“पंजाब केसरी ने तोड़ा युवा पत्रकारों का सपना” पढ़कर अपने पुराने दिन याद आ गए, बात आज से 2 साल पुरानी है. हम करीब 15 लोगों को पंजाब केसरी ने रिपोर्टर रखा था, 4 महीने तक सबको यूं ही खटाते रहने के बाद ३००० रुपये प्रति महीने दिहाड़ी मिलनी शुरू हुई. सबने उत्साह के साथ काम करना शुरू किया, लेकिन थोड़े ही दिनों में सबका जोश खत्म होने लगा, पीआर खबरें और सेटिंग की खबरें, मंदिरों के उदघाटन और जागरणों को कवर करते-करते सभी रिपोर्टर जैन साहब के कारिंदे होते चले गए.
फिर एक दिन नोटिस बोर्ड पर लिखा देखा कि पूरी की पूरी मेट्रो टीम को ही निकाल दिया गया है. उस दिन पूरे 15 पत्रकार बंधु एक ही झटके में बेरोजगार हो गए. तब भी इस काण्ड के कर्ता-धर्ता जैन साहब ही थे. ये बात अलग है कि आज वो सभी पत्रकार भाई अच्छी जगहों पर अपनी मर्जी के काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. तो बंधु, इस बात का बुरा मत मानो क्योंकि ये मीडिया जगत की पहली सीख है जो आपको मिली है. रही पंजाब केसरी की बात तो पंजाब केसरी का असली चेहरा यही है- ऊपर से नैतिकता की बातें और अन्दर से वही फैली हुई सड़ांध. बाकी इस हमाम में तो हम सभी नंगे हैं.
–भास्कर चौधरी