Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

होठों को पढ़ते थे मेरे गुरु नौनिहाल

[caption id="attachment_16665" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मानौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 3 : नौनिहाल के प्रताप से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मैंने एन.ए.एस. कॉलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया। ‘मेरठ समाचार’ में बिना तनखा का रिपोर्टर बन गया। सुबह 7 से 11 बजे तक कॉलेज लगता था। वहां से मैं साइकिल से ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर जाता। तीन बजे एडिशन निकलने तक नौनिहाल की शागिर्दी में पत्रकारिता के नए-नए रंगों से परिचित होता। सबसे पहले उन्होंने मुझे प्रेस विज्ञप्तियों से खबर बनाना सिखाया। यह बताया कि प्रचार की सामग्री में से भी किस तरह खबर निकाली जा सकती है। विज्ञप्ति पर हैडिंग लगाकर ही छपने को नहीं भेज देना चाहिए। हर विज्ञप्ति को कम से कम एक महीने तक संभालकर रखना चाहिए। कभी-कभी वही व्यक्ति या संस्थान कुछ दिन बाद दूसरी विज्ञप्ति भेजकर पहली की विरोधाभासी सामग्री देता है। तब पिछली विज्ञप्ति का हवाला देकर बढिय़ा खबर बन सकती है। .. और नौनिहाल के मार्गदर्शन में मुझे ऐसी खबरें बनाने के कई मौके मिले। मेरठ के एक नेता थे मंजूर अहमद। विधायक भी रहे थे। उनकी दो विज्ञप्तियों के विरोधाभास पर मेरी बाईलाइन खबर नौनिहाल ने पहले पेज पर छाप दी। अगले दिन मंजूर अहमद अपने लाव-लश्कर के साथ अखबार के दफ्तर में आ गए। मालिक-संपादक राजेन्द्र गोयल (बाबूजी) से बोले, ‘ये क्या छापा है? हमारी हैसियत का कुछ ख्याल है या नहीं?’

नौनिहाल शर्मा

नौनिहाल शर्मापार्ट 3 : नौनिहाल के प्रताप से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मैंने एन.ए.एस. कॉलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया। ‘मेरठ समाचार’ में बिना तनखा का रिपोर्टर बन गया। सुबह 7 से 11 बजे तक कॉलेज लगता था। वहां से मैं साइकिल से ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर जाता। तीन बजे एडिशन निकलने तक नौनिहाल की शागिर्दी में पत्रकारिता के नए-नए रंगों से परिचित होता। सबसे पहले उन्होंने मुझे प्रेस विज्ञप्तियों से खबर बनाना सिखाया। यह बताया कि प्रचार की सामग्री में से भी किस तरह खबर निकाली जा सकती है। विज्ञप्ति पर हैडिंग लगाकर ही छपने को नहीं भेज देना चाहिए। हर विज्ञप्ति को कम से कम एक महीने तक संभालकर रखना चाहिए। कभी-कभी वही व्यक्ति या संस्थान कुछ दिन बाद दूसरी विज्ञप्ति भेजकर पहली की विरोधाभासी सामग्री देता है। तब पिछली विज्ञप्ति का हवाला देकर बढिय़ा खबर बन सकती है। .. और नौनिहाल के मार्गदर्शन में मुझे ऐसी खबरें बनाने के कई मौके मिले। मेरठ के एक नेता थे मंजूर अहमद। विधायक भी रहे थे। उनकी दो विज्ञप्तियों के विरोधाभास पर मेरी बाईलाइन खबर नौनिहाल ने पहले पेज पर छाप दी। अगले दिन मंजूर अहमद अपने लाव-लश्कर के साथ अखबार के दफ्तर में आ गए। मालिक-संपादक राजेन्द्र गोयल (बाबूजी) से बोले, ‘ये क्या छापा है? हमारी हैसियत का कुछ ख्याल है या नहीं?’

बाबूजी ने खबर देखी। मुझे बुलाया। कहा, ‘ये खबर मेरी जानकारी के बिना कैसे छपी?’

मैं जरा घबराया। ‘मैंने नौनिहाल जी को दी थी… उन्होंने लगाई…’, किसी तरह इतना ही कह पाया।

अखबार पर हो रही चर्चा देखकर नौनिहाल अपनी कुर्सी से उठकर आए। मुझसे इशारे से पूछा कि क्या बात है। मैंने कहा, ‘गुरू, इस खबर को लेकर डांट पड़ रही है।’ वे अपनी मेज पर गए। ड्रॉअर खोली। एक फाइल निकाली। मंजूर अहमद की दोनों विज्ञप्तियां निकालीं। बाबूजी के हाथ में देकर एक कागज पर लिखा, ‘ये देखिए। इन्होंने खुद लिखकर भेजा है। अखबार ने अपनी तरफ से कुछ नहीं छापा।’

बाबूजी ने दोनों विज्ञप्तियां देखीं। मुस्कराए। बोले, ‘मंजूर साहब, बात खत्म कीजिए। चाय मंगाता हूं।’ मंजूर अहमद को काटो तो खून नहीं। चाय पीकर चले गए। जाते-जाते नौनिहाल को जरूर घूरकर देखा।

उनके जाने के बाद बाबूजी ने मुझे बुलाया। कहा, ‘अभी तुम्हें पत्रकार बने जुम्मा-जुम्मा आठ दिन नहीं हुए। चले हो पंगा लेने। जरा धीरे-धीरे कदम बढ़ाओ।’

‘जी बाबूजी’, कहकर मैं नौनिहाल के पास जाकर काम करने लगा। मन उचट गया। नौनिहाल ने भांप लिया। कमर पर धौल जमाते हुए कहा, ‘इस बात को दिल पर मत ले। अखबार में यह तो सब तो होता ही रहता है। काम बढ़ा।’

मुझे ताज्जुब इस बात का था कि डांट क्यों नहीं पड़ी। उन दिनों मेरठ में मंजूर अहमद की तूती बोलती थी। और बाबूजी के बारे में कहा जाता था कि वे किसी से पंगा नहीं लेते।

मैंने अपनी जिज्ञासा नौनिहाल को बताई। वे मुस्कराए। एक शरारती मुस्कान। ‘मेरी खास ट्रिक से बच गया तू’, बोले।

‘कैसी ट्रिक?’

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘मैंने यह नहीं कहा कि तूने अपनी तरफ से कुछ नहीं छापा। यह कहा कि अखबार ने अपनी तरफ से कुछ नहीं छापा। बाबूजी को अखबार से दिली लगाव है। उसके खिलाफ कुछ नहीं सुन सकते। इसीलिए उन्होंने अपनी शौली में मंजूर अहमद से कह दिया कि बात खत्म करो, चाय पियो।’

‘पर आपको कैसे पता चला कि उन्होंने ऐसा कहा था? आप तो सुन नहीं सकते।’

‘सुन नहीं सकता। पर देख तो सकता हूं।’

‘मतलब?’

‘होठों को पढ़ लेता हूं।’

और मैं नौनिहाल का कायल हो गया।

फिर तो मैंने उनसे मूक-बधिरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली साइन लैंग्वेज भी सीख ली। होठों को पढऩा भी। यह भुवेंद्र त्यागीपत्रकारिता में बाद में कई बार काम आया। किसी ने बहुत दूर से किसी से क्या कहा, इसका पता चल जाता था। इससे कई बार मुझे गरमागरम खबरें भी मिलीं।       

लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है। वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement