I am wondering as to why The Indian Newspaper Society or the INS is publishing advertisements in newspapers, against the wage board for journalist & non-journalist employees! I am shocked to see the humiliating language that these advertisements contain, saying: “If this is implemented, a peon may receive upto Rs.45,000 a month and a driver may get upto Rs.50,000”.
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ऐसे अखबार के मालिकान को कुछ तो शर्म आनी चाहिए
[caption id="attachment_20667" align="alignleft" width="122"]योगेश कुमार गुप्त ”पप्पू”[/caption]: आप एक-एक साल में करोड़ों के वाहन खरीद डालते हैं… हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का सालाना कारोबार करने वाले जागरण के देशभर में कितने संस्करण हैं, यह बताने की जरूरत नहीं… आपने अन्य कितने क्षेत्रों में पैर पसार रखे हैं, यह सच्चाई किसी से छुपी नहीं है… अब तो आपने अन्य अखबारों को भी खरीदना शुरू कर दिया है… एक ही कर्मचारी से अखबार, वेबसाइट, मोबाइल तक के लिए खबरें लिखवा रहे हैं… फिर भी आप नहीं चाहते कि… :
आईएनएस वालों व संदीप गुप्त, कान में तेल आंख में ड्राप डालें फिर इसे पढ़ें
: ताकि ठीक से सुनाई-दिखाई पड़े और ठीक से समझ आए : ((जवाब- पार्ट एक)) : मोतियाबिन्द के लिए यह इलाज ठीक है क्या? : वेज बोर्ड की सिफारिशों से तिलमिलाए अखबार मालिकों ने इसके खिलाफ अभियान छेड़ रखा है और भ्रम फैलाने वाली सूचनाएं प्रकाशित-प्रसारित कर रहे हैं।
सूप तो सूप बोले, अब संदीप गुप्त भी बोलें
दैनिक जागरण के एक मालिक हैं संदीप गुप्त. कानपुर में बैठते रहे हैं और अब भी बैठते हैं. वे खुद को संपादकीय से लेकर प्रोडक्शन, प्रिंटिंग, बिजनेस… सबका मास्टर मानते हैं. छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम कर गुजरने में माहिर मानते हैं अपने आपको. अब चूंकि वे मालिक हैं तो उनके सौ दोष माफ. उनके साथ काम करने वाले उनकी सोच, मेंटलिटी और कार्यप्रणाली के बारे अच्छे से जानते हैं लेकिन कोई कैसे कुछ बोल सकता है.