राजेंद्र यादव का हांफना और निशंक की रचना छापना

यशवंत

हिंदी पट्टी के लोगों में उद्यमिता के लक्षण कहीं दूर दूर तक नहीं होते. सिपाही से लेकर कलेक्टर तक बनने की हसरत लिए बच्चे जवान होते हैं और बीच में कहीं घूसघास के जरिए या टैलेंट के बल पर फिटफाट होकर नौकरी व उपरी कमाई का काम शुरू कर देते हैं और इस प्रकार जिंदगी की गाड़ी टाप गीयर में दौड़ाने लगते हैं.

कभी पिकनिक मनाने गए और कोई गरीब दिखा, उस पर कहानी दे मारी : राजेंद्र यादव

: नई सदी कविता से मुक्ति का दौर है : वह हिंदी साहित्य में एक लंबा रास्ता तय कर चुके हैं। नई कहानी के दौर को आगे बढ़ाने से लेकर हंस जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका को लगातार चलाते रहने तक राजेंद्र यादव के नाम से बहुत-सी उपलब्धियां जुड़ी हैं। हाल ही में शब्द साधक पुरस्कार दिए जाने के मौके पर प्रेम भारद्वाज ने राजेंद्र यादव से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश :

‘हंस’ जिंदा है तो सिर्फ राजेंद्र यादव की जिजीविषा से

उमेश चतुर्वेदी: पच्चीस साल का हंस और जीवट के राजेंद्र यादव : हिंदी में जब सांस्कृतिक पत्रिकाओं की मौत हो रही थी, धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं के दिन लदने लगे थे, हिंदीभाषी इलाके की बौद्धिक और राजनीतिक धड़कन रह चुकी पत्रिका दिनमान के दम भी उखड़ने लगे थे, उन्हीं दिनों हंस को पुनर्जीवित करने का माद्दा दिखाना ही अपने आप में बड़ी बात थी।

दो दिन, दो आयोजन और मेरी भागदौड़… राजेंद्र यादव से बीएचयू वालों तक…

: राजेंद्र यादव की पीसी और बीएचयू के पूर्व छात्रों की बैठक की नागरिक रिपोर्टिंग :

राजेंद्र यादव क्या ‘बजा’ रहे हैं?

विख्यात साहित्यकार राजेंद्र यादव के जन्मदिन पर ली गई एक तस्वीर. ढोल उर्फ ढोलक पर स्त्री शब्द लिखा होना और इसे राजेंद्र यादव का बजाना कई अर्थों में विवाद को जन्म देने वाला है. लेकिन जमाना ऐसा है कि ”जो है नाम वाला वही बदनाम है”. राजेंद्र यादव की इस हरकत पर क्या कहा जाए!

राजेंद्र यादव की नजर में अमिताभ फासिस्ट!

[caption id="attachment_16917" align="alignleft"]राजेंद्र यादवराजेंद्र यादव[/caption]राजेंद्र यादव ने अमिताभ बच्चन के लिए ‘फासिस्ट’ शब्द का इस्तेमाल तो नहीं किया है लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा है, उसका लब्बोलुवाब किसी एक शब्द में फिट बैठता है तो वह यही शब्द है. राजेंद्र यादव नाराज हैं अमिताभ बच्चन और नरेंद्र मोदी की नजदीकी से. राजेंद्र यादव का साफ कहना है कि नरेंद्र मोदी के साथ खड़े होने का मतलब है उनके विचारों के साथ होना. दुनिया को पता है कि नरेंद्र मोदी की विचारधारा क्या है. पैसे के चक्कर में अमिताभ बच्चन ने बे-पेंदी के लोटे की तरह नेता और पार्टी बदलने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह अब खतरनाक चरण में पहुंच चुका है. वे नरेंद्र मोदी के समर्थन में खड़े हो गए हैं. उस नरेंद्र मोदी के समर्थन में जिसका वश चले तो धर्म के नाम पर लाखों-करोड़ों लोगों का कत्ल करा डाले. खफा राजेंद्र यादव 15 फरवरी को दिल्ली में एक न्यूज चैनल के पुरस्कार वितरण समारोह में इसलिए नहीं शामिल हो रहे हैं क्योंकि उस समारोह में पुरस्कार उसी अमिताभ के हाथों दिया जाने वाला है, जो नरेंद्र मोदी से मिल चुका है. राजेंद्र यादव की नाराजगी से संबंधित एक खबर आज जनसत्ता में प्रकाशित हुई है. राकेश तिवारी की इस खबर को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं ताकि पूरे विवाद को समझा जा सके. -यशवंत