मैं विशु प्रसाद, कल तक जागरण में काम कर रहा था, आज संपादक संत शरण अवस्थी की सनक का शिकार हुआ और मेरी पीड़ा भड़ास4मीडिया में आयी तो संत शरण जी ने अपने स्तर से मेरे खिलाफ कीचड़ उछालने का अभियान शुरू कर दिया है. अरविन्द शर्मा के माध्यम से उन्होंने मेरे चरित्र हनन का जो गन्दा प्रयास किया है, उसकी असलियत जागरण के मालिकों के सामने बहुत जल्द ही खुलेगी. आज मैं भडास4मीडिया के माध्यम से सन्तु भैया की चापलूसी कर रहे अरविन्द शर्मा के बारे में कुछ ऐसी बातें बताऊँगा, जिससे लोगों को साफ समझ में आ जायेगा की अरविन्द शर्मा आखिर क्यूँ एक सनकी और बददिमाग संपादक का पक्ष ले रहे हैं. असल में अरविन्द शर्मा को मेरे निकाले जाने के प्रकरण में कोई जानकारी हो या नहीं, उन्हें ये जानकारी है कि उन्हें किसके ऊपर गलत सलत आरोप लगाने से कैसी नौकरी मिलेगी और कैसे उन्हें दोबारा रांची में मनमर्जी करने का मौका मिलेगा. कहा जाता है कि आप किसी पर आरोप लगायेंगे तो आपके पाप छुप नहीं जायेंगे.
अरविन्द शर्मा ने मुझे पियक्कड़ कहा है, क्या अरविन्द शर्मा ये बता सकते हैं कि कभी काम के दौरान उन्होंने मुझे पीया हुआ देखा है. क्या कोई आदमी पी कर अपना काम बिलकुल सटीक तरीके से कर सकता है? क्या अरविन्द शर्मा ने कभी मुझे दफ्तर में पी कर गिरा हुआ पाया था? क्या अरविन्द शर्मा ने कभी मेरी पी कर काम करने की शिकायत प्रबंधन से की थी? अगर उन्होंने मेरे पी कर काम करने की शिकायत नहीं की तो क्यूँ नहीं की? क्या उन्हें संस्थान की इज्ज़त का ख्याल नहीं था? क्या उन्हें संपादक जी के संज्ञान में ये बात नहीं देनी चाहिए थी? दरअसल वह झूठ बोलते हैं. वह संस्थान में कभी भी इस स्थिति में ही नहीं थे कि किसी की शिकायत कर सकते या कोई उनकी शिकायत सुनता. वो बताते हैं कि वो रांची जागरण में नंबर दो कि स्थिति में थे, लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें निकाले जाने कि सारी तैयारी की जा चुकी थी और वे दो साल से लगातार नौकरी ढूंढ रहे थे.
उनके शब्दों में ही- ‘संत शरण जी के वे शिकार नहीं हुए, जबकि अन्य लोग हो गए’, यहीं साबित होता है कि अरविन्द शर्मा जो कह रहे हैं और जो हकीकत है, उसमें उन्हीं की जबान फिसल जा रही है. उनके सन्तु भैया की मेहरबानी इसलिए उन पर बनी थी, क्यूंकि संपादक के रूप में रांची आने से पूर्व संपादक ज्ञानेश्वर जी के बैड बुक में अरविन्द शर्मा नंबर वन पर थे. इनसे सारी बीटें छीन ली गईं थीं और नौकरी तलाशने का अल्टीमेटम दे दिया गया था. इसके पीछे कई कारण थे जिसका उल्लेख फिलहाल नहीं करना चाहूंगा. इनके बारे में मैं कई उदाहरण दे सकता हूं. कई बातें बता सकता हूं. लेकिन अभी कुछ नहीं कहूंगा. सिर्फ इतना कहूंगा कि कई काम हैं जिसके लिए अरविन्द शर्मा को सन्तु भैया की सख्त जरूरत है. इसी का नतीजा यह है कि वो सब कुछ भूल कर अपने सन्तु भैया की चापलूसी में जुट गए हैं. ऐसी स्थिति में अगर कोई संपादक की चापलूसी में किसी अदने से कर्मचारी को पियक्कड़ घोषित कर दे तो आश्चर्य नहीं. वैसे मेरे चरित्र के बारे में सम्पूर्ण जागरण परिवार जानता है और मुझे किसी से कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है.
अरविन्द शर्मा ने एक और बात कही है कि वो रांची, जागरण में स्टेट ब्यूरो में बतौर चीफ रिपोर्टर काम करते हुए हीरो बने रहे, अब बताइए कि क्या अरविन्द शर्मा ने नशे में यह बात लिख दिया कि वो ब्यूरो में चीफ रिपोर्टर थे, जबकि जागरण ब्यूरो में केवल एक ब्यूरो चीफ होता है और शेष सभी ब्यूरो संवाददाता होते हैं. चीफ रिपोर्टर का कोई पद ही नहीं होता है और यह भी बताना ज़रूरी है कि वो न तो कभी चीफ रिपोर्टर रहे, न ही कभी ब्यूरो चीफ रहे और न ही कभी मुख्यमंत्री और राज भवन का बीट ही देखा. अलबत्ता उन्होंने विधानसभा की डायरी में अपना नाम समाचार समन्वयक के रूप में लिखवा दिया था, जिसके चलते सभी रिपोर्टरों के सामने उनके सन्तु भैया ने उन्हें न जाने क्या-क्या कहा था.
अब अंत में एक और बात बताना चाहता हूं. अरविन्द जी ने एक बात कही है कि उन्होंने उदय चौहान को निकाल दिया था. यह बात काबिलेगौर है कि जागरण में किसी को निकालने और घुसाने का अधिकार केवल प्रबंधन को है, न कि किसी रिपोर्टर को. अगर उन्हें निकलवा कर या किसी प्रकार कथित तौर पर निकाल कर उन्होंने उदय चौहान को कहीं और काम दिलवाया भी, तो क्या ये संस्थान हित में था? बातें बहुत कुछ हैं कहने को, जो एक चिट्ठी में ख़त्म नहीं होने वाली.