Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

व्यंग्य को अब आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं

लखनऊ में हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न : ‘हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर है?’ इस विषय पर उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुये विसंगतियों के विरुद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिये, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं।

<p align="justify"><strong>लखनऊ में हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न : </strong>'हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर है?' इस विषय पर उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुये विसंगतियों के विरुद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिये, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं।</p>

लखनऊ में हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न : ‘हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर है?’ इस विषय पर उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुये विसंगतियों के विरुद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिये, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं।

राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरुआत प्रख्यात व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना की चर्चा से हुयी। श्री सक्सेना का कहना था कि हिन्दी आलोचना को अब व्यंग्य विधा को गंभीरतापूर्वक लेना चाहिये। अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं है। व्यंग्य लेखन अपने उस मुकाम पर पहुंच गया है जिसमें राजनीति, समाज एवं शिक्षा जैसे सभी पहलुओं को अपने दायरे में ले लिया है। अब वह किसी आलोचना का मोहताज नहीं है।

यह गोष्ठी राय उमानाथ बली प्रेक्षागार के जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित की गयी थी जिसमें गिरीश पंकज, अरविन्द तिवारी, बुद्धिनाथ मिश्र, विद्याबिन्दु सिंह, डा. महेन्द्र ठाकुर, वाहिद अली वाहिद, अरविन्द झा, सौरभ भारद्वाज, आदित्य चतुर्वेदी, पंकज प्रसून, श्रीमती इन्द्रजीत कौर नरेश सक्सेना, महेश चन्द्र द्विवेदी, एवं अन्य प्रमुख लेखकों ने अपने विचार प्रकट किये। गोष्ठी का समापन माध्यम के महामंत्री श्री अनूप श्रीवास्तव के धन्यवाद प्रकाश से हुआ। इससे पूर्व संस्था के उपाध्यक्ष श्री आलोक शुक्ल ने आशा प्रकट की कि प्रस्तुत संगोष्ठी के माध्यम से व्यंग्य लेखन को उसका आपेक्षित सम्मान मिल सकेगा।

अपने अध्यक्षीय उदबोधन में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष और सुविख्यात व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्यकार लेखन करते रहें, एक न एक दिन आलोचना उनकी ओर आकर्षित होगी। उन्होंने नये व्यंग्यकारों से आग्रह किया कि वे समाज की बेहतरी के लिये लिखते रहें और आलोचना की परवाह न करें। अट्टहास शिखर सम्मान से नवाजे गये डा. शेरजंग गर्ग का कहना था कि आज जितने भी व्यंग्यकार स्थापित हैं वे अपनी गंभीर लेखनी के कारण ही प्रतिष्ठित हैं। आलोचकों की कृपा पर नहीं हैं। कवि आलोचक नरेश सक्सेना ने नागार्जुन की व्यंग्य का जिक्र करते हुये व्यंग्य की शक्ति प्रतिपादित की।

हिन्दी संस्थान के निदेशक डा. सुधाकर अदीब का कहना था अगर व्यंग्य लेखन में गुणवत्ता का ध्यान रखा जाय तो हमें आलोचना से घबराना नहीं चाहिये। श्री महेश चन्द्र द्विवेदी का कहना था कि हास्य और व्यंग्य अलग-अलग हैं, इनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। श्री सुभाष चन्दर, जिन्होंने व्यंग्य का इतिहास लिखा है, का कहना था कि व्यंग्य लेखन को दोयम दर्जे का साहित्य समझा जाता रहा है लेकिन हिन्दी के संस्थापक सम्पादक स्व. बाल मुकुन्द गुप्त ने लिखा है कि मैंने व्यंग्य के माध्यम से लोहे के दस्ताने पहनकर अंग्रेज नाम के अजगर के मुंह में हाथ डालने का प्रयास किया था। आवश्यकता इस बात की है कि हम व्यंग्य के सौन्दर्य शास्त्र को समझें और आलोचना की समग्र पक्षों के अनुरूप व्यंग्य लेखन का विकास हो।

हरिशंकर परसाई पुरस्कार से विभूषित सुश्री अलका पाठक ने कहा- व्यंग्य की आलोचना अनुचित है हम असंभव लेखन को भी संभव करके अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। श्री अरविन्द तिवारी का कहना था कि व्यंग्य के माध्यम से हम आम जनता का ध्यान तमाम विषयों पर दिला पाते हैं। श्री बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा- व्यंग्य कोई नयी विधा नहीं है, यह विदूषकों की परम्परा रही है। व्यंग्य को निंदारस मानना गलत होगा। वास्तव में यथार्थ की विद्रूपता पर आक्रोश व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। श्री गोपाल मिश्र का कहना था कि अच्छा व्यंग्य छोटा साहित्य होता है अत: इसे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है।

डा. महेन्द्र कुमार ठाकुर का कहना था कि हम व्यंग्यकार हैं और हमें अपने साहित्यिक शिल्प को मजबूत करने की आवश्यकता है। श्री वाहिद अली वाहिद का कहना था कि व्यंग्य हमारी परम्परा में रहा है और नई पीढ़ी को इसे आगे बढ़ाना चाहिये। श्री रामेन्द्र त्रिपाठी का कहना था कि व्यंग्यकार मूलत: आलोचक ही है इसकी लोकप्रियता ही इसकी सफलता का मापदण्ड बनता है। श्री आदित्य चतुर्वेदी के विचार मे समाज के सुधार में व्यंग्य की प्रमुख भूमिका है। श्री भोलानाथ अधीर के विचार में लेखक का दायित्व है कि वह समाज की कमियों को उजागर करे और उन पर प्रहार करे इसके लिये व्यंग्य एक सशक्त माध्यम है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement