[caption id="attachment_18543" align="alignleft" width="71"]राजेंद्र हाड़ा[/caption]: भास्कर के लिए पहले गुंडे से लडे़, अब अकेले ही कानून से जूझ रहे हैं : अजमेर। दोस्तो यह कहानी है कृतघ्नता की पराकाष्ठा की। दुनिया का सबसे तेज बढ़ता अखबार दैनिक भास्कर जिन कुछ कारणों से तेजी से बढ़ रहा है, उनमें से एक कारण है ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की नीति का पक्षधर होना। क्या आप यकीन मानेंगे कि भास्कर को अजमेर में जमाने के लिए जिन पत्रकारों और कर्मचारियों ने एक कुख्यात गुंडे की बंदूकों, तलवारों, डंडों का सामना किया और मुकदमे-पुलिस के झमेले में उलझे, उसी कारण उपजे एक मुकदमे में पैरवी से भास्कर ने ‘हमारा क्या लेना-देना’ कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया।
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पता नहीं इन्हें शर्म आई या नहीं
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और दैनिक हिंदुस्तान। संजय गुप्ता, सुधीर अग्रवाल और शोभना भरतिया। तीन बड़े अखबार, तीन बड़े मीडिया ब्रांड और इनके तीन मालिक। तीनों ऐसे मालिक जिन्हें अपने-अपने ब्रांडों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। तीनों में काबिलियत है। तीनों सिंसीयर हैं। तीनों डायनमिक हैं। तीनों देश व समाज के हित की चिंता करते हुए दिखते हैं। तीनों कभी न कभी किसी न किसी रूप में ताकतवर व्यक्ति, प्रतिष्ठित आदमी, सूझबूझ वाले उद्यमी, सोच-समझ वाले युवा आदि के रूप में अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। तीनों का व्यक्तित्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि तीनों के जीवन का एक नैतिक पक्ष है, जिसे उनके अधीन काम करने वाले लोग उद्धृत करते हैं, फालो करते हैं, बताते रहते हैं। पर इन तीनों ब्रांडों के तीनों मालिकों के दामन पर धब्बा है। बहुत गहरा धब्बा है। पेड न्यूज का धब्बा। पेड न्यूज को भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बताया गया है। इन तीनों मालिकों ने कभी न कभी भ्रष्टाचार को देश के विकास में बाधक जरूर बताया है। पर इन्हीं मालिकों ने बदले हुए समय में भ्रष्टाचार को अंगीकार किया।