: उपन्यास – लोक कवि अब गाते नहीं (4) : कल परसों में तो जैसा कि पत्रकार ने लोक कवि को आश्वासन दिया था बात नहीं बनी लेकिन बरसों भी नहीं लगे। कुछ महीने लगे। लोक कवि को इसके लिए बाकायदा आवेदन देना पड़ा। फाइलबाजी और कई गैर जरूरी औपचारिकताओं की सुरंगों, खोहों और नदियों से लोक कवि को गुजरना पड़ा।