आज हर आदमी के मुंह से एक बात जरूर सुनने को मिलेगी। हर अखबार में एक खबर जरूर पढ़ने को मिलेगी। वह यह कि चैनल वालों ने ऐसा कर दिया। चैनल वालों ने वैसा कर दिया। ये चैनल वाले तो मरवा के ही छोड़ेंगे। इन्हें सुधरना होगा। ये कब सुधरेंगे…, वगैरह… वगैरह…। मैं अपने बारे में बता दूं। मैं खुद इलेक्ट्रानिक मीडिया में सक्रिय हूं। मैं भी इन सारे सवालों का सामना करता रहता हूं। सुन-सुन के पकता रहता हूं। जितना संभव हो सकता है, जवाब देने की, समझाने की कोशिश करता हूं। पर मुझे एक चीज समझ में नहीं आती, ये कौन सा तरीका है कि आप किसी के खिलाफ हर वक्त सिर्फ लाठी लेकर खड़े रहिए। हमारी अच्छाइयों को कम या ज्यादा स्वीकारने के बजाय, हमारी कम या ज्यादा बुराइयों का हर वक्त रोना रोते रहिए। आपके सवाल हैं तो अब मेरे भी कुछ सवाल हैं, हिम्मत है तो आगे पढ़िए।
- मुंबई पर हमले की जानकारी ज्यादातर लोगों को टीवी न्यूज चैनलों से ही क्यों मिली?
- हर कोई कहता दिखा कि हमला भयावह था, ये किस आधार पर कह रहा था? सिर्फ सुनकर या पढ़कर। (जी नहीं, टीवी चैनल की स्क्रीन पर एके 47 लिए खड़े आतंकी को देखकर, गोलियों की आवाज और स्टेशन पर मची अफरातफरी को देखकर। जलता ताज देखकर। सैंकड़ों की तादाद में कमांडो देखकर।)
- क्यों अमिताभ बच्चन पिस्तौल रखकर सोए?
- क्यों सुरों की सरताज लता मंगेशकर तीन दिन में तीन सौ बार रोईं?
- क्यों तीन दिन तक उन्होंने टीवी बंद नहीं किया?
- क्यों शिल्पा शेट्टी को जैसे ही हमले का फोन आया तो उन्होंने तुरंत टीवी आन किया?
इस सबके पीछे हैं हमारे जांबाज कैमरामैन और साहसी रिपोर्टर।
आतंकी गोली बरसा रहे थे और टीवी चैनल के कैमरामैन व रिपोर्टर घटनास्थल पर बहादुरी से आगे बढ़ते चले जा रहे थे, बावजूद इसके कि ये सबको मालूम है कि आतंकवादी मीडियाकर्मियों पर भी गोली बरसाने से गुरेज नहीं कर रहे थे। टीवी न्यूज चैनलों ने आखिरकार ऐसा क्या गलत दिखा दिया, जिससे लोग इस कदर नाराज हैं? सुनिए, कुछ और हकीकत सुनिए। आप सभी इस बात से सहमत तो जरूर होंगे कि इस हमले में कई बातें पहली बार हुई हैं, जैसे-
- पहली बार भारत की तीनों सेनाओं के जवानों ने अभियान में हिस्सा लिया।
- पहली बार भारत में एनएसजी कमांडो इतनी बड़ी संख्या में एक मिशन पर आए।
- पहली बार किसी मिशन पर कमांडो हवा से जमीन पर उतारे गए।
- पहली बार मुस्लिम धर्मगुरुओं ने आतंकियों के शवों को मुंबई में दफनाने से इंकार किया।
- पहली बार आतंकियों ने हमले की जगह पर ही कंट्रोल रुम बनाया।
- पहली बार न्यूज चैनलों ने देशहित में लाइव रोका।
किसकी बात टीवी चैनलों ने नहीं मानी? जैसे ही पता चला कि आतंकी अपने जवानों की लोकेशन टीवी पर देख रहे हैं तो सभी टीवी न्यूज चैनलों ने एक के बाद एक लाइव रोक दिए। घटनास्थल पर रिपोर्टर को कैसे पता चल सकता था कि न्यूज चैनल देखकर इन आतंकियों को सीमापार से दिशा-निर्देश मिल रहे हैं? यह जानकारी मिलने में कुछ तो समय लगेगा। लेकिन नहीं। आज हर एक की जुबां पर टीवी वालों की बुराई है। हर अखबार में रोज लिखा दिख रहा है है कि बाइट के लिए भागते रहे रिपोर्टर, विजुअल को तरसता रहा कैमरामैन। पर भाई, हमें ये सब तो चाहिए ही। तभी तो खबर दिखा सकेंगे। पता नहीं क्यों, मीडिया में एक बात और फैलने लगी है। अखबार वाले कहते हैं कि तुम चैनल वाले हो। चैनल वाले कहते हैं कि तुम प्रिंट वाले हो। दोस्त, ऐसा कुछ नहीं है। हम सब मीडिया से हैं। अखबार से चैनल और चैनल से अखबार। हम सब पत्रकार इन दोनों के बीच रोजाना नौकरियां बदल रहे हैं। फिर ये भेदभाव क्यों? हमें समझना चाहिए कि हम लोग साहस और दुस्साहस के साथ हर रोज कुछ नया करते हैं और उससे उपजे अच्छे-बुरे अनुभवों के आधार पर आगे की प्लानिंग करते हैं। इसलिए किसी एक रोज के काम के आधार पर, किसी एक घटना के आधार पर किसी के बारे में कोई पक्की धारणा नहीं बनानी चाहिए। मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के दुश्मन न बनें, आलोचक बनें, कुछ उसी तरह जैसे कबीर ने कहा…निंदक नियरे राखिए….।
लेखक विनोद कुमार टोटल टीवी के नोएडा-ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के क्राइम रिपोर्टर हैं। वे सहारा समय, एनसीआर और अमर उजाला में काम कर चुके हैं। विनोद से संपर्क करने के लिए [email protected] पर मेल कर सकते हैं या उनके मोबाइल नंबर 09718124395 पर फोन कर सकते हैं।