देश की प्रमुख समाचार एजेंसी यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया के अंदरखाने सब ठीक नहीं चल रहा। पुराने मीडियाकर्मियों व प्रबंधन के बीच टकराव कामकाज का हिस्सा बन चुका है। नाराज मीडियाकर्मी जहां प्रबंधन पर पुराने व वरिष्ठ लोगों परेशान करने और यूएनआई को बंद करने की साजिश रचने का आरोप लगा रहे तो प्रबंधन यूएनआई को पटरी पर लाने के लिए निष्क्रिय-मठाधीश पत्रकारों को साइडलाइन करने व युवा-डायनमिक पत्रकारों को बागडोर सौंपने की बात कह रहा है। कुछ लोगों ने भड़ास4मीडिया के पास नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध करते हुए जो जानकारी भेजी है, वो यूं है-
यूएनआई को घाटे में लाने की सुनियोजित साजिश के तहत वर्ष 2001 से यूनीस्कैन, यूनीफिन, यूनीदर्शन, फीचर सर्विस, बैकग्राउंडर सर्विस समेत एक दर्जन सेवाओं को बंद किया गया। यूएनआई को एस्सेल ग्रुप (जी ग्रुप) को कंपनी बेचने के लिए 2005 में चोरी छिपे सौदा हुआ। विरोध होने पर कंपनी को घाटे में दिखाया गया। यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया अब गहरे संकट में है। कर्मचारियों का दो से तीन माह का वेतन बकाया है। तीन साल का बोनस, एलटीए और लीव इनकैशमेंट नहीं मिला है। संस्था के करीब 900 कर्मचारियों में से प्रत्येक का कम से कम एक लाख रुपया बकाया है। कर्मचारी यूनियन और यूएनआई बोर्ड की मिलीभगत से सुधार के बड़े-बड़े दावे किए गए। महाप्रबंधक और मुख्य संपादक बने भोपाल के पूर्व ब्यूरो चीफ अरुण कुमार भंडारी के छह माह के कार्यकाल में हालात और खराब हुए हैं। सितंबर 08 तक यूएनआई के ज्यादातर दफ्तरों में एक माह का वेतन बकाया था, मगर अब कर्मचारी त्योहार के पहले दिसंबर 08 के वेतन की बाट जोह रहे हैं। अपनी गद्दी महफूज रखने के लिए यूनीवार्ता के संपादक अशोक शर्मा को हटाने और मुंबई ट्रांसफर के खौफ से यूएनआई संपादक सनी अब्राहम से जबरन इस्तीफा ले चुके एके भंडारी ने खौफ का माहौल बनाने के लिए पिछले पांच महीने में 47 तबादले किए हैं। इनमें से ज्यादातर दूरदराज के स्थान पर किए गए और बाद में रिक्वेस्ट ट्रांसफर के नाम पर कंपनी के दिल्ली मुख्यालय में हुए हैं।
आठ लाख रुपये महीना के नए ग्राहक लाने के दावे के साथ गद्दीनशीं हुए भंडारी ने कभी जल्द अंतरिम राहत देने, एक माह में वेतन को ढर्रे पर लाने, केंद्रीय सूचना मंत्री आनंद शर्मा से निकटता का हवाला देकर बीस करोड़ रुपये का पैकेज लाने, मध्य प्रदेश सरकार से दो करोड़ रुपये का साफ्ट लोन लेने और छत्तीसगढ़ सरकार से संस्था के लिए एक करोड़ रुपये का ऋण जुटाने का दावा किया। इस बीच उर्दू सेवा के प्रमुख शेख मंजूर अहमद, यूनीवार्ता संपादक अशोक शर्मा, यूएनआई के संयुक्त संपादक नीरज वाजपेयी, मुंबई के ब्यूरो प्रमुख पी विजय कुमार, लखनऊ के ब्यूरो प्रमुख सुरेंद्र दुबे को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हुए भंडारी पैदल कर चुके हैं। यूनीवार्ता में शोभना जैन को ब्यूरो प्रमुख और यूनियन के चहेते अरुण केसरी को समाचार समन्वयक बनाने के फैसले की तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। विरोध करने वाले वरिष्ठ समाचार संपादक नरेश सिंह का तबादला मध्य प्रदेश के बिना दफ्तर वाले शहर जबलपुर और रवि चतुर्वेदी का मुंबई किया गया ताकि कर्मचारियों में भय बढ़े। बाद में यूनियन के जरिए इन तबादलों को रोकने का ड्रामा स्टेज किया गया। वेतन के लिए कंपनी के दिल्ली मुख्यालय में हाय-हाय मची है। कोढ़ में खाज यह कि कर्मचारियों ने अपनी गाढ़ी कमाई से बचत करके यूएनआई के लिए जो करीब एक करोड़ रुपये जोड़े, वह कंपनी पर बकाया है। कर्मचारियों का ध्यान डाइवर्ट करने के लिए उन्हें आपस में लड़ाया जा रहा है।
इस खबर पर आपकी प्रतिक्रिया, प्रतिवाद और सुझाव का स्वागत है। इसके लिए [email protected] पर मेल करें।