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नेताओं का ऐलान- पेड न्यूज का खेल न खेलेंगे

: लेकिन लोगों में नेताओं के कहे पर संशय : बिहार की धरती से एक और आंदोलन की शुरुआत : पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन में उठी पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज : एंटी पेड न्यूज फोरम की वेबसाइट शुरू : मीडिया संस्थानों व बाजार के दबाव के कारण पेड न्यूज के कारोबार को बढ़ावा :

<p style="text-align: justify;">: <strong>लेकिन लोगों में नेताओं के कहे पर संशय : बिहार की धरती से एक और आंदोलन की शुरुआत : पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन में उठी पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज : एंटी पेड न्यूज फोरम की वेबसाइट शुरू </strong>:<strong> मीडिया संस्थानों व बाजार के दबाव के कारण पेड न्यूज के कारोबार को बढ़ावा :</strong></p>

: लेकिन लोगों में नेताओं के कहे पर संशय : बिहार की धरती से एक और आंदोलन की शुरुआत : पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन में उठी पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज : एंटी पेड न्यूज फोरम की वेबसाइट शुरू : मीडिया संस्थानों व बाजार के दबाव के कारण पेड न्यूज के कारोबार को बढ़ावा :

शनिवार को पटना में पेड न्यूज़ के खिलाफ़ हुए सम्मेलन में ये आम सहमति दिखी कि पेड न्यूज़ के कारोबार ने पत्रकारिता की साख को ख़त्म कर दिया है और ये लोकतंत्र के लिए भी ख़तरा बन गया है। अधिकांश वक्ताओं ने कहा कि पत्रकारों द्वारा बुलाया गया ये महासम्मेलन पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ एक छोटी मगर महत्वपूर्ण पहल है क्योंकि ये आवाज़ पत्रकारों की तरफ से उठाई जा रही है। पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ इस महासम्मेलन में मीडिया और सामाजिक वर्गों के अलावा प्रदेश के प्रमुख दलों के कई दिग्गज नेताओं ने भागीदारी की। इनमें लालू यादव, राम विलास पासवान, दीपंकर भट्टाचार्य, शाहनवाज़ हुसैन, जगन्नाथ मिश्र, प्रेमचंद मिश्र, गुलाम गौस और राजीवरंजन शामिल हैं। वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल और दिलीप मंडल ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे और पेड न्यूज़ का विरोध किया। नेताओं ने ऐलान किया कि वे किसी भी रूप में पेड न्यूज़ के खेल में शामिल नहीं होंगे, हालाँकि वे ऐसा करेंगे इसको लेकर लोगों में संशय है। माले के दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि पैसा हर क्षेत्र में बोल रहा है और मीडिया भी पैसे की गिरफ्त में है इसीलिए उसका ध्यान मुख्य मुद्दों से हटकर हल्के-फुल्के मनोरंजन तक सिमट गया है। काँग्रेस के प्रेमचंद मिश्र ने पेड न्यूज़ की तुलना वेश्यावृत्ति से की, तो लालू यादव ने कहा कि मीडिया की पवित्रता बनी रहनी चाहिए, पत्रकार कलम से उसका विरोध करें और वे उनका साथ देंगे।

महासम्मेलन में ये बात खुलकर आई कि ज़्यादातर पत्रकार पेड न्यूज़ के विरूद्ध हैं मगर मीडिया संस्थानों ने बाज़ार के दबाव और मुनाफाखोरी के चलते इस कारोबार को बढ़ावा दिया है और मजबूरन उन्हें इसमें शामिल होना पड़ा है। बहुत ही कम पत्रकार ऐसे हैं जो पेड न्यूज़ को सही मानते हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस ओर ध्यान खींचा गया कि मीडिया पर कार्पोरेट जगत का इस हद तक कब्ज़ा हो चुका है कि पेड न्यूज़ पर रोक लगेगी इसकी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। नई दुनिया की निवेदिता झा ने भी कहा कि इस तरह के सम्मेलनों से कुछ हासिल नहीं होने वाला।

आईएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि पेड न्यूज के खिलाफ आम सहमति कायम करके एक आंदोलन शुरू किया जा सकता है। इसके लिए स्पष्ट नीति बनाई जानी चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी के संवाददाता मणिकांत ठाकुर का कहना था कि पेड न्यूज़ ने पत्रकारिता की विश्वसनीयती पर ज़बर्दस्त प्रहार किया है, जबकि आउटलुक के अमरनाथ तिवारी ने पेड न्यूज़ को परिभाषित करते हुए कहा कि जो पेड नहीं है वह न्यूज़ है। उन्होंने सुझाया कि ख़बरों के रूप में और ख़बरों के लिए निर्धारित जगह पर इस तरह की चीज़ें नहीं छापी जानी चाहिए, जिनके लिए पैसा लिया गया है। बिहार टाइम्स डॉट काम के अजय कुमार ने कहा कि ये बड़ी बात है कि पत्रकार चिंतित हैं और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज पटना से उठ रही है। वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने भी इस बात को रेखांकित करते हुए कहा कि बिहार कई तरह के आंदोलनों की जन्मभूमि रहा है और आज फिर एक बड़ी शुरूआत यहां से हो रही है। उनके द्वारा राजेंद्र माथुर पर निर्मित फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया जिसे लोगों ने बहुत सराहा।

मौर्य टीवी के निदेशक मुकेश कुमार ने कहा कि हालाँकि पेड न्यूज़ का दायरा बहुत बड़ा है और इसे रोकना बहुत मुश्किल काम है मगर समाज के विभिन्न वर्गों को संगठित करके मीडिया संस्थानो पर दबाव बनाया जा सकता है और बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों और नेताओं को भी इस मुहिम में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि ये केवल पत्रकारिता का संकट नहीं, लोकतंत्र का संकट भी है। उन्होंने नेताओं से कहा कि वे ऐसे पत्रकारों और मीडिया संस्थानों का स्टिंग आपरेशन करवाएं जो उनसे पेड न्यूज़ माँगें या इसके लिए दबाव बनाएं।

एक्टिविस्ट पुष्कर पुष्प ने एक अख़बार में रिपोर्टिंग के अपने अनुभव को बयान करते हुए बताया कि उन पर किस तरह से भुगतान पत्रकारिता के लिए दबाव डाला गया और अंतत उनकी रिपोर्ट छापनी बंद कर दीं। वरिष्ठ पत्रकार जुगनू शारदेय ने भी पेड न्यूज़ का विरोध करते हुए कहा कि इस मुहिम को विस्तार दिया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार नवेंदु ने किया।

एंटी पेड न्यूज़ फोरम की विज्ञप्ति में पेड न्यूज़ को ग़लत मानने वाले देश के दूसरे हिस्सों के पत्रकारों से अपील की गई है कि वे भी अपने स्तर पर संगठित हों और मुहिम शुरू करें। एपीएनएफ भी इस दिशा में प्रयास करती रहेगी। फोरम ने www.antipaidnews.com के नाम से अपनी वेबसाइट भी शुरू कर दी है ताकि लोगों को जोड़ने के प्रयासों को गति दी जा सके। प्रेस रिलीज़

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