लोक कवि ने सम्मान दिलाने को कहा तो पत्रकार ने डांसर की डिमांड की

: उपन्यास – लोक कवि अब गाते नहीं (3) : कभी कभार तो अजब हो जाता। क्या था कि लोक कवि की टीम में कभी कदा डांसर लड़कियों की संख्या टीम में ज्यादा हो जाती और उनके मुकाबले युवा कलाकारों या संगतकर्ताओं की संख्या कम हो जाती। बाकी पुरुष संगतकर्ता या गायक अधेड़ या वृद्ध होते जिनकी दिलचस्पी गाने बजाने और हद से हद शराब तक होती।

चले गए बालेश्वर

[caption id="attachment_19156" align="alignleft" width="107"]स्वर्गीय बालेश्वरस्वर्गीय बालेश्वर[/caption]: स्मृति-शेष : सुधि बिसरवले बा हमार पिया निरमोहिया बनि के :  अवधी की धरती पर भोजपुरी में झंडा गाड़ गया यह लोक गायक : जैसे जाड़ा चुभ रहा है देह में वैसे ही मन में चुभ रहा है आज बालेश्वर का जाना। इस लिए भी कि वह बिलकुल मेरी आंखों के सामने ही आंखें मूंद बैठे। बताऊं कि मैं उनको जीता था, जीता हूं, और शायद जीता रहूंगा।

क्या! जो टॉयलेट में घुसा था, वो पत्रकार था?

: मुजरिम चांद (अंतिम भाग) : डाक बंगले से थाने की दूरी ज्यादा नहीं थी। कोई 5-7 मिनट में पुलिस जीप थाने पहुंच गई। सड़क भी पूरी ख़ाली थी। कि शायद ख़ाली करवा ली गई थी। क्योंकि इस सड़क पर कोई आता-जाता भी नहीं दिखा। हां, जहां-तहां पुलिस वाले जरूर तैनात दिखे। छिटपुट आबादी वाले इलाकों में सन्नाटा पसरा पड़ा था। रास्ते में एकाध खेत भी पड़े जिनमें खिले हुए सरसों के पीले फूलों ने राजीव को इस आफत में भी मोहित किया।

का बे तुम्हीं वह प्रेस वाला है?

‘मुजरिम चांद’ नामक यह कहानी दस साल पहले जब ‘कथादेश’ पत्रिका में छपी थी तब पत्रकारों में खूब चर्चित हुई थी. इस कहानी की प्रासंगिकता तब तक बनी रहेगी जब तक रिपोर्टिंग जिंदा रहेगी. रिपोर्टिंग में नित नई चुनौतियों की ही कथा है ‘मुजरिम चांद’.  -एडिटर