नौनिहाल और मामूली रिक्शे वाले का साला

नौनिहाल शर्मा: भाग 35 : नौनिहाल बहुत भोले स्वभाव के थे। उन्होंने हैंड कंपोजिंग से शुरूआत की थी। बात उन्हीं दिनों की है जब वे जागरण में काम कर रहे थे। जागरण के पत्रकार ही नहीं, दर्जनों हैंड कंपोजिटर भी उनके चेले थे। उन्हें ट्रेडल मशीनों की भी बहुत अच्छी जानकारी थी। कई बार कंपोजिटर या मशीनमैन कहीं फंस जाते।

होठों को पढ़ते थे मेरे गुरु नौनिहाल

[caption id="attachment_16665" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मानौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 3 : नौनिहाल के प्रताप से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मैंने एन.ए.एस. कॉलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया। ‘मेरठ समाचार’ में बिना तनखा का रिपोर्टर बन गया। सुबह 7 से 11 बजे तक कॉलेज लगता था। वहां से मैं साइकिल से ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर जाता। तीन बजे एडिशन निकलने तक नौनिहाल की शागिर्दी में पत्रकारिता के नए-नए रंगों से परिचित होता। सबसे पहले उन्होंने मुझे प्रेस विज्ञप्तियों से खबर बनाना सिखाया। यह बताया कि प्रचार की सामग्री में से भी किस तरह खबर निकाली जा सकती है। विज्ञप्ति पर हैडिंग लगाकर ही छपने को नहीं भेज देना चाहिए। हर विज्ञप्ति को कम से कम एक महीने तक संभालकर रखना चाहिए। कभी-कभी वही व्यक्ति या संस्थान कुछ दिन बाद दूसरी विज्ञप्ति भेजकर पहली की विरोधाभासी सामग्री देता है। तब पिछली विज्ञप्ति का हवाला देकर बढिय़ा खबर बन सकती है। .. और नौनिहाल के मार्गदर्शन में मुझे ऐसी खबरें बनाने के कई मौके मिले। मेरठ के एक नेता थे मंजूर अहमद। विधायक भी रहे थे। उनकी दो विज्ञप्तियों के विरोधाभास पर मेरी बाईलाइन खबर नौनिहाल ने पहले पेज पर छाप दी। अगले दिन मंजूर अहमद अपने लाव-लश्कर के साथ अखबार के दफ्तर में आ गए। मालिक-संपादक राजेन्द्र गोयल (बाबूजी) से बोले, ‘ये क्या छापा है? हमारी हैसियत का कुछ ख्याल है या नहीं?’