यूपी में पत्रकारों का उत्पीड़न का कोई अंत नहीं दिख रहा है. समाजवादी सरकार में कलम की स्वतंत्रता को बाधित करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. कहीं पत्रकारों को पुलिस फर्जी तरीके से फंसा रही है तो कहीं उन्हें फंसाने की धमकी दी जा रही है. पत्रकारों की बेइज्जती तो इस सरकार में आम होती जा रही है. दो-तीन दिन पहले रायबरेली में यूपी पुलिस की गुंडागर्दी का विरोध करने वाले पत्रकारों को पुलिस ना सिर्फ गांलियां दी बल्कि जमकर लाठियां भी भांजी. अपनी ही वर्दी खुद फाड़कर पत्रकारों को फंसाने की धमकी दी गई. वो इसलिए कि कोतवाल प्रदेश सरकार में किसी बड़े आदमी का चहेता है. एसपी ने भी पत्रकारों पर लाठियां भांजने का आदेश देकर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे पत्रकारों का मुंह बंद करवाने की कोशिश की.
इसके पहले प्रदेश में पत्रकारों का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है. पुलिस ने बिना जांच किए झांसी में आजतक के रिपोर्टर अमित श्रीवास्तव पर मामले दर्ज कर लिए. वो भी इसलिए कि अमित ने पुलिस की पोल खोली थी, जिससे वे लोग नाराज थे. उरई में भी पुलिस ने बलात्कार के एक आरोपी को बचाने के लिए 13 पत्रकारों के खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया ताकि इन लोगों को दबाव में लिया जा सके. गोरखपुर के एसएसपी ने अमर उजाला के पत्रकार को सरेआम लाठियों से पीटा लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके अलावा भी प्रदेश में तमाम जगहों पर पत्रकारों को विभिन्न तरीकों से उत्पीडि़त करने का कुत्सित प्रयास जारी है. इस सरकार ने बहुत ही अल्प समय में ही मायावती सरकार को पीछे छोड़ दिया है. ऐसा लग रहा है कि या पुलिस या तो निरंकुश हो गई है, जिसको सरकार से कोई डर नहीं है या फिर पत्रकारों का उत्पीड़न करने के लिए अखिलेश सरकार ने अपनी मूक सहमति दे रखी है. आप भी देखिए पत्रकारों पर पुलिस बर्बरता की तस्वीरें.