भारतीय भाषा परिषद के नए निदेशक और संपादक की तलाश पूरी हो गई है। दौड़ में आगे चल रहे हरीश पाठक को पटखनी देते हुए विजय बहादुर सिंह ‘किंग’ बन गए है। वे 22 या 23 अक्टूबर को कोलकाता में कार्यभार ग्रहण करेंगे। इस संस्था की चर्चित पत्रिका वागर्थ में संपादक के रूप में विजय बहादुर सिंह का नाम जनवरी से जाएगा। दिसंबर तक कुसुम खेमानी और एकांत श्रीवास्तव ही इसके संपादक रहेंगे। कुसुम खेमानी भारतीय भाषा परिषद की सचिव हैं। वे इस संस्था की मालकिन भी हैं। साहित्यकार एकांत श्रीवास्तव केंद्र सरकार में सेवारत होने के नाते अंशकालिक संपादक के रूप में मैग्जीन से जुड़े हैं। एकांत ने वागर्थ से इस्तीफे का नोटिस दे रखा है। वे दिसंबर माह में कार्यमुक्त हो जाएंगे।
रवींद्र कालिया के ज्ञानपीठ में जाने के चलते भारतीय भाषा परिषद के निदेशक का पद खाली चल रहा था। तभी से परिषद का प्रवर मंडल नए निदेशक की तलाश में था। प्रवर मंडल में केदारनाथ सिंह, सुनील गंगोपाध्याय, इंदुनाथ चौधरी, डी जयकांतन जैसे दिग्गज साहित्यकार हैं। सूत्रों का कहना है कि प्रवर मंडल इस बार निदेशक और संपादक के रूप में अपेक्षाकृत युवा और तेज तर्रार व्यक्ति को लाना चाहता था, जो साहित्य-पत्रकारिता का लंबा अनुभव रखता हो। पहला नाम आया चित्रा मुदगल का। चित्रा ने अपनी विवशता और व्यस्तता बताकर निदेशक बनने से इनकार कर दिया। विवशता ये कि वे दिल्ली से बाहर नहीं जाना चाहती। उन्हें निदेशक के रूप में कोलकाता में काम करना पड़ता। व्यस्तता ये कि वो हिंदी की बड़ी लेखिका होने के साथ कई पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी निभा रहीं हैं, जिससे अलग हो पाना उनके लिए मुश्किल था। चित्रा मुदगल और परिषद के पूर्व निदेशक प्रभाकर श्रोत्रिय ने नए निदेशक और संपादक के लिए हरीश पाठक का नाम सुझाया। 30 वर्षों से साहित्य व पत्रकारिता में सक्रिय हरीश पाठक कई बड़े अखबारों और मैग्जीनों के संपादक रह चुके हैं। हरीश पाठक से कई दौर की बातचीत के बाद उनका निदेशक बनना तय माना जा रहा था। पर इसी बीच समीकरण बदलने लगे।
साहित्य के दिग्गजों की तरफ से नए मोहरे मैदान में लाए जाने लगे। विख्यात साहित्यकार ज्ञानरंजन की तरफ से रविभूषण और हिंदी के विद्वान कमला प्रसाद पांडेय व अन्य की ओर से विजय बहादुर सिंह का नाम नए निदेशक और संपादक के रूप में प्रवर मंडल के आगे पेश किया गया। बताते हैं कि वागर्थ के अंशकालिक संपादक के पद से इस्तीफा देने के बाद एकांत शांत नहीं बैठे। वे गुपचुप रूप से सक्रिय रहे। सूत्रों का कहना है कि परिषद की सचिव कुसुम खेमानी के करीबी एकांत ने अपने गुरु विजय बहादुर सिंह की पैरवी की। कुसुम खेमानी के चलते अंततः विजय बहादुर सिंह ‘किंग’ बन गए। प्रवर मंडल के ज्यादातर सदस्यों में हरीश पाठक के नाम पर बनी सहमति परवान न चढ़ सकी। सूत्रों का कहना है कि विजय बहादुर सिंह के अधीन ही एकांत श्रीवास्तव ने विदिशा से पीएचडी की है और एक तरह से उन्होंने अपने गुरु को निदेशक बनवाकर गुरु ऋण से उऋण होने का दायित्व निभाया।
परिषद की सचिव कुसुम खेमानी ने भड़ास4मीडिया को बताया कि विजय बहादुर जी जैसा प्रतिष्ठित विद्वान नए निदेशक के रूप में नियुक्त किए गए हैं। उनके नेतृत्व में वागर्थ में काम होगा। कुसुम ने कहा कि अभी तक निदेशक ही संपादक के रूप में काम देखते रहे हैं, इसलिए विजय बहादुर जी से आग्रह किया गया है कि वे भी इस परंपरा को आगे बढ़ाएं। वे जब कोलकाता आ जाएंगे तो जैसा भी कहेंगे, वैसा किया जाएगा।
साहित्यकार एकांत श्रीवास्तव ने भड़ास4मीडिया को बताया कि कुसुम जी और वे दिसंबर तक मैग्जीन के संपादक के रूप में काम देखेंगे। जनवरी से मैग्जीन के संपादक विजय बहादुर सिंह हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि यह केवल संयोग मात्र है कि जिन्हें निदेशक चुना गया, वे उनके गुरु रहे हैं। उन्होंने विजय बहादुर को निदेशक बनवाने में खुद की सक्रिय भूमिका से इनकार किया।
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हरीश पाठक का कहना है कि उन्हें विजय बहादुर सिंह को नया निदेशक और संपादक बनाए जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। यह पूछे जाने पर कि क्या आप निदेशक पद की दौड़ में थे और आपको पटखनी मिली, उनका कहना था कि इस बारे में उन्हें कुछ नहीं कहना। उन्हें लिखित रूप से अभी तक कुछ भी नहीं बताया गया है इसलिए वे पूरे मामले पर कुछ भी नहीं कहना चाहते।
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