एक सूर्यग्रहण आया और चला गया। प्रकृति का नियम है। हर साल कई बार सूर्य और चंद्र ग्रहण लगते हैं। उसका खगोल शास्त्रीय महत्व होता है, वैज्ञानिक उस पर रिसर्च करते हैं, जो भी नतीजे होते हैं, संभाल कर रख लिए जाते हैं। हो सकता है कि उसका ज्योतिष पर भी कोई असर पड़ता हो, भविष्यवाणी करने या प्राकृतिक आपदा की पूर्व सूचना होती हो, साधारण आदमी के लिए कुछ कहना संभव नहीं है। साधारण आदमी के लिए जो संभव है, वह ये कि न्यूज के नाम पर टीवी चैनलों को देखना बंद कर दें क्योंकि वह उसके बस में है। इस बार के सूर्य ग्रहण की कवरेज में टीवी न्यूज की कमजोरी पूरी तरह से रेखांकित हो गयी है। आज के टीवी चैनलों के कुछ पुरोधा यह तर्क देते हैं कि अब पत्रकारिता वह वाली नहीं रह गयी है, जो पहले हुआ करती थी। कहते हैं कि पत्रकारिता अब आधुनिक हो गयी है, इसके मुहावरे बदल गये हैं, उसका व्याकरण बदल गया है। इसलिए अब टीवी चैनल पर जो कुछ दिखाया जायेगा, वह बिल्कुल आधुनिक होगा और उसके संदर्भ पुरानी पत्रकारिता से नहीं लिये जायेंगे। यह तर्क बहुत ही जोर-शोर से दिया जा रहा है और सूर्य ग्रहण लगने के तीन दिन पहले से जिस तरह की कवरेज शुरू हुई, लगता है कि अब इस पर अमल भी हो गया है…इस देश की पत्रकारिता देश के आम आदमी के लिए दुर्भाग्य की बात है, क्योंकि राजनीतिक नेताओं ने तो आम आदमी की खैरियत पूछना बहुत पहले बंद कर दिया था। वे उन्हीं मुद्दों पर ध्यान देते थे, जो मीडिया में उछल जाते थे। नेता बिरादरी की पूरी कोशिश रहती है कि वे मुद्दे मीडिया में न आयें जो उनके लिए असुविधाजनक हों।