इस लड़की ने तो गंध फैला रखा है…

[caption id="attachment_16857" align="alignleft"]आलोक नंदनआलोक नंदन[/caption]कई महिला पत्रकार शरीर का इस्तेमाल आगे बढ़ने के लिए करती हैं : कामसूत्री पत्रकारों की नजर नई लड़कियों पर गिद्ध की तरह होती है : पत्रकारिता में होने वाली रंडीबाजी पर राघवेंद्र जी से बात हो रही थी, जमीन पर पत्रकारिता को सींचने वाले राघवेंद्र जी के मुंह से निकला, रंडीबाजी में भी एक एथिक्स है, पत्रकारिता में तो आज कोई एथिक्स ही नहीं है। सुदूर पूर्व के सेवेन सिस्टर राज्यों में जाकर पत्रकारिता करने वाले राघवेंद्र जी आजकल पटना से एक साप्ताहिक अखबार ‘गणादेश’ से पत्रकारिता की लौ को जिंदा रखे हुये हैं। राणाडे, तिलक और गोखले जैसे लोगों ने भी पत्रकारिता किया था, और खूब धूम मचा के किया था, और कहीं न कहीं पत्रकारिता में एक एथिक्स को तो स्थापित किया था। आज राघवेंद्र जी जैसे पत्रकारों को रंडीबाजी में एथिक्स तो दिखाई दे रही है, लेकिन पत्रकारिता में नहीं। क्या वाकई में पत्रकारिता में अब कोई एथिक्स नहीं रहा? दशकों पत्रकारिता में झोंकने वाले राघवेंद्र जी की बात की अनदेखी नहीं की जा सकती। अखिलेश अखिल जो कुछ भी लिख रहे हैं, उसकी सच्चाई पर सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता है। यदि पत्रकारिता में कहीं एथिक्स है भी तो वह दिख नहीं रही है, या फिर कहीं दब-सी गयी है।

रंडीबाज पत्रकार-संपादक!

सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर हिंदी समाज कभी भी सहज नहीं रहा. किसी भी पेशे में कार्यरत लोगों में से कुछ लोग अक्सर सेक्स के कारण विवादों, चर्चाओं, आरोपों से घिर जाते हैं. मीडिया भी इससे अछूता नहीं है. बाजारवाद के इस दौर में नैतिकता नाम की चीज ज्यादातर दुकानों से गायब हो चुकी है, या, कह सकते हैं कि इसके खरीदार बेहद कम हो गए हैं. इंद्रियजन्य सुख, भौतिक सुख, भोग-विलास सबसे बड़ी लालसा-कामना-तमन्ना है. शहरी जनता इसी ओर उन्मुख है. बाजार ने सुखों-लालसाओं को हासिल कर लेने, जी लेने, पा लेने को ही जीवन का सबसे बड़ा एजेंडा या कहिए जीते जी मोक्ष पा लेने जैसा स्थापित कर दिया है. आप निःशब्द होने वाली उम्र में भी सेक्स और सेंसुअल्टी के जरिए सुखों की अनुभूति कर सकते हैं, यह सिखाया-समझाया जा रहा है. हर तरफ देह और पैसे के लिए मारामारी मची हुई है. फिर इससे भला मीडिया क्यों अछूता रहे. यहां भी यही सब हो रहा है. आगे बढ़ने के लिए प्रतिभाशाली होना मुख्य नहीं रहा. आप किसी को कितना फायदा पहुंचा सकते हैं, लाभ दिला सकते हैं, सुख व संतुष्टि दे सकते हैं, यह प्रमुख होने लगा है.