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दुख-दर्द

टीवी पत्रकारों की करतूत से पत्रकारिता हुई शर्मिंदा

TV Newsलगता है टीवीवालों ने न सुधरने की ठान ली है। जालंधर के कुछ टीवी पत्रकारों ने एक ऐसे शर्मनाक कृत्य को अंजाम दिया है, जिससे ना सिर्फ पूरी पत्रकार बिरादरी का सिर शर्म से झुक गया बल्कि पत्रकारिता-मानवीयता के प्रति उनकी निष्ठा पर भी सवाल खड़ा हो गया है। भड़ास4मीडिया को मिली जानकारी के अनुसार जालंधर के एक नाबालिग प्रेमी जोड़े ने घर से भाग कर शादी रचा ली। लड़की के बाप ने कानून का सहारा लेने के बजाय मोहल्ले के गुंडों को सबक सिखाने का ठेका दे दिया।

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TV Newsलगता है टीवीवालों ने न सुधरने की ठान ली है। जालंधर के कुछ टीवी पत्रकारों ने एक ऐसे शर्मनाक कृत्य को अंजाम दिया है, जिससे ना सिर्फ पूरी पत्रकार बिरादरी का सिर शर्म से झुक गया बल्कि पत्रकारिता-मानवीयता के प्रति उनकी निष्ठा पर भी सवाल खड़ा हो गया है। भड़ास4मीडिया को मिली जानकारी के अनुसार जालंधर के एक नाबालिग प्रेमी जोड़े ने घर से भाग कर शादी रचा ली। लड़की के बाप ने कानून का सहारा लेने के बजाय मोहल्ले के गुंडों को सबक सिखाने का ठेका दे दिया।

कुछ दिनों पहले की इस घटना में इन गुंडों ने रात के समय प्रेमी जोड़े को पकड़ कर उनकी जमकर धुनाई शुरू कर दी। इन दोनों का मुंह काला कर पूरे मोहल्ले में घुमाया गया। बात पत्रकारों, फोटोग्राफरों और कैमरापर्सन्स तक पहुंची तो सभी इकट्ठा हो गए और स्टोरी बनाने में जुट गए। जो कुछ हो रहा था, उसे कवर किया जाता, तो भी राहत की बात थी। पर स्टोरी में दम लाने के लिए इन पत्रकारों, फोटोग्राफरों और कैमरापर्सन्स ने प्रमी जोड़े को भांति-भांति तरीकों से प्रताड़ित करने के आइडिया भीड़ को देने शुरू कर दिए और उसे इंप्लीमेंट होते हुए दृश्य को शूट करने लगे। पत्रकारों ने स्टोरी बनाने के चक्कर में भीड़ को जमकर भड़काया। ‘एक और लगाओ इसके’, ‘लड़की को भी पूछो’, ‘बाँध दो इनको’,  ‘इनके मुहं पर कालिख लगा दो’,  ‘कैमरे की और देखो’ जैसी आवाजें पत्रकार भाइयों की ही थी जिन्हें फुटेज में साफ सुना जा सकता है। यह स्टोरी कई टीवी न्यूज चैनलों पर चली और उपरोक्त आवाज सुनाई भी पड़ रही थी। चाहिए तो यह था कि मीडिया के लोग इस नाबालिग जोड़े को गुंडों के हाथों पिटने से बचाते और अगर ऐसा नहीं कर सकते थे तो कम से कम पुलिस को सूचित कर देते। पर सब स्टोरी बनाने और हर एंगल से पिटाई शूट करने में लगे रहे। गुंडागर्दी का यह नंगा नाच एक घंटे तक चलता रहा लेकिन किसी पत्रकार को पत्रकारिता और मानवीयता धर्म की याद नहीं आई। सबने प्राथमिकता में अच्छी से अच्छी स्टोरी बनाकर बॉस से वाहवाही लूटना रखा। इससे पहले भी एक ऐसे ही वाकये में एक आदमी की जान जा चुकी है। अगर इस प्रेमी जोड़े को भी कुछ हो जाता तो उसका जिम्मेदार कौन था? वो भीड़, जो उन्हें पीट रही थी या वो लोग जो अपनी स्टोरी के चक्कर में भीड़ को भड़का रहे थे? पत्रकारों को अपने गिरेबान में झांक कर जरूर देखना चाहिए की उनका यह कृत्य सही था या गलत? मीडिया वाले अगर ऐसी ही हरकत जारी रखते हैं तो वो दिन दूर नहीं जब मीडिया पर से हर किसी का विश्वास पूरी तरह उठ जाएगा।

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