24, पुष्प मिलन, वार्डन रोड, मुंबई-36 के सिरहाने से झांकती ग्यारह अक्टूबर की सुबह

आलोक श्रीवास्तव: मुंबई से लौटकर आलोक श्रीवास्तव की रिपोर्ट : ऐसे भी जाता नहीं कोई… :  जबसे जगजीत गए तब से क़ैफ़ी साहब के मिसरे दिल में अड़े हैं – ‘रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई।’ और दिल है कि मानने को तैयार नहीं। कहता है – ‘हम कैसे करें इक़रार, के’ हां तुम चले गए।’

दुख को स्थायी भाव बना चुके एक शराबी का प्रवचन

यशवंत: एक शराबी मित्र मिला. वो भी दुख को स्थायी भाव मानता है. जगजीत की मौत के बाद साथ बैठे. नोएडा की एक कपड़ा फैक्ट्री की छत पर. पक रहे मांस की भीनी खुशबू के बीच शराबखोरी हो रही थी. उस विद्वान शराबी दोस्त ने जीवन छोड़ने वाली देह के आकार-प्रकार और पोस्ट डेथ इफेक्ट पर जो तर्क पेश किया उसे नए घूंट संग निगल न सका… :

इस बार सच कह रहे थे कमबख्त चैनल वाले!

दिनेश चौधरी: जगजीत सिंह बरास्ते अमिताभ (तीन) : जगजीत साहब के चले जाने की खबर एक चैनल पर देखकर झटका लगा। पर उम्मीद खत्म नहीं हुई थी, यह सोचकर कि ये चैनलवाले तो उल्टी-सीधी सच-झूठ खबरें देते ही रहते हैं, चलो किसी और चैनल पर देखें। चैनल बदल दिया। लेकिन दूसरे-तीसरे हरेक चैनल पर यही खबर। पिछली बार एक मित्र ने कहा था कि जब किसी इंसान के गुजर जाने की झूठी खबर चल जाये तो उसकी उम्र बढ़ जाती है।

उस रोज़ जगजीत भाई किसी दूसरे ही जग में थे

: हमेशा आसपास ही कहीं सुनाई देती रहेगी मखमली आवाज़ : बात थोड़ी पुरानी हो गई है। लेकिन बात अगर तारीख़ बन जाए तो धुंधली कहाँ होती है। ठीक वैसे जैसे जगजीत सिंह की यादें कभी धुंधली नहीं होने वालीं। ठीक वैसे ही जैसे एक मखमली आवाज़ शून्य में खोकर भी हमेशा आसपास ही कहीं सुनाई देती रहेगी। जगजीत भाई यूएस में थे, वहीं से फ़ोन किया – ‘आलोक, कश्मीर पर नज़्म लिखो। एक हफ़्ते बाद वहां शो है, गानी है।’

जगजीत सिंह बरास्ते अमिताभ (दो)

दिनेश चौधरीजगजीत सिंह साहब की महानता केवल इतने में नहीं है कि वे अच्छा गाते हैं या अच्छा गाते हुए वे बहुत ज्यादा लोकप्रिय भी हुए। बड़ी बात यह है कि उन्होंने ग़ज़ल गायन को एक संस्थागत रूप प्रदान किया और किसी रिले रेस की तरह वे अन्य गायकों को अपने साथ जोड़ते चले गये। दूसरे स्थापित गायकों की तरह उन पर कभी भी यह आरोप नहीं लगा कि उन्होंने किसी नवोदित ग़ज़ल गायक के रास्ते में कोई बाधा खड़ी की हो।

मेरी व्यक्तिगत और व्यावसायिक छवि धूमिल करने की कोशिश : अतुल अग्रवाल

प्रिय अनिमेष, मैं न्यूज़ एक्सप्रेस चैनल का एंकर अतुल अग्रवाल हूं। आपने भड़ास4मीडिया पोर्टल पर जगजीत सिंह की मौत वाले अपने लिखे भ्रामक लेख में एंकर अतुल अग्रवाल का नाम लिया है। आपके विचार प्रकाशित भी हुए हैं, जिसके मुताबिक ‘एंकर अतुल अग्रवाल चीख-चीख कर जगजीत सिंह की मौत वाली ख़बर पढ़ रहे थे।’ आपका ये कथन सवर्था सत्य के परे है और मेरी व्यक्तिगत और व्यावसायिक छवि को धूमिल करने वाला है।

जगजीत को ‘मार डालने’ वाला टीवी जर्नलिस्ट सस्पेंड, ब्यूरो चीफ को नोटिस

हाल में ही लांच हुए न्यूज चैनल ‘न्यूज एक्सप्रेस’ की इन दिनों काफी किरकिरी हो रही है. मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह के निधन की इस न्यूज चैनल ने परसों झूठी खबर चला दी थी. यह गलत खबर देने वाले न्यूज एक्सप्रेस के मुंबई ब्यूरो के रिपोर्टर नसीम खान को सस्पेंड कर दिया गया है. चर्चा है कि नसीम को बर्खास्त भी किया जा सकता है. मुंबई के ब्यूरो चीफ विवेक अग्रवाल को न्यूज एक्सप्रेस प्रबंधन ने नोटिस जारी किया है.

खुशखबरी, जगजीत सिंह की तबीयत पहसे से बहुत बेहतर है

आलोक श्रीवास्तव: ‘जग जीत’ ने वाले यूं नहीं हारते : तकलीफ़ क्या बांटनी? दुख को क्या सांझा करूं? जगजीत सिंह जी पिछले चार रोज़ से आईसीयू में हैं। एक महफ़िल में गाते हुए ब्रेन हैमरेज हुआ और फिर मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में ऑपरेशन। परसों मुंबई से ही मित्र रीतेश ने मैसेज किया, फ़िक्र जताई – आलोक भाई, जगजीत जी ठीक तो हो जाएंगे न? उनकी आवाज़ में सजा आपका एक शेर कल से ज़हन में मायूस घूम रहा है –

मेरी नज़्म और ‘जग जीत’ ने का हुनर

आलोक बात थोड़ी पुरानी हो गई है। लेकिन बात अगर तारीख़ बन जाए तो धुंधली कहाँ होती है। बात,1 दिसंबर 2009 की है। जगजीत जी यूएस में थे, वहीं से फ़ुनियाया- ‘आलोक, कश्मीर पर नज़्म लिखो। 9 दिसंबर को वहां शो है, गानी है।’ मैंने कहा- ‘मगर मैं तो कभी कश्मीर गया नहीं। हां, वहां के हालाते-हाज़िर ज़रूर ज़हन में हैं, उन पर कुछ लिखूं.?’ ‘नहीं कश्मीर की ख़ूबसूरती और वहां की ख़ुसूसियात पर लिखो, जिनकी वजह से कश्मीर धरती की जन्नत कहा जाता है। 4 दिसंबर को इंडिया आ रहा हूं तब तक लिख कर रखना। सुनूंगा।’ हुक्म जगजीत जी का था, तो ख़ुशी के मारे पांव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। मगर कांप भी रहे थे कि इस भरोसे पर खरा उतर भी पाऊंगा, या नहीं.? बहरहाल।