जितने पतित होंगे, उतनी ”सीधी बात”, फिर ”सच्ची बात” और आखिर में ”तीखी बात” करेंगे!

प्रभु चावला रोल माडल हैं. बाजार के. बाजारू मीडिया के. उन पत्रकारों के भी जिन्हें ढेर सारा पैसा और खूब सम्मान-वम्मान व नक्शेबाजी चाहिए. प्रभु चावला परंपरागत मीडिया के आदर्श पुरुष हैं. नीरा राडिया से फोन पर चोंच लड़ाते-बतियाते पकड़े गए, कुछ नहीं हुआ. अमर सिंह से बतियाते-रिरियाते पकड़े गए, कुछ नहीं हुआ. अरे, इसे आप होना कहते हैं कि वे आजतक से हटा दिए गए, इंडिया टीवी से हटा दिए गए.

नोटिस की बात आप आज प्‍लीज मत बोलना, मैं हाथ जोड़ रहा हूं आपके आगे : प्रभु चावला

कल प्रभु चावला आईबीएन7 पर दिखे. उसी आईबीएन7 पर जिसके प्रबंध संपादक आशुतोष हैं. ये वही प्रभु चावला हैं जो नीरा राडिया से ढेर सारी बातें करते पाए गए और इन्हें इंडिया टुडे-आजतक से जाना पड़ा. और ये वही आशुतोष हैं जिन्होंने नीरा राडिया टेप में पाए गए पत्रकारों को दल्ला कहा था और उनकी हरकतों को दल्लागिरी का नाम दिया था (आशुतोष का लिखा पढ़ने के लिए क्लिक करें- दल्ला और दल्लागिरी).

नई पीढ़ी के पत्रकारों में खबरों की भूख नहीं है : प्रभु चावला

इंडियन एक्‍सप्रेस के संपादकीय निदेशक प्रभु चावला को नई पीढ़ी के पत्रकारों से ज्‍यादा उम्‍मीद नहीं है. प्रभु चावला को नए पत्रकारों में खबरों की भूख नहीं दिखती है. खबरों को खोजने और तथ्‍यों की कसौटी पर परखने की बजाय आज के पत्रकार नेताओं और कारपो‍रेट घराने की मेनुपुलेटेड खबरों को लिख रहे हैं. प्रभु चावला इंडियन इंस्‍टीट्यूट आफ जर्नलिज्‍म एंड न्‍यू मीडिया (आईआईजेएनएम) , बंगलुरू के दीक्षांत समारोह में 2011 के पत्रकारिता के छात्रों को संबोधित कर रहे थे.

प्रभु चावला बोले- I am not a duplicitous personality

प्रभु चावला का द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में पाठकों से सीधे संवाद का अंदाज दिन प्रतिदिन लोकप्रिय होता जा रहा है. ये वही प्रभु चावला हैं जो सेलीब्रिटिज से सीधी बात किया करते थे आजतक पर. टीवी टुडे समूह से विदाई के बाद प्रभु चावला ने जब द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ज्वाइन किया तो उन्होंने किसी और से सीधी बात करने की जगह अपने पाठकों से खुद को मुखातिब कर सीधी बात शुरू कर दी. पाठक जो भी पूछते हैं, प्रभु चावला उसका जवाब देते हैं. पेश है पाठकों के कुछ सवाल और प्रभु चावला के जवाब…

मुश्किल सवालों से जूझते प्रभु चावला की आइए थोड़ी तारीफ कर दें

कोई आदमी न तो पूरी तरह बुरा होता है और न पूरी तरह अच्छा. सुधरने और समझने की गुंजाइश सबके भीतर होती है. और, अक्सर लोग अनुभवों से सीखते हुए आगे के लिए नए तौर-तरीके अपनाते हैं. लगता है प्रभु चावला ने भी इस बात को समझ लिया.

प्रभु चावला की कमी किसे अखरेगी?

आलोक आखिरकार इंडिया टुडे समूह ने प्रभु चावला से प्रिंट छुड़ा ही दिया। साठ साल की उम्र में जब लोग रिटायर होते हैं, प्रभु चावला एक बार फिर इंडियन एक्सप्रेस की नौकरी करने चल दिए। इंडियन एक्सप्रेस का विचित्र तथ्य यह है कि इसके दो हिस्से हैं। एक मूल इंडियन एक्सप्रेस जो उत्तर और पश्चिम भारत से निकलता हैं और दूसरा न्यू इंडियन एक्सप्रेस जो बंटवारे के बाद दक्षिण भारतीय प्रदेशों से चलता है। यह संयोग भी हो सकता है कि इस इंडियन एक्सप्रेस के ताकतवर संपादक शेखर गुप्ता एनडीटीवी के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम के संचालक हैं और प्रभु चावला को विस्थापित करने के पीछे उन एम जे अकबर का नाम लिया जाता है, जिन्होंने अपने अखबार संडे गार्जियन में एनडीटीवी की आर्थिक अनियमितताओं की खाट खड़ी की हैं और अब मुकदमा झेल रही है। इसके अलावा इन तीनों अखबारी हस्तियों में प्रभु चावला का सीधी बात शो जो टीवी पर आता है वह काफी टेढ़ा और हास्यास्पद है।

राडिया रेडिएशन

रमेशपूरे पत्रकार जगत में आजकल नीरा राडिया का नाम रेडिएशन की तरह फ़ैल गया है. ख़ास करके दिल्ली के पत्रकार एक दूसरे से मजाक में ही सही, यह पूछना नहीं भूल रहे हैं कि डियर! तुमको भी राडिया ने फोन किया या नहीं? पूरा मामला एक उच्च स्तरीय महिला दलाल और सत्ता के गलियारों में उसकी घुसपैठ का है और कहने में गुरेज नहीं कि जिसे नीरा ने फोन किया और उनके टेप एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सार्वजनिक हो गए, वे अब खिसियाकर अपना खम्भा भूल दूसरे का खम्भा नोच रहे हैं. इस पूरे एपिसोड में और भी दिलचस्प यह है कि बहुत से लोग प्रवचन बघार रहे हैं, और ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अब तक नहीं फंसे.

मीडिया की नपुंसक संस्थाएं

अखिलेश जिस राडिया प्रकरण को लेकर देश दुनिया मे भारत की भद्द पिट रही है, उस प्रकरण को सरकार का भ्रष्टाचार माना जाये या मीडिया में अब तक का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, क्योंकि इस राडिया प्रकरण ने भारतीय मीडिया और उसके बड़ी मूंछ वालों की कलई खोल दी है।  लेकिन शुक्र है राडिया प्रकरण की, जिसने यह भी साबित कर दिया है कि जिस बड़े पत्रकारों का नाम जप कर नए व पुराने मीडियाकर्मी अघाते नहीं थे, वे पूंछ उठने के बाद मादा निकल गए।

वीर, बरखा, राजदीप, प्रभु अपनी संपत्ति बताएं

: लोकतंत्र के चौथे खंभे (पत्रकारिता) को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने के संदर्भ में आरटीआई एक्टिविस्ट अफरोज आलम साहिल का एक खुला पत्र : सेवा में, महोदय, मैं अफ़रोज़ आलम साहिल। पत्रकार होने के साथ-साथ एक आरटीआई एक्टिविस्ट भी हूं। मैं कुछ कहना-मांगना चाहता हूं। मेरी मांग है कि लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी मीडिया को सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाया जाए। लोकतंत्र के पहले तीनों खंभे सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में आते हैं। यह कानून कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों पर लागू होता है। इसका मक़सद साफ है कि लोकतंत्र को मज़बूत किया जा सके।