: सुनो भाई साधो – 3 : सुषमा जी नाची तो मेरा मन भी नाचने को हुआ। पता नहीं वे जानती कि नहीं पर मैं जानता हूं कि सबहिं नचावत राम गुसाई। समूचा जगत एक विशाल रंग-मंच की तरह है। हम सभी नाच रहे हैं। एक अदृश्य धागे में बंधे हुए, जिसका सूत्र किसी और के हाथ में है। एक झीने पर्दे के पीछे खड़ा वह सबको नचा रहा है।
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समय से आगे देखने की जरूरत : डॉ. सुभाष राय
: उपन्यासकार रवीन्द्र प्रभात का नागरिक अभिनन्दन : बाराबंकी-रामनगर । आज समय के आगे देखने की जरूरत है। जब हम अपने वर्तमान में खड़े होंगे तभी समय के आगे देख सकेंगे। अपने समय के सच से जनता को रूबरू कराना मीडिया का काम है। कबीर और बुद्ध अपने समय में रहकर समय के आगे की दृष्टि अर्जित करने वाले अपने समय के प्रतिनिधि महापुरूष हैं।
कमजोर पड़ते शब्द
: सुनो भाई साधो – 2 : अक्सर यह तय करना हर किसी के लिए मुश्किल होता है कि जीवन में क्या करना है, क्यों करना है, किसके लिए करना है। सही निर्णय लेने की समझ बहुत कम लोगों में विकसित हो पाती है। हम जिन सामाजिक, पारिवारिक परिस्थितियों में जन्म लेते हैं, जिन संस्कारों के बीच बड़े होते है, बहुत कुछ उन्हीं पर निर्भर करता है। जीवन, समाज और राजनीति की गहरी समझ के बिना सही रास्ता समझ में नहीं आ सकता।
ढाई आखर प्रेम का
: सुनो भाई साधो : जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फुटा कुंभ जल जलहिं समाना, यह तथ कहे गियानी। कबीर के अनेक रूप हैं। कभी बाहर, कभी भीतर, कभी बाहर-भीतर दोनों ही जगह। वे सबमें खुद को ढूढते हैं, सबको अपने जैसा बनाना चाहते हैं। कभी कूता राम का तो कभी जस की तस धर दीनी चदरिया वाले व्यक्तित्व में.. कभी ढाई आखर की वकालत करते हुए…
डा. सुभाष राय के पिता का कानपुर में निधन
जनसंदेश टाइम्स के एडिटर डा. सुभाष राय के पिता रामायण राय का रविवार की सुबह कानपुर में निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे. परिवार में सुभाष राय के अलावा दो अन्य भाई हैं.
जनसंदेश टाइम्स के संपादक के घर चोरी
: कुछ ही दिन पहले आगरा से लखनऊ गए थे डा. सुभाष राय : घर पर किसी को न देख चोरों ने कहर ढाया : उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है. कहीं कोई सुरक्षित नहीं दिख रहा है. कानपुर में पत्रकार को पुलिस द्वारा पीटे जाने की घटना के ठीक बाद अब सूचना आ रही है कि वरिष्ठ पत्रकार डा. सुभाष राय के घर को चोरों ने साफ कर दिया है. डा. राय अभी तक आगरा में डीएलए के संपादक विचार हुआ करते थे. उन्होंने आगरा में ही खुद का मकान बनवा लिया और लंबे समय से आगरा में रह रहे थे.