घर से छोड़कर बार-बार बाहर जाने का एक लाभ मिला कि मुझे तमाम चीजों की अनायास जानकारी हो गई जिसके लिए लोगों को सालों किताबों में सिर खपाना पड़ता है। इमरजेंसी खत्म होने के बाद कलकत्ता से आनंदबाजार पत्रिका समूह ने हिंदी में अपना पहला प्रयोग किया साप्ताहिक रविवार निकाल कर। निकलते ही रविवार ने धूम मचा दी। हम लोग पूरा हफ्ता इंतजार करते कि रविवार कब आएगा। सुरेंद्र प्रताप सिंह और उदयन शर्मा स्टार बन चुके थे।
उन दिनों कानपुर में अर्जक संघ ने हड़कंप मचा रखा था। शंबूक वध के बहाने यह संघ पिछड़ों में अपनी साख मजबूत कर रहा था। इसके संस्थापक अध्यक्ष रामस्वरूप वर्मा ने ब्राह्मणों के खिलाफ एक समानांतर पौरोहित्य खड़ा कर दिया था। मैने एक स्टोरी लिखी अर्जक संघ उत्तर प्रदेश का डीएमके। अगले ही हफ्ते वह रविवार में छप गई। रविवार में छपने के बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। बस कुछ वर्षों की फ्रीलांसिंग, इसके बाद दैनिक जागरण फिर जनसत्ता और यहां से अमर उजाला तक का रास्ता मुझे कभी असहज नहीं प्रतीत हुआ।
स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी तब मेरठ में बैठते थे। मैं उनसे जाकर मिला तो उन्होंने सीधे कानपुर में जाकर संपादकीय प्रभार संभालने को कह दिया। यह थोड़ा मुश्किल काम था क्योंकि मैं उस शहर में संपादक बनकर नहीं जाना चाहता था जहां हर छोटा बड़ा आदमी मुझे जानता था। ज्यादातर राजनेता या तो मेरे साथ पढ़े हुए थे अथवा आगे पीछे थे। लेकिन किसी को पहचानने में अतुलजी मात नहीं खाते थे। बोले नहीं वहीं जाइए आप शुक्ला जी मुझे पूरी उम्मीद है आप खरे उतरेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार.