‘पाकिस्‍तान की हकीकत से रू-ब-रू’ हुए राम बहादुर राय

: पुस्‍तक का विमोचन सम्‍पन्‍न : दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहें 17वें दिल्ली पुस्तक मेले में पाकिस्तान की असलियत से रू-ब-रू कराती पुस्तक पाकिस्तान की हकीकत से रू-ब-रू का विमोचन प्रख्यात पत्रकार रामबहादुर राय ने किया। डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक सहारा चैनल के वरिष्ठ पत्रकार सतीश वर्मा की दो बार की गई पाकिस्तान यात्राओं का वृतांत है, जिसमें पाकिस्तान की जमीनी हकीकत बयान करते हुए लेखक ने कई हैरतअंगेज खुलासे किए है।

प्रभाष जोशी ही नहीं, आलोक तोमर और उनकी पत्नी सुप्रिया का भी किया गया अपमान

प्रभाष जी के निधन के बाद उनकी स्मृति को संजोने के लिए न्यास बनाने का विचार उनके करीबी लोगों व परिजनों के दिमाग में आया तो न्यास के नामकरण का काम आलोक तोमर ने किया. आलोक तोमर के मुंह से निकले नाम को ही सबने बिलकुल सही करार दिया- ”प्रभाष परंपरा न्यास”. प्रभाष जोशी नामक शरीरधारी भले इस दुनिया से चला गया पर प्रभाष जोशी संस्थान तो यहीं है. प्रभाष जी की सोच, विचारधारा, सरोकार, संगीत, क्रिकेट, लेखन, जीवनशैली, सादगी, सहजता… सब तो है..

पत्रकारों को चाहिए तीसरा प्रेस आयोग!

पत्रकारों को तीसरा प्रेस आयोग क्यों चाहिए? पहले के दो प्रेस आयोगों की तरह क्या ये आयोग भी सरकारी रंग रौगन से सजा होगा या फिर उसे जन आयोग की शक्ल दी जानी चाहिए? या तीसरे प्रेस आयोग का गठन किसी पत्रकार के नेतृत्व में हो और उसमें सरकारी और पत्रकार बिरादरी की भागीदारी एक बराबर हो? ऐसे ही तमाम मुद्दों पर चर्चा प्रभाष परंपरा न्यास की एक संगोष्ठी में हुई।

मैं राम बहादुर राय, छुट्टा पत्रकार हूं

दरियागंज (दिल्ली) में ”प्रज्ञा” आफिस में कल शाम एक बैठक हुई. प्रभाष न्यास की तरफ से. एजेंडा था मीडिया के हालात पर चर्चा करना और प्रभाष जी की स्मृति में होने वाले आयोजन को फाइनलाइज करना. रामबहादुर राय ने संचालन किया और नामवर सिंह ने अध्यक्षता. बैठक की शुरुआत हो जाने के बाद राम बहादुर राय अचानक उठ खड़े हुए और बीच में बोलने के लिए मांफी मांगते हुए बोल पड़े.

रामबहादुर राय समेत कई होंगे सम्मानित

भोपाल से खबर है कि वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय को वर्ष 2010 के ‘माधवराव सप्रे राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’ के लिए चुना गया है. ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’ नवदुनिया के संपादक गिरीश उपाध्याय को, ‘जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी पुरस्कार’ पीपुल्स समाचार के ब्यूरो चीफ प्रभु पटेरिया को, ‘रामेश्वर गुरु पुरस्कार’ दैनिक जागरण के संवाददाता प्रवीण शर्मा को, ‘झाबरमल्ल शर्मा पुरस्कार’ जबलपुर में सहारा समय के ब्यूरो चीफ जितेन्द्र रिछारिया को और ‘के.पी. नारायणन पुरस्कार’ पायनियर के ब्यूरो चीफ गिरीश शर्मा को प्रदान करने का निर्णय किया गया है.

कामरेडों को फिर रास न आई रिपोर्टिंग

अबकी “प्रथम प्रवक्ता’ में छपी रिपोर्ट को अनुचित बताया : संपादक रामबहादुर राय को पत्र भेजकर विरोध जताया : कामरेडों ने ‘मति भ्रष्ट’ मीडिया वालों को रास्ते पर लाने की तैयारी कर ली है. फिलहाल वे यह काम चिट्ठी लिख-लिख कर कर रहे हैं. इस काम को अंजाम देने के लिए कामरेड लोग जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) के बैनर का इस्तेमाल करते हैं. इसी बैनर तले कई लोगों के हस्ताक्षरों से युक्त एक पत्र भड़ास4मीडिया के पास पहुंचा है. पत्र में ‘प्रथम प्रवक्ता’ मैग्जीन में छपी एक रिपोर्ट के सही-गलत के बारे में विस्तार से बताया गया है. पत्र लेखकों में जिन-जिन के नाम है, वे इस प्रकार हैं- अवनीश राय, लक्ष्मण प्रसाद, विजय प्रताप, विनय जायसवाल, ऋषि कुमार सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, रवि राव, शिवदास, विवेक मिश्र, चंद्रिका, अरूण उरांव, प्रबुद्ध गौतम, अनिल, नवीन कुमार, पंकज उपाध्याय, दिलीप, संदीप दुबे, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, देवाशीष प्रसून, राकेश कुमार, शालिनी वाजपेयी, सौम्या झा, पूर्णिमा उरांव, अर्चना मेहतो, अभिषेक रंजन सिंह, अरुण वर्मा, तारिक शफीक, मसीहुद्दीन संजरी, पीयूष तिवारी, अभिमन्यु सिंह, प्रकाश पाण्डेय, ओम नागर, प्रवीण मालवीय आदि. संपर्क के लिए दो मोबाइल नंबर भी दिए गए हैं जो इस प्रकार हैं- 09415254919, 09452800752. तो लीजिए, प्रथम प्रवक्ता में छपी रिपोर्ट पर कामरेडों की आपत्ति को पढ़िए…


विवेक गोयनका चाहते थे कि प्रभाष जी भी वैसा ही करें : रामबहादुर राय

[caption id="attachment_14872" align="alignleft"]रामबहादुर रायरामबहादुर राय[/caption]हमारा हीरो : रामबहादुर राय (भाग- दो)

…..सार्थक पत्रकारिता वही कर सकता है, जिसमें समाज के प्रति सरोकार और विचार हो। जो सो-काल्ड प्रोफेशनल जर्नलिस्ट हैं, वो नौकरी करते हैं। हो सकता है अच्छा काम करते हों लेकिन अपने यहां पत्रकारिता की जो कसौटी है, उसमें वह फिट नहीं बैठते। इसलिए पत्रकार को सामाजिक एक्टिविस्ट होना ही चाहिए…..


…..राजनीति में जाकर अपना कल्याण होता है, जनता का भला नहीं होता। जो लोग बदलाव लाने के लिए राजनीति में गए उनका हश्र सबने देखा है। इस राजनीतिक व्यवस्था की बुनियाद में पार्टी सिस्टम है। हमने संसदीय व्यवस्था अपनाया है। अगर चुनाव लड़ना है तो पहले पार्टी में शामिल होना होगा। आज की राजनीतिक पार्टियां गिरोह की तरह काम कर रही हैं। आप तय करिए कि किस गिरोह का हिस्सा बनना है….

समीर जैन ने जो तनाव दिए उससे राजेंद्र माथुर उबर न सके : रामबहादुर राय

[caption id="attachment_14863" align="alignleft"]रामबहादुर रायरामबहादुर राय[/caption]हमारा हीरो : रामबहादुर राय (भाग- एक) : हिंदी पत्रकारिता का बड़ा और सम्मानित नाम है- रामबहादुर राय। जनसत्ता और नवभारत टाइम्स फेम रामबहादुर राय उन चंद वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं जो सिद्धांत, सच, सरोकार, समाज और देश के लिए जीते हैं। पत्रकारिता इनके लिए कभी पद व पैसा पाने का साधन नहीं रहा। पत्रकारिता को इन्होंने देश व समाज को सच बताने, दिशा दिखाने और बदलाव की हर संभव मुहिम को आगे बढ़ाने का माध्यम माना और ऐसा किया-जिया भी। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे रामबहादुर राय चाहते तो राजनीति में जा सकते थे और आराम से सांसद-विधायक बन सत्ता सुख भोग सकते थे लेकिन एक्टिविज्म की राह पर निकले युवा रामबहादुर राय को राजनीति में जाना लक्ष्य से समझौता करने जैसा लगा। उन्होंने राजनीति में जाने की बजाय सक्रिय पत्रकारिता की राह का वरण किया। चुनाव लड़ने का बहुत ज्यादा दबाव बढ़ा तो झोला उठाकर हरिद्वार निकल पड़े।