:अपनी पहचान के लिए आगे आएं स्ट्रिंगर : यशवंत जी, मैं भड़ास के माध्यम से पूरे देश में काम कर रहे स्ट्रिंगरों से आह्वान करना चाहता हूं कि वे अपनी पहचान के लिए, अपने अस्तित्व के लिए आगे आये और वे जिस संस्थान में काम कर रहे हैं उस संस्थान से लिखित रूप से मांगें कि वे क्या ठेके पर काम करने वाले मजदूर हैं या पत्रकार. यह सवाल पूछने पर मैं इसलिए विवश हुआ हूं कि सिवनी के जनसंपर्क विभाग ने माननीय हाईकोर्ट जबलपुर में मेरे ऊपर पुलिस प्रशासन द्वारा बनाये गये फर्जी मामलों के जबाब में एक पत्र लगाया है कि स्ट्रिंगर पत्रकार की श्रेणी में नहीं आते हैं, वो एक अनुबंध के आधार पर संस्थानों के साथ काम करते है.
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कई पत्रकारों की इच्छा- ये खबर भड़ास पर जरूर छापें
आमतौर पर हम लोग जिलों की इंटरनल मीडिया पालिटिक्स से बचते हैं. वजह यह कि हर जिले में कुछ महा भ्रष्ट पत्रकार होते हैं, कुछ भ्रष्ट पत्रकार होते हैं, कुछ कम भ्रष्ट पत्रकार होते हैं, कुछ अवसरवादी पत्रकार होते हैं, कुछेक संतुलित भ्रष्ट व संतुलित ईमानदार पत्रकार होते हैं, कुछ एक बेहद ईमानदार होते हैं और कई सारे मौका देखकर बेईमान और ईमानदार बनते-बदलते रहते हैं. इसी कारण हर जिले में पत्रकारों में आपस में टांग-खिंचव्वल होती रहती है.
स्ट्रिंगरों से धोखा कर रहा है इंडिया टीवी
मैंने आपकी खबर पढ़ी, जिसमें लिखा था कि इंडिया टीवी वाले अपने स्टाफ का तनख्वाह बढ़ा देंगे तथा बोनस देंगे. पर क्या वाकई में मात्र कार्यालय के स्टाफ से न्यूज़ चैनल चलाया जा सकता है, अगर फील्ड के रिपोर्टर खबर न भेजे तो. क्या इंडिया टीवी नंबर वन हो सकता है. दरअसल, इंडिया टीवी ने स्ट्रिंगर के पैसे आज तक कभी नहीं बढ़ाया.
सहारा समय के स्ट्रिंगर के साथ क्या हो गया!
: खबर दिखाने से खफा एसडीओ ने मकान तुड़वाया, जेल भिजवाया : अभी-अभी एक मेल के जरिए सूचना मिली है कि सहारा समय, राजस्थान के एक स्ट्रिंगर अनिल ऐरन एक खबर दिखाने के कारण प्रशासनिक तंत्र की बर्बर प्रताड़ना के शिकार हुए. मेल में जो कुछ बातें कही गई हैं, वो इस प्रकार है… ”खबर का असर तो आपने कई बार देखा होगा लेकिन राजस्थान में सहारा समय के स्ट्रिंगर की खबर का विपरीत असर हुआ. इस खबर के कारण एसडीओ टीना सोनी ने अनिल एरन का जीना दूभर कर दिया है. अनिल का मकान तो तुड़वाया ही, साथ ही धारा 151 में पाँच दिन जेल में रखवाया. ऐसा किसी स्ट्रिंगर के साथ शायद आजाद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ होगा. इतना ही नहीं, 307 में अनिल, उसके कैमरामैन और भाई को भी झूठे केस में फंसा दिया. अब अनिल न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है.”
‘डकैती’ डाल रहे हैं स्ट्रिंगर!
इटावा जनपद की चंबल घाटी से डकैतों का तो सफाया हो गया लेकिन टीवी चैनल के नाम पर डकैती डाल रहे स्ट्रिंगर इटावा जनपद मे सड़कों पर घूम कर पीड़ित लोगों की जेबों पर खबर के नाम पर डकैती डाल रहे हैं। समाज में सम्मान के नजरिये से देखे जाने वाले पत्रकारों का इटावा में चरित्र ही बदल गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने तो हद ही कर दी है।
स्ट्रिंगर हूँ हुजूर
देश के चप्पे चप्पे तक
पहुचने के लिए
खबरिया चैनलों के हाथों कठपुतली हैं हुजूर
स्ट्रिंगर हूँ हुजूर
दर्द-ए-स्ट्रिंगर
एक दुखी स्ट्रिंगर का कविता पाठ : कहने को है वह पत्रकार, पर है बिलकुल बेकार / एक जूनून, एक सपना था, लगता देश ये अपना था / कुछ करने की ख्वाहिश थी मन में, सच की आग धधकती तन में / बढ़ गया अनजान पथ पर करने को सपना साकार / कहने को है वह पत्रकार, पर है बिलकुल बेकार
अखबार मालिक सबसे बड़े दलाल
सच लिखा तो मुझे नौकरी से बाहर किया गया : जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं : मैं विगत एक दशक से मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। प्रिंट में काफी समय तक काम किया। अब दो वर्षों से दूरदर्शन न्यूज का स्ट्रिंगर हूं। पुराने कटु अनुभव आज तक जस के तस दिल में दफन हैं। भड़ास4मीडिया पर कई साथियों के पत्र पढ़कर पुराने जख्म हरे हो गए। अन्दर की हूक रोक न सका। कस्बाई क्षेत्र से पत्रकारिता शुरू करने के कारण मैंने जमीनी सच को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया है। निश्चित ही महानगरों की अपेक्षा छोटी जगहों पर पत्रकारिता करना तलवार पर नंगे पैर चलने से कम नहीं होता। इन जगहों पर लड़ने के लिये एक साथ कई फ्रंट खुले होते हैं। ज्यादातर अखवार इन कस्बाई संवाददाताओं को कोई पारश्रमिक नहीं देते, जबकि हर खबर पर नज़र रखने के लिये कहते हैं। इसमें काफी समय-श्रम-शक्ति खर्च होती है। परिवार के भरण-पोषण की समस्या तो हमेशा मुंह बाये खड़ी रहती है। विज्ञापन के कमीशन से कमाई की बात तब करें तो यह तभी संभव है जब विज्ञापन देने वाली कोई ठीकठाक पार्टी मिले। संपादक अपने आका को खुश करने के लिये नीचे की हर कड़ी पर चाबुक बरसाता नज़र आता है।
गिल्लो के प्रेमी पत्रकार की पटना से आई पाती
[caption id="attachment_14887" align="alignleft"]गिल्लो और आशू का प्रेम : दृश्य एक[/caption]कोई पागलपन तो कोई नशा कहता है पर प्यार तो प्यार है। गिल्लो और उनकी मुस्कराहट किसी को भी पागल कर दे, मेरी बिसात क्या! यदि थोड़ा सब्र और इंतजार करने का जज्बा हो तो इनसे आपको भी प्यार हो सकता है। खुशखबरी ये है कि गिल्लो के परिवार में 35 नए मेहमान आये हैं और अब रोटी या बिस्कुट गिल्लो अपने तो खाती ही हैं, बच्चों के लिए भी ले जाती हैं। इस लोकतंत्र के महापर्व में मुझे भी थोड़ी कम फुर्सत मिल रही है। उपर से गर्मी की वजह से गिल्लो भी ज्यादा देर अपने घर में रहना पसंद करती हैं। लेकिन कितना भी कम समय हो, दिल वहीं खींचकर ले जाता है। नहीं जाने पर मन जाने कैसा-कैसा होने लगता है। क्या करें, प्यार न समय देखता है और न दिन।