[caption id="attachment_15022" align="alignleft"]दयानंद पांडेय[/caption]आदरणीय यशवंत जी, नमस्कार। राजमणि सिंह जी और श्वेता रश्मि जी की आपत्तियां पढीं। पढ़ कर अफ़सोस ही हुआ। साहित्य में या जीवन में क्या श्लील है और क्या अश्लील, यह बहस बहुत पुरानी है। लगता है इन मित्रों ने सेक्स जीवन को ही अश्लील मान लिया है। कृष्ण बलदेव वैद्य का विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है, हिंदी अकादमी के शलाका सम्मान के बाबत। खैर, ऐसे तो समूचा साहित्य ही अश्लील हो जाएगा जो इस पैमाने पर चलें तो। कालिदास ने शंकर जी की पूजा में लीन पार्वती जी का वर्णन किया है। वह लिखते हैं कि पार्वती जी पूजा में लीन हैं, कि अचानक ओस की एक बूंद उन के सिर पर आ कर गिरती है। लेकिन उन के केश इतने कोमल हैं कि ओस की बूंद उनके कपोल पर आ गिरती है। और कपोल भी इतने सुकोमल हैं कि ओस की बूंद छटक कर वक्ष पर आ गिरती है। पर वक्ष इतने कठोर हैं कि ओस की बूंद टूट कर धराशाई हो जाती है।
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बी4एम पर अश्लीलता फैलाना बंद करिए
यशवंत जी, मैं आपके पोर्टल को लम्बे समय से पढ़ती आ रही हूं. भड़ास4मीडिया पर हम मीडिया से जुड़ी हर खबर को एक ही पल में जान जाते हैं. निरंतर अपने आसपास होने वाली घटना के प्रति सजग हैं और जानते हैं कि कहां पर क्या घटित हो रहा है. मीडिया फ़ील्ड से जुड़ा हर व्यक्ति दिन भर में एक बार भड़ास4मीडिया ज़रूर खोलता है और खबरों को समझता है. आपके पोर्टल पर इंटरव्यू अच्छे आते हैं. ख़बरें अच्छी होती हैं. आप लोगों के साथ उनकी लड़ाई में शामिल होते हैं. उन्हें लड़ने का ज़ज़्बा मिलता है.