प्रिंट मीडिया कर्मियों के लिए गठित वेज बोर्ड की टीम की बैठक में उठी मांग : वेज बोर्ड सिफारिशों को लागू करने के लिए दंडात्मक प्रावधान जोड़े जाएं : गुरबक्श राय मजीठिया, मुंबई हाईकोर्ट के रिटायर जज और अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के लिए बनाए गए राष्ट्रीय वेतन बोर्ड के चेयरमैन, इन दिनों अपनी टीम के साथ कई प्रदेशों के दौरे पर हैं। वे मीडियाकर्मियों के वेतन और सुविधाओं में सुधार से संबंधित रिपोर्ट पेश करने की तैयारी के तहत घूम-घूम कर जमीनी हालात का जायजा ले रहे हैं और फीडबैक प्राप्त कर रहे हैं। मजीठिया और उनकी टीम दो दिनों तक पटना में रही। वहां यह टीम अखबार संगठनों, पत्रकारों, नेताओं आदि से मिली। बैठकें हुईं। सबकी बातें सुनी गईं और नोट की गईं। फिर वहां से यह टीम लखनऊ पहुंची। लखनऊ में भी यही क्रम चला।
सचिवालय में हुई बैठक में मजीठिया की टीम, जिसमें कई पत्रकार संगठनों के नेता लोग भी सदस्य के रूप में शामिल हैं, के साथ अफसरों और मीडिया प्रतिनिधियों की वार्ता हुई। इस बैठक में काशी पत्रकार संघ से योगेश गुप्ता और संजय अस्थाना भी पहुंचे। साथ ही पिछले वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के आदेश को अमली जामा पहनाने के लिए बनारस में लड़ाई लड़ रहे समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के नेता अजय मुखर्जी एडवोकेट भी शामिल हुए। यूपी शासन की ओर से प्रमुख श्रम सचिव और विशेष सचिव ने हिस्सा लिया।
सूत्रों के मुताबिक मजीठिया ने सभी से पूछा कि पत्रकारों को नए वेतन बोर्ड में कितने प्रतिशत की सेलरी इनक्रीमेंट देने की सिफारिश की जानी चाहिए। सबने अपने-अपने हिसाब से बातें कहीं। महंगाई का हवाला दिया। केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों की वेतनवृद्धि के बारे में बताते हुए मीडियाकर्मियों की सेलरी में ठीकठाक बढ़ोतरी किए जाने की मांग की। बैठक में सबसे खरी बात कही अजय मुखर्जी ने। उन्होंने कहा कि वेज बोर्ड के सिफारिश देने और उसे लागू करने का आदेश पारित करने से ही काम नहीं चल रहा है। इन आदेशों को मीडिया हाउस अपने मनमाफिक तरीके से लागू कर रहे हैं जिस कारण मीडियाकर्मियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पा रहा है।
उन्होंने मांग की कि ईएसआई और पीएफ की तरह वेज बोर्ड सिफारिशों के साथ दंडात्मक प्रावधान जोड़े जाएं। जिस तरह पीएफ न जमा करने वाले हाउस के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है, उसी तरह वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू न करने वाले मालिकों को जेल भेजे जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। कानूनी और दंडात्मक भय न होने के कारण ये मालिक लोग अपने कर्मियों को उनका हक देने से हमेशा बचने की कोशिश करते हैं।
अजय मुखर्जी ने इलेक्ट्रानिक मीडिया के कर्मियों को वेज बोर्ड के दायरे में लाकर उनके लिए अलग से सिफारिशें करने की वकालत की। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में जिस तरह चौबीसों घंटे काम का दबाव होता है और इन दिनों जो सेलरी स्टैंडर्ड है, उसी के अनुरूप वेतन और सुविधाएं देने की सिफारिश वेज बोर्ड की करनी चाहिए ताकि टीवी मीडियाकर्मियों का शोषण बंद हो। अजय मुखर्जी के मुताबिक टीवी जर्नलिस्टों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि उनके लिए कोई कानून ही नहीं है। कोई संस्थान उन्हें किसी भी समय निकाल सकता है और किसी भी वक्त किसी दूसरे को रख सकता है। किसी को हर महीने लाखों रुपये मिल जाते हैं तो ढेर सारे लोगों को काम करने के बावजूद कोई पेमेंट नहीं मिलता। यह असमानता दूर करने की जरूरत है। मुट्ठी भर मीडियाकर्मियों को करोड़पति बनाने की जगह टीवी इंडस्ट्री को अपने सभी कर्मचारियों के जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए। कई तरह की असमानताओं और विषमताओं के कारण इलेक्ट्रानिक मीडिया कर्मियों में असुरक्षाबोध का प्रतिशत काफी बढ़ा है। इसे दूर करने की सख्त जरूरत है। इसके लिए वेज बोर्ड को गंभीरता से सोचना चाहिए और सरकार के पास जरूरी अनुशंसाओं को भेजना चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक मजीठिया के सम्मान में एक भव्य पार्टी का आयोजन भी लखनऊ में किया गया जिसमें मीडिया, शासन, राजनीति के जाने-माने लोग शामिल हुए। कहा जा रहा है कि मजीठिया का यह दौरान वेज बोर्ड के रूटीन कामकाज का हिस्सा है। ज्ञात हो कि मजीठिया से पहले चेयरमैन पद पर जस्टिस के. नारायण कुरुप थे। कुरुप ने 30 जुलाई 2008 को इस पद से त्यागपत्र दे दिया। कुरुप के नेतृत्व में ही वेज बोर्ड ने अखबार कर्मियों को तनख्वाह के 30 प्रतिशत के बराबर अंतरिम राहत देने की सिफारिश की गई थी।