[caption id="attachment_17123" align="alignleft" width="78"]सिद्धेश्वर सिंह[/caption]इस कहानी को एकाधिक बार पढ़ने बाद अब जब कि कुछ गुनने का समय आया है तब लग रहा है कहानी की काया के बीच इतना कुछ और इतनी तरह से कुछ-कुछ बुना गया है उसके रेशे को उधेड़ने के अब तक जो कुछ भी ज्ञान कथा साहित्य के आचार्यों व सर्जकों द्वारा तैयार पोथी-पतरा के जरिए अपने तईं विद्यमान है उसमें ‘अनुभव की प्रामाणिकता’, ‘भोगा हुआ यथार्थ, ‘शाब्दिक जीवन प्रतिबिम्ब’, ‘अँधेरे में एक चीख’ जैसे सूत्र वाक्य कथा के खुलासे के बाबत कुछ खास मदद करते जान नहीं पड़ते हैं।