णायक की भूमिका में आते हैं, तो वह भी वही करते हैं जो अन्य करते हैं। इस संदर्भ में कई लोगों का नाम लिया जा सकता है, लेकिन नाम न लेना ही बेहतर होगा। कल पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में ‘एंटी पेड न्यूज फ़ोरम’ द्वारा आयोजित ‘एंटी पेड न्यूज महासम्मेलन’ के अवसर पर जो कुछ देखने को मिला, उससे मेरे अनेक विश्वास टूटे। जिन लोगों को मैं आम आदमी मानता था, वे बहुरुपिये निकले।

पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आज महासम्मेलन

: लालू और पासवान भी शामिल होंगे : पेड न्यूज़ को रोकने की गरज़ से बिहार-झारखंड के पत्रकारों की ओर से शनिवार को पटना के एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट में एक महासम्मेलन किया जा रहा है। पूरे देश में  इस तरह का ये पहला सम्मेलन  है जहाँ पत्रकारों की पहल  पर पत्रकार और समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े प्रतिष्ठित लोगों के अलावा राजनीतिक दलों के नेता भी जुटेंगे और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद करेंगे। सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए देश के दूसरे हिस्सों से भी पत्रकार आ रहे हैं। पैसे देकर न्यूज़ छपवाने का प्रचलन पिछले कुछ सालों में बहुत तेज़ी से बढ़ा है।