पहले तो दिवाली और धनतेरस की तमाम मीडियाकर्मियों को हार्दिक शुभकामनाएं… अब लौटते हैं अपने असली मुद्दे पर… आज धनतेरस हैं….. सभी लोग खरीदारी, जिसे शॉपिंग-वॉपिंग भी कहते हैं, में व्यस्त हैं. मैं रोजमर्रा की तरह ऑफिस में काम में जुटा हुआ…. त्योहार का दिन है तो खबरों पर भी त्योहारी रंग चढ़ा हुआ है… दिवाली से जुड़ी खबरों की भरमार है….. हर कोई चाहता है कैसे दर्शकों को इन तीन दिनों तक बांधे रखे… तो सभी चैनलों ने स्पेशल चलाने शुरू कर दिए हैं…. राशियों का क्या रहेगा आप पर असर… तो पटाखे चलाने से बचे… और तो और, त्योहार पर मिठाइयों से रखें परहेज़… भला बिना मीठे के त्योहार की कल्पना की जा सकती है लेकिन हम लगे ढोल मंजीरे पीटने में लगे हैं कि मिठाई मत खाइए, उसमें मिलावट हैं… तो भई ये बताइए कि मिलावट कहां नहीं है…. घर से बाहर निकले तो प्रदूषण आपका इंतजार कर रहा होता है…
ट्रैफिक की लंबी-लंबी कतारों के कारण ना चाहते हुए भी इतना धुआं शरीर में चला जाता है कि पूछो मत… तो क्या घर से निकलना छोड़ दें…. हर चैनल मिठाई में मिलावट के पीछे पड़ा है…. लेकिन क्या किसी को प्रदूषण की चिंता है… सड़क पर गाड़ियां चलती नहीं, चींटी की तरह रेंगती नजर आती हैं… चैनल वालों को ये दिखाई नहीं देता… क्यों नहीं चलाते बिगड़ती ट्रैफिक व्यवस्था और बढ़ती गाड़ियों पर… बस चिंता हैं तो अपनी टीआरपी की… क्यों नहीं चलाते एक मुहिम सरकार पर दबाव बनाने की… सभी लोग सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अपनाएं… और अगर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कारगर नहीं हैं तो पूलिंग व्यव्स्था बनाई जाए…..
ये कानून बनाने के लिए दबाव क्यों नहीं बनाते हैं कि लंबी लंबी गाड़ी लेकर जब कोई रईसजादा सड़क पर निकले तो अपनी मर्सिडिज में अकेले नहीं, उसके साथ तीन लोग और बैठे हों… क्यों नहीं इसके लिए दबाव बनाते कि जिस भी कंपनी में पचास से ज्यादा कर्मचारी काम करते हों उसे कंपनी की तरफ़ से सामूहिक पिकअप की व्यव्स्था हो, चाहे वो उस कंपनी का बड़ा अफसर ही क्यों न हो… वो भी कंपनी की गाड़ी में बाकी लोगों के साथ आए… तो कैसे नहीं सुधरेगी ट्रैफिक व्यवस्था…. क्यों इसका दबाव नही बनाते कि अगर आपकी तमन्ना गाड़ी रखने की है तो पार्किंग की जगह घर के अंदर ही हो… घर के बाहर नहीं… और क्यों नहीं पार्किंग शुल्क को 30 रुपये से बढ़ाकर 1000 रूपये कर देते….
लेकिन इन सब बातों की खबर लेने की चिंता किसी खबरिया चैनल या अखबार को नहीं….क्योंकि हम खुद ही लंबी-लंबी और आरामदेह गाड़ी के शौकीन हैं… आखिर हम कब जागेंगे और जानेंगे कि इस धरती जिसे हम मां कहकर भी पुकारते हैं, उसके प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य है…