पत्रकारिता के गरिमामय पेशे में यह दिन भी आना था। जयपुर में हॉकर हड़ताल पर क्या गए कुछ अखबारों के प्रबंधन ने पत्रकारों पर हॉकरों का काम लादना शुरू कर दिया है। पुख्ता खबर है कि राजस्थान के एक प्रमुख अखबार ने अपने रिपोर्टरों को पचास-पचास कॉपियां बेचने का हुक्म जारी किया है। सिद्धांतों की पत्रकारिता का ढिंढोरा पीटने और आदर्श तथा मूल्यों का गुणगान करने वाले इस अखबार के प्रबंधन की इस नीति से पत्रकार मानसिक तौर पर परेशान और सदमे में हैं। मन में गुस्सा तो है परंतु मन मसोसने के अलावा और उनके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है।
एक पत्रकार के लिए सबसे बड़ा सहारा संपादक होता है और जब संपादक नाम की संस्था का अस्तित्व ही खत्म हो गया हो तब पत्रकार अपने को ठगा महसूस होने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं? पत्रकारों के लिए इस तरह का हुक्मनामा जारी होने से प्रतिद्वंद्वी अखबारों की पत्रकारों की हालत पतली हो चली है। उन्हें लग रहा है कि उनका प्रबंधन भी कहीं यही नीति उनके लिए लागू ना कर दे। दुर्घटना से सावधानी भली की तर्ज पर कुछ पत्रकारों ने तो झूठे बहाने बनाकर छुट्टियों पर जाना शुरू कर दिया है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता राजेंद्र हाड़ा की रिपोर्ट.