पत्रकार सीएम डॉ. निशंक की डाक्टरी का पोस्टमार्टम

[caption id="attachment_21050" align="alignleft" width="63"]दीपक आजाद[/caption]शिशु मंदिर की मास्टरी से पत्रकार बने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की डाक्टरी इन दिनों चर्चा में है। सवाल उनकी साहित्यिक रचनाशीलता पर भी उठते रहे हैं। उनका पत्रकारीय कौशल उनके ही स्वामित्व वाले दोयम दर्जे के दैनिक अखबार सीमांत वार्ता में देखा-समझा जा सकता है।

रियान को उसके मां-बाप से मिलाने में आपकी मदद चाहिए

इस आस्ट्रेलियन दंपत्ति को आपकी मदद की दरकार है। ऋषिकेश से छह साल पहले लापता हुए पुत्र की तलाश में आस्‍ट्रेलियन मूल के जॉब चैम्बर्स अपनी पत्नी डायना के साथ बेटे की खोज कर रहे हैं। चैंबर्स दंपत्ति पिछले छह साल से अपने 27 वर्षीय पुत्र रियान चैम्बर्स की राह देख रहा है। काफी प्रयासों के बाद आज तक रियान का कोई पता नहीं चल पाया है।

अजय सेतिया की चाटुकारिता का ऋण उतार रहे हैं राजनाथ सिंह

[caption id="attachment_18358" align="alignleft" width="63"]दीपक आजाददीपक आजाद[/caption]: दिल्‍ली बेस्‍ड पत्रकार को सूचना आयुक्त बनाने पर उत्तराखंड में छिड़ा विवाद :  राज्यपाल ने लौटाई नियुक्ति फाइल :  उत्तराखंड में इन दिनों राज्य सूचना आयोग में दिल्ली से आयातित और उत्तराखंड के लिए एक अनाम से पत्रकार अजय सेतिया को सूचना आयुक्त बनाए जाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। विवाद की जड़ मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की वह जिद है,  जिसके तहत वे हर हाल में सेतिया को सूचना आयोग का दामाद बनाने पर तुले हुए हैं।

घर-घर गूंज रहे निशंक के घोटाले

[caption id="attachment_20520" align="alignleft" width="105"]नरेंद्र सिंह नरेंद्र सिंह[/caption]: निशंक की करतूतों पर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने लांच की आडियो सीडी :  यूपी सूचना विभाग की नौकरी में रहते हुए सरकारी दमन की चिंता किए बगैर उत्तराखंड आंदोलन को अपनी आवाज देने वाले प्रसिद्ध गढ़वाली लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी की एक आडियो सीडी से इन दिनों निशंक सरकार घबराई हुई है।

निर्वाचन आयोग की नाक के नीचे करोड़ों का घोटाला

दीपक आजादउत्तराखंड में भ्रष्टाचार की जड़े कहीं गहरे तक धंसी हुईं हैं। यह किसी सरकार या किसी चेहरे तक सीमित नहीं है। निर्वाचन आयोग के मातहत काम करने वाले राज्य निर्वाचन विभाग भी इस बीमारी से बचा नहीं है। भ्रष्ट और बेइमान किस्म के नौकरशाह इसे भी अपनी काली कमाई का जरिया बनाने में नहीं चूक रहे हैं। जिस निर्वाचन आयोग पर गर्व करने के लिए इस मुल्क की जनता के पास बहुत सारी वजहें मौजूद हैं, उसी आयोग के दिशा-निर्देशन में उत्तराखंड में चुनाव के नाम पर करोड़ों का घोटाला खुलकर सामने आया है।

बाबा रामदेव के दामन पर भी कम नहीं हैं दाग

दीपक आजाद: तहलका और संडे पोस्‍ट ने खोली पोल : स्विस बैंकों में जमा काली कमाई को स्वदेश लाने और देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ योग गुरु बाबा रामदेव के मुकाबले शायद ही कोई दूसरा शख्स इतना मुखर हो। रामदेव की इस मुखरता का हर वह आदमी कायल है, जो इस देश में भ्रष्टाचार रूपी राक्षसों से लड़ना चाहता है। इस मुखरता का मैं भी सम्‍मान करता हूं। लड़ाई अन्ना हजारे भी लड़ रहे है।

फिर से प्रकाशित होने लगा ‘द संडे पोस्‍ट’

दो अंकों के ब्रेक के बांद साप्ताहिक अखबार ‘द संडे पोस्ट’  फिर प्रकाशित होने लगा है। पिछले महीने ‘द संडे पोस्ट’  के प्रबंधन ने अपने जनपक्षीय तेवरों का हवाला देते हुए उत्तराखंड सरकार द्वारा विज्ञापनों पर लम्बे समय से प्रतिबंध लगाए जाने से अखबार बंदी का एलान कर दिया था। घोषणा के मुताबिक अखबार का प्रकाशन भी बंद कर दिया गया था। लेकिन इस बीच अखबार को बंद किए जाने के फैसले के पक्ष-विपक्ष में प्रतिक्रियाएं आने से अखबार के प्रबंधन ने दो अंकों के बाद फिर अखबार निकालना शुरू कर दिया है। अखबार अपने धारदार तेवरों के साथ बाजार में आ रहा है।

महामहिम! ये सरकार भ्रष्ट, निकम्मी और निर्लज्ज है

दीपकअपनी विशिष्टताओं और विरोधाभाषों के साथ भारतीय लोकतंत्र की छतरी के नीचे अपने उत्तराखंड ने अलग राज्य के रूप एक दशक की उम्र पार कर ली है। आपकी सरकार जो कह रही है उस पर यकीन करें तो उत्तराखंड में विकास की बाढ़ आई हुई है, और निशंक सरकार राज्य को देश का मॉडल स्टेट बनाने पर तुली हुई है।

उत्‍तराखंड में सरकारी चाटुकारिता का ठेका ईएमएस को

दीपक आजाद: पिछले पांच सालों में 32 लाख का भुगतान : यह अपने उत्तराखंड में ही हो सकता है कि सरकार मीडिया संस्थानों को अपनी चाटुकारिता में लगाने के लिए सालाना लाखों रुपयों का ठेका देने में भी किसी तरह की कोई शर्म या हया महसूस नहीं करती। सूचना महकमे में सालों से अपनी खबरों के लिए कम, धंधेबाजी के लिए कुख्यात एक्सप्रेस मीडिया सर्विस के साथ मिलकर सूचना विभाग के बाबू यह कमाल दिखा रहे हैं।

छापे की खबर को हजम कर गया राष्‍ट्रीय सहारा

देहरादून में सैफ विंटर गेम्स से संबंधित लेन-देन को लेकर आयकर विभाग ने छापामार कार्रवाई की है। गेम्स आयोजन समिति और खेल निदेशालय पर पड़े छापे की खबर को सभी प्रमुख अखबारों ने पहले पन्ने पर जगह दी है, लेकिन राष्ट्रीय सहारा के कर्ताधर्ता इस पूरी खबर को हजम कर गए। सैफ खेल के कलमाड़ी माने जा रहे खेल सचिव राकेश शर्मा से याराना निभाने के लिए सहारा वालों ने यह करामात की है।

सैफ विंटर गेम्‍स के नाम पर यह कैसा तमाशा!

[caption id="attachment_18358" align="alignleft" width="63"]दीपक आजाददीपक आजाद[/caption]‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’, यह कहावत उत्तराखंड में इन दिनों खासा गरम है। सैफ विंटर गेम्‍स के नाम पर देहरादून से लेकर औली तक में जो कुछ हुआ, उसके केंद्र में यह फिट बैठती है। कंपकंपाती ठंड के बीच हुए सैफ विंटर गेम्स, कॉमनवेल्थ की तर्ज पर सवाल उठाते हैं कि आखिर इन खेलों की जरूरत किसको है? इंडिया को या भारत को।

यह कमिश्‍नर सरकारी संपत्ति को जागीर समझता है, इसे ट्रेनिंग दिया जाय

दीपकदेहरादून। कोई नौकरशाह जब अपने पर उतर आए तो वे कैसे भी गुल खिला सकते हैं। उत्तराखंड में स्टर्डिया जमीन घोटाले में राजनेताओं के साथ सरकारी बाबुओं ने कैसा रंग जमाया, यह जमाने के सामने बेपर्दा हो चुका है। अब जनता के पैसे पर पलने वाले नौकरशाहों का एक और चेहरा सामने आया है। एक मामले में हाईकोर्ट का कहना है कि सरकारी संपत्ति को अपनी जागीर समझने वाले कमिश्नर डॉ. उमाकांत पंवार को फिर से ट्रेनिंग के लिए आईएएस एकेडमी भेजा जाय, ताकि उन्हें प्रशासनिक कामकाज और अपने अधिकार क्षेत्र का पता चले सके। बकायदा हाईकोर्ट ने सरकार से इस बाबत हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

सहारा के संपादक और ब्‍यूरोचीफ भिड़े, नौबत पहुंची हाथापाई तक

देहरादून। लगता है राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय संपादक का विवादों के साथ चोली दामन का साथ है। ताजा मामले में तो सारी हदें ही पार हो गई। खबर रिपीट होने से उपजा विवाद इतना बढ़ा कि मामला हाथापाई तक पहुंच गया। बताते हैं कि भरी मीटिंग में हुए विवाद में संपादक एलएन शीतल, ब्यूरो चीफ अमरनाथ पर ऐसे उखड़े कि उन्होंने संपादक की गरिमा का भी खयाल नहीं रखा और अपने ही ब्यूरो चीफ पर हाथ उठाने के लिए अपनी सीट से खड़े हो गए।

सीएम और सीजे की हवाई यात्रा से उठ रहे सवाल

दीपकदेहरादून। हाईड्रो पॉवर, स्टर्डिया और मेडिकल कॉलेज जैसे जमीन घोटाले हाईकोर्ट की टेबल पर पहुंचने के साथ ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के भविष्य का सफर मानों दांव पर लग गया था। अदालत की चौखट से इनके पहुंचने से उपजे शोर-शराबे के बीच पिछले दिनों सरकारी हेलीकॉप्टर से पहाड़ों की सैर पर निकले हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बारेन घोष पर केंद्रित मुंहजबानी कानाफूसियों ने नई चर्चाओं को जन्म दे दिया।

हिमालय की संस्‍कृति से परिचित करा रहे हैं पत्रकार शंकर

राजजातअपने उद्भव काल से ही हिमालय और उसके इर्द-गिर्द मानव समाज की बसावट बाकी समाजों के लिए कई रूपों में कौतूहल व आश्चर्य से कम नहीं रहा है। हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं मानव समाज के लिए चुनौती भी पेश करती रहीं हैं। समय के साथ मनुष्य ने हिमालय की हैरान करने वाली चोटियों पर चढ़ाई कर अपने साहस और क्षमता का प्रदर्शन भी किया। हिमालय से गहरे तक जुड़े समाजों में अपने इसी साहस के बूते बाकी देशज समाजों से भिन्न अपनी तरह के सांस्कृतिक रिश्ते भी मेले-उत्सव के रूप में अस्तित्व में आए।.

निशंक का फर्जी हलफनामा और माया की उछाल!

निशंक : मुख्यमंत्री ने दो साल में दो हजार फीसदी की रफतार से बढ़ाया बैंक बैलेंस : दिल्ली से महाराष्‍ट्र-आंध्र, कनार्टक से उत्तराखंड तक भ्रष्ट नेता-नौकरशाहों का पापी गठजोड़ दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से घोटालों की गंगा में डुबकी लगा रहा है, बगैर किसी लोकलाज या भय के। बात उत्तराखंड की हो तो दस साल का यह हिमालयी राज्य देश के भ्रष्ट राज्यों से कहीं भी पीछे नहीं है।

हे प्रतापी निशंक इस ‘पापी विवेक’ का भांडा तो फूटना ही था!

दीपक अरबों के भूमि घोटाले में घिरे उत्तराखंड के पत्रकार मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अदा भी निराली है। पहले कायदे कानूनों को ठेंगा दिखा घोटाला करो और फिर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो समझो हो गई बल्ले-बल्ले। लेकिन पाप का घड़ा फूटने लगे तो बचाव के लिए बेशर्मी की हद तक उतर जाने में भी कोई संकोच नहीं। एक के बाद एक घोटालों में घिरते देख निशंक की अब तक की शैली यही है। लेकिन आखिर काली करतूतों पर पर्दा भी चढ़े रहे तो कब तक, वह तो कभी न कभी बेपर्दा हो ही जाती है।

सूचना विभाग का हाथी, चोरी का संपादकीय और प्रकाशक निशंक

दीपककिसी सूबाई सरकार के लिए सूचना महकमा उसके आंख-कान की भूमिका में होता है, जो उसकी योजनाओं को, उसके क्रियाकलापों को जनता तक पहुंचाने के लिए मीडिया के बीच एक कड़ी की भूमिका अदा करता है। इसका एक काम और भी होता है सरकार के पक्ष-विपक्ष से तालुक रखने वाली अखबारी कतरनों को समेटते रहना, ताकि सत्तासीन खुली आंखों से देख सकें। पर आज के राजाओं का सत्ता के मद में चूर होने का ही तकाजा है कि वे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते और जो ऐसा करते हैं, उनके कान मरोड़ने के लिए सूचना विभाग जैसे विशालकाय हाथी की कमान उनकी मुठठी में होती है।

हे महान संपादक अश्विनी कुमार महज कोरे उपदेश मत दो!

दीपक आजादअश्विनी कुमार संभवतः इकलौते ऐसे संपादक हैं जो अपने संपादकीय में हर सुबह शायरी और कविताओं के जरिये तल्खी के साथ उपदेशक की भूमिका में अपने पाठकों के बीच हाजिर होते हैं, पर उनके पंजाब केसरी का रंग-ढंग कम चौंकाने वाला नहीं है। शायद यह पंजाब केसरी में ही हो सकता है कि एक पत्रकार जो पूरे एक दशक से केसरी का चेहरा हो, लेकिन उसका ही अखबार उसे पहचानता तक न हो। उत्तराखंड में पंजाब केसरी को ढो रहे एक पत्रकार की कहानी हैरान करने वाली तो है ही, केसरी की धंधेबाजी वाला चेहरा भी बेपर्दा करती है।

प्रवासी पंछी हैं प्रभात डबराल

दीपक आजाददेहरादून। पत्रकार से सूचना आयुक्त बने प्रभात डबराल के उत्तराखंडी प्रेम को लेकर राज्य के मीडिया हलकों में एक तल्ख बहस चल रही है। कहा जा रहा है कि डबराल एक ऐसे प्रवासी पंछी हैं जो अपना बुढ़ापा काटने के लिए उत्तराखंड चले आए हैं। ऐसे में अब प्रभात को ही साबित करना होगा कि उन्होंने महज बुढ़ापा काटने भर के लिए दिल्ली से देहरादून के लिए उड़ान नहीं भरी है। वे ऐसा कर पाते हैं या नहीं, यह समय बताएगा।

मर्सिया पढ़ना हो तो उत्तराखंड चले आइये

दीपकझूठ के पांव नहीं होते, यह अतीत का फलसफा सा लगता है। पर झूठ के पांव तलाशने हों तो देव-प्रेतात्माओं की ‘मरू-भूमि’ उत्तराखंड में इसके दर्शन किए जा सकते हैं, वह भी बिना किसी लागलपेट के। तहलका को दिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के इंटरव्यू के कुछ अंश सच-झूठ की सियासत का मर्सिया पढ़ने जैसे किसी दर्शन पर सिर खुजाने जैसा है।

प्रशासन ने फिर सील किया देहरादून प्रेस क्‍लब

तालाउत्तराखंड में मीडिया कई तरह के संकटों का सामना कर रहा है। कुछ संकट सत्ता की हनक से सियासत ने पैदा किए हैं तो कुछ पत्रकारों की आपसी धींगामस्ती उसे आलोचनाओं और विश्वसनीयता के ह्रास के भंवर में धकेल रही है। पत्रकारों के आपसी टकरावों के चलते दो साल से सीलबंद प्रेस क्लब का ताला पत्रकारों के एक धड़े ने दिवाली मिलन पर कानून की परवाह किए बगैर तोड़ दिया।

चाटुकारिता, जीहुजूरी और विज्ञापन

आजाददुनियाभर के धर्मग्रंथ ढेर सारे नीति वाक्यों से लदे-पड़े हैं। अपने अनुचरों को राह दिखाने दिखाने वाले इन नीति मंत्रों की झलक हर रोज हमारे-तुम्हारे दरवाजे पर दखल देने वाले अखबारों के आगे-पीछे के पन्नों पर दर्ज होती है। पर क्या हमारे समय में अखबारी लाल इन पर अमल करते हैं? इस सवाल का जवाब कुछ हां, कुछ ना में ही हो सकता है।