अन्ना के समर्थन में और भूषण पिता पुत्र के खिलाफ

संपादक महोदय, भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले अन्ना हजारे अपने कुछ साथियों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों पर चुप क्यों हैं?  सरकार से भ्रष्ट मंत्रियों व भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अपेक्षा रखने वाले अन्ना हजारे को अपनी टीम को आरोप मुक्त रखना होगा. इसीलिए जरूरी है कि भूषण पिता-पुत्र पर लग रहे आरोपों की स्वतंत्र जांच कराई जानी चाहिए और आरोपों की जांच पूरी होने तक भूषण पिता-पुत्र को ड्राफ्ट कमेटी से स्वतः हट जाना चाहिए या हटा दिया जाना चाहिए.

घनघोर दिनों में अचानक इतना उजास… क्या यही चमत्कार है!

नीरज भूषण भावनाओं का महल, मृगतृष्णाओं का पहाड़; सूनी-सहमी आत्माएं, अवाक खड़ा देश…  कहीं यह अप्रैल फूल तो नहीं : तब हमें देश की जनसँख्या बताई गई थी. हम सवा अरब हो चुके थे. इतने सारे मानव. इतने सारे. हमें लगने लगा– चंद दानवों को तो चुटकी में ही मसल देंगे. तभी हमनें दर्जन भर क्रिकेट खेलने वाले देशों की महफिल में वर्ल्ड कप पर भी कब्ज़ा जमाया था.

गोपाल को जबरन उठा ले गई पुलिस

[caption id="attachment_15583" align="alignleft"]अस्पताल में भर्ती गोपाल रायअस्पताल में भर्ती गोपाल राय, हाथ में कई जगह सुई घुसने से खून के निशान[/caption]गोपाल राय को आमरण अनशन के आज 10वें दिन जंतर-मंतर से दिल्ली पुलिस ने उठा लिया और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दाखिल कराया। गोपाल और उनके साथियों ने पुलिस हस्तक्षेप का विरोध किया। पर पुलिस नहीं मानी। उन्हें उठाकर जिप्सी में पटक दिया गया। अस्पताल में जब गोपाल को जबरदस्ती ग्लूकोज चढ़ाने की कोशिश हुई तो उन्होंने मना कर दिया। ग्लूकोज चढ़ाने के लिए सिरिंज लगाने से इनकार किया। इस विरोध व छीनाझपटी में निडिल उनके हाथ में कई जगह घुस गई और खून बहा। पुलिस व अस्पतालकर्मियों ने जबरन काबू कर ग्लूकोज चढ़ाने की प्रक्रिया प्रारंभ की।

जंतर-मंतर मरने पहुंचे हैं गोपाल राय

[caption id="attachment_15572" align="alignleft"]गोपाल राय : जंतर-मंतर पर आमरण अनशनगोपाल राय : जंतर-मंतर पर आमरण अनशन[/caption]गोपाल राय पिछले 9 दिन से बिना खाये-पिये जंतर-मंतर पर लेटे हैं। आमरण अनशन कर रहे हैं वे। मित्र हैं। इलाहाबाद में बीए के दिन से। छात्र राजनीति में साथ-साथ सक्रिय हुए थे हम दोनों। बाद में मैं बीएचयू चला गया था और वो लखनऊ विवि। संगठन के होलटाइमर भी साथ-साथ ही बने थे। करीब-करीब साथ-साथ ही संगठन से मोह भी टूटा था। किसी भी तरह का गलत होते न देख पाने वाले गोपाल राय लखनऊ विश्वविद्यालय में गुंडों से हर वक्त टकराया करते थे। उनके व्यक्तित्व में अदम्य साहस और आत्मविश्वास है। भय से तो भाई को तनिक भी भय नहीं लगता। चट्टान की तरह अड़ जाता है।