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और वाकई खामोश हो गया वर्ल्ड स्पेस रेडियो

[caption id="attachment_16643" align="alignleft"]अपने घर में रेडियो सुनते लेखक संजय कुमार सिंह.अपने घर में रेडियो सुनते लेखक संजय कुमार सिंह.[/caption]दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बहुत दिनों बाद एक ऐसा मेल आया जिसने मुझे बेहद निराश किया और इसमें दी गई सूचना पर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था। सूचना यह थी कि वर्ल्डस्पेस इंक की भारतीय सहायिका मेरे प्रिय रेडियो चैनल फरिस्ता और अपने अन्य चैनलों का प्रसारण 31 दिसंबर से बंद कर देगी। मैंने यह जानकारी अपने एक पत्रकार मित्र को दी उसने पता करके बताया कि खबर सही है, प्रकाशित खबर का लिंक भी दिया – वह खबर कई संबंधित लोगों से बात करके लिखी गई थी। फिर भी लग रहा था कि 31 दिसंबर से पहले कुछ न कुछ होगा और प्रसारण बंद नहीं होगा। वह भी तब जब इसकी मूल कंपनी के दिवालिया हो जाने से संबंधित मार्च और अगस्त में आई खबरों का अनुवाद मैंने ही किया था तथा वर्ल्ड स्पेस के ग्राहकों को ई मेल से भेजी गई सूचना में प्रसारण बंद होने का यही कारण बताया गया था। भारत में इस रेडियो के ब्रांड एम्बैसडर एआर रहमान हैं और अंग्रेजी में इसके विज्ञापन का कामचलाऊ अनुवाद होगा, “सुनने के लिए बहुत कुछ है।” जी हां, इस रेडियो के 40 चैनल थे और इन पर सुनने के लिए इतनी चीजें उपलब्ध थीं कि बता नहीं सकता। मैं एक ही चैनल सुनता था और सुनते-सुनते उसकी आदत लग गई थी, इसका पता अब चल रहा है। पूर्व सूचना होने के बावजूद 31 दिसंबर की सुबह रोज की तरह कंप्यूटर ऑन करने के बाद रेडियो ऑन किया तो प्रसारण बंद था। तब जाकर अहसास हुआ कि 31 दिसंबर से – का मतलब 31 दिसंबर की सुबह या शायद 30 दिसंबर की रात से ही था।

अपने घर में रेडियो सुनते लेखक संजय कुमार सिंह.

अपने घर में रेडियो सुनते लेखक संजय कुमार सिंह.दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बहुत दिनों बाद एक ऐसा मेल आया जिसने मुझे बेहद निराश किया और इसमें दी गई सूचना पर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था। सूचना यह थी कि वर्ल्डस्पेस इंक की भारतीय सहायिका मेरे प्रिय रेडियो चैनल फरिस्ता और अपने अन्य चैनलों का प्रसारण 31 दिसंबर से बंद कर देगी। मैंने यह जानकारी अपने एक पत्रकार मित्र को दी उसने पता करके बताया कि खबर सही है, प्रकाशित खबर का लिंक भी दिया – वह खबर कई संबंधित लोगों से बात करके लिखी गई थी। फिर भी लग रहा था कि 31 दिसंबर से पहले कुछ न कुछ होगा और प्रसारण बंद नहीं होगा। वह भी तब जब इसकी मूल कंपनी के दिवालिया हो जाने से संबंधित मार्च और अगस्त में आई खबरों का अनुवाद मैंने ही किया था तथा वर्ल्ड स्पेस के ग्राहकों को ई मेल से भेजी गई सूचना में प्रसारण बंद होने का यही कारण बताया गया था। भारत में इस रेडियो के ब्रांड एम्बैसडर एआर रहमान हैं और अंग्रेजी में इसके विज्ञापन का कामचलाऊ अनुवाद होगा, “सुनने के लिए बहुत कुछ है।” जी हां, इस रेडियो के 40 चैनल थे और इन पर सुनने के लिए इतनी चीजें उपलब्ध थीं कि बता नहीं सकता। मैं एक ही चैनल सुनता था और सुनते-सुनते उसकी आदत लग गई थी, इसका पता अब चल रहा है। पूर्व सूचना होने के बावजूद 31 दिसंबर की सुबह रोज की तरह कंप्यूटर ऑन करने के बाद रेडियो ऑन किया तो प्रसारण बंद था। तब जाकर अहसास हुआ कि 31 दिसंबर से – का मतलब 31 दिसंबर की सुबह या शायद 30 दिसंबर की रात से ही था।

जो लोग वर्ल्ड स्पेस के बारे में नहीं जानते उन्हें बताता चलूं कि लोकप्रिय फिल्म, “लगे रहो मुन्नाभाई” में बंगलौर के इसके दफ्तर का दृश्य था और यह भारत का अकेला ऐसा रेडियो था जिसकी ग्राहकी लेनी पड़ती थी यानी सुनने के लिए पैसे देने पड़ते थे। बिना विज्ञापन, 24 घंटे चलने वाले इस रेडियो का प्रसारण सुनने के लिए आपको अलग रिसीवर लेना होता था जिसकी कीमत 2500 रुपए से 7500 के बीच थी। अब जब इस रेडियो का प्रसारण बंद हो गया है तो इसका कारण चाहे जो बताया जाए, इस रेडियो के प्रशंसक और श्रोता के रूप में मैं कह सकता हूं कि इसका कोई विकल्प नहीं है। आमतौर पर लोग मुझसे कहते थे कि पुराने गाने ही सुनने हैं तो ग्राहकी के पैसे देने और विशेष रिसीवर खरीदने का झंझट क्यों रखा जाए। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस रिसीवर का अच्छा और बेहतर काम करने वाला एंटीना टेलीविजन के पुराने एंटीना का छोटा रूप है और मैंने अभी हाल में 1000 रुपए से ज्यादा खर्च करके बेहतर गुणवत्ता वाला प्रसारण हासिल करने के लिए यह एंटीना लगवाया था। मैंने अपनी ग्राहकी का नवीकरण भी कुछ महीने पहले 12 महीने के पैसे देकर 14 महीने के लिए करवाया था।

वर्ल्ड स्पेस रेडियो के ग्राहकों को भेजी गई सूचना के मुताबिक, “प्रसारण बंद करने की कार्रवाई वर्ल्ड स्पेस इंडिया की मूल कंपनी वर्ल्ड स्पेस इंक की आर्थिक समस्याओं के कारण है जो अक्तूबर 2008 से  दिवालिया कानून के संरक्षण में है और वर्ल्ड स्पेस की अधिकांश अंतरराष्ट्रीय परिसंपत्तियों के भावी खरीदार ने भारत में ग्राहकी आधारित इसके कारोबार से संबंधित परिसंपत्तियों को नहीं खरीदने का निर्णय किया है। नतीजतन, वर्ल्डस्पेस इंक को भारत में अपना ग्राहकी कारोबार बंद करना पड़ेगा। ग्राहकी का आपका करार अमेरिकी कंपनी वर्ल्ड स्पेस इंक के साथ है जो अमेरिका में दिवालिया कार्यवाही के तहत है। कंपनी मानती है कि आपने सेवा रेडियो सुनने के लिए संजय कुमार सिंह के घर में लगा एंटीना.बंद किए जाने की तारीख के बाद तक की ग्राहकी ली होगी, पर वह अनुपयुक्त अवधि के लिए ग्राहकी धनराशि में से कुछ भी वापस करने की स्थिति में नहीं है। संभावना है कि आपके पास अमेरिकी दिवालिया करार के तहत राहत की कोई संभावना हो – इसका मकसद दिवालिया कंपनी के कर्जदाताओं की रक्षा करना है….।”

इस सूचना के साथ ग्राहकों से आवश्यक जानकारी मांगी गई है और यह विडंबना ही है कि वर्ल्डस्पेस मुख्यालय में सारी सूचना किसी राकेश राघव को भेजी जानी है जो निश्चित रूप से भारतीय या भारत मूल के होंगे। ग्राहक के रूप में मैंने वर्ल्डस्पेस इंक को जो दिया है उसका मुझे उतना अफसोस नहीं है जितना इसकी सेवा बंद होने का है। मेरे जैसे कई लोग होंगे जो ज्यादा शुल्क देकर भी चाहेंगे कि यह सेवा जारी रहे। ऐसे में इस संभावना को भी टटोला जाना चाहिए कि अलग किस्म की यह सेवा कैसे चलती रह सकती है। वर्ल्डस्पेस का प्रसारण सुनते हुए मैं इसके प्रसारणकर्ताओं और आरजे के ज्ञान का भी कायल हो गया हूं। अंग्रेजी-हिन्दी में समान दक्षता रखने वाले कई कार्यक्रम प्रस्तोताओं को हिन्दी गानों, फिल्मों, निर्माताओं और अन्य लोगों के बारे में ऐसी जानकारी थी जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। पुरानी हिन्दी फिल्मों के शानदार गीतों के भिन्न कार्यक्रमों के साथ इसका एक कार्यक्रम नौ दो ग्यारह खासतौर से उल्लेखनीय है। इसमें ऐसे पुराने गाने बजाये जाते थे जो अच्छे होने के बावजूद नौ दो ग्यारह हो रहे हैं, शायद आज के एफएम चैनलों के कारण, जिनमें एक का प्रचार है, “घिसे पिटे गानों के शौकीन, यह आपके लिए नहीं है, आज का रेडियो है, आपके बाप के जमाने का नहीं।”

दूसरी ओर, वर्ल्ड स्पेस का स्लोगन है, “अगर आप संगीत प्रेमी हैं तो आपके पास वर्ल्ड स्पेस क्यों नहीं है?” मैं तो वर्ल्ड स्पेस रेडियो के एक ही चैनल का शौकीन हूं इसके 40 चैनलों के न जाने कितने शौकीनों को नए साल में बेहद निराशा हुई होगी। पता नहीं, इन चैनलों के लिए काम करने वाले ढेरों प्रतिभाशाली आरजे और कार्यक्रम प्रस्तुत करने वालों की नौकरी का क्या होगा? और हां, मुझे अपने जमाने का रेडियो चाहिए, कहां मिलेगा, कोई बता सके तो जरूर बताए। कृपया यह न बताएं कि एमपी थ्री सीडी सुन लूं। सीडी लगाना, बदलना, संभालना …. कम लफड़ा नहीं है।”

लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. इन दिनों वे अनुवाद का काम बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। उनसे संपर्क [email protected] या 9810143426 के जरिए कर सकते हैं.

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