‘देश के सभी हिन्‍दू साम्‍प्रदायिक क्‍यों नहीं हैं?’

सलीम जब से आरएसएस के लोगों की आतंकवादी घटनाओं में संलिप्तता सामने आयी है, तब से आरएसएस के नेता बौखला गए हैं। इस बौखलाहट में ही शायद संघ के इतिहास में पहली बार हुआ है कि इसके स्वयंसेवक विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरे।

क्या ‘हिन्दुस्तान’ की ये खबर पेड न्यूज नहीं है?

न्‍यूजउत्तर प्रदेश में आजकल पंचायत चुनाव को लेकर बहुत गहमागहमी है। जो चुनाव पहले बिना किसी शोर-शराबे के सम्पन्न हो जाते थे, आजकल हाईटेक होने के साथ ही महंगे हो गए हैं। ऐसा लगता है कि पंचायत जैसे छोटे चुनावों में भी अखबारों में ‘पेड न्यूज’ छप रही है। इसका उदाहरण ‘हिन्दुस्तान’ (मेरठ संस्करण) का 9 अक्टूबर का अंक है। इसमें पेज चार पर चार कालम की एक खबर-‘प्रत्याशी विकास के नाम पर मांग रहे वोट’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। खबर के शीर्षक से लगता है कि चुनाव के बारे में एक कॉमन खबर होगी।

घर के बंटवारे सरीखा नहीं है अयोध्या विवाद

सलीम अख्‍तर बाबरी मस्जिद बनाम राममंदिर के मालिकाना हक पर 24 सितम्बर को आने  वाले  फैसले को रोकने के लिए दायर रिट याचिकाएं हाईकोर्ट ने रद्द करके सही किया है। अदालत से बाहर इस मसले का निपटारा असम्भव हो चला है। जब फैसला आने में महज एक सप्ताह ही रह गया है तो इस पर यह कहना कि अदालत से बाहर हल निकालने का समय दिया जाना चाहिए, बेमानी ही नहीं बल्कि मसले को लटकाए का रखने का प्रयास भी था।

हिन्दुस्तान व जागरण ने छोटी खबर को बनाया बड़ी

मेरठ में हिन्दुओं और मुसलमानों का अनुपात लगभग 60-40 का है। अस्सी के दशक में मेरठ ‘दंगों का शहर’ नाम से कुख्यात हो गया था। लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जब उत्तर प्रदेश के कई शहर साम्प्रदायिक हिंसा से जल रहे थे, तब मेरठ ने शांत रह कर पूरे प्रदेश में एक मिसाल पेश की थी। उसके बाद यह संवेदनशील कहा जाने वाला शहर किसी बड़े दंगे की आग में नहीं जला।