भ्रष्‍ट पत्रकारिता (11) : झूठे हलफनामे के सहारे सरकारी आवासों में जमें हैं कई पत्रकार

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लखनऊ। एक अनार सौ बीमार। यह कहावत पत्रकारों पर सटिक साबित हो रही है। सरकारी आवास पाने की आकांक्षा वाले पत्रकारों की लम्बी फेहरिस्त है। लेकिन राज्य सम्पत्ति विभाग की लापरवाही और सफेदपोश क्रीमीलेयर पत्रकारों की सरकारी आवासों पर अघोषित कब्जे की वजह से वास्तविक पत्रकार मारे-मारे घूम रहे हैं। जबकि सफेदपोश क्रीमीलेयर पत्रकारों ने सरकार से गोमती नगर में सब्सिडी प्लाट और आवास लेने के बाद कारोबार कर रहे हैं।

9 नवम्बर 2012 को पत्रकारों के आवास आवंटन और नवीनकरण के लिए प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री राकेश गर्ग और सचिव मुख्यमंत्री अनीता सिंह की अध्यक्षता में हुई राज्य सम्पत्ति विभाग की बैठक में तमाम निर्णय हुए। बैठक में 44 पत्रकारों के आवास आवंटन पर चर्चा हुई, जिन मान्यता प्राप्त पत्रकारों के आवास आबंटन का नवीनीकरण नहीं हुआ है, वे दुबारा प्रार्थना पत्र दें। गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को नोटिस देकर आवास खाली कराएं। मुख्यालय से बाहर स्थानांतरित पत्रकारों के आवास निरस्तीकरण किया जाए। जिन पत्रकारों का निधन हो गया है, उनके आश्रितों में यदि कोई मान्यता प्राप्त पत्रकार है, तो उनको छोड़कर सभी के आवास निरस्त करने के साथ ही सख्ती से खाली कराया जाए। चार माह बीत जाने के बावजूद राज्य सम्पत्ति विभाग ने इनमें से अधिकतर निर्णयों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकारी आवास पाने के लिए तमाम पत्रकारों ने झूठे हलफनामें दायर कर दिए हैं कि उनके पास निजी आवास नहीं हैं।

राज्य सम्पत्ति विभाग ने इन बातों को नजरअंदाज करते हुए दैनिक आज के चीफ रिर्पोटर सुरेश यादव को विधायक निवास ए-94 एक वर्ष के लिए आवंटित किया है। जबकि उन्‍होंने सरकार से पत्रकार कोटे के तहत गोमती नगर के विराज खण्ड में प्लाट संख्या डी 1/85 आवंटित करवा रखा है। राज्य सम्पत्ति विभाग ने सहारा चैनल के आलोक गुप्ता का एक वर्ष के लिए पार्क रोड स्थित आवास संख्या सी-9 नवीनीकरण किया गया है। उर्दू दैनिक सियासत जदीद के ब्यूरो चीफ मोहम्मद शब्बीर, एमएच वन चैनल के ब्यूरो चीफ प्रदीप विश्वकर्मा को 1/4 कैसरबाग कालोनी, सलार ए आवाज के संवाददाता नवाब सिद्दीकी बी-51 विधायक निवास, राष्ट्रीय स्वरूप के संवाददाता रहे शिवशरण सिंह का एमआईजी -27 अलीगंज, राष्ट्रीय सहारा के फोटोग्राफर दीपचंद गुप्ता का 1203 लाप्लास, सरदार टाइम्स के अफताब अहमद खां का विधायक आवास संख्या 2, दैनिक वारिस ए अवध के इफित्तदा भट्टी का आवास संख्या 45 विधायक निवास, वारिए ए अवध के लाल बहादुर सिंह का आवास 38, दैनिक सवेरा के सम्पादक कुमदेश चन्द्र का एक वर्ष के लिए नियमितीकरण किया गया है।

जबकि रोजनामा शफीर ए नव के संवाददाता अबरार अहमद फारूखी, टाइम्स ऑफ इंडिया की संवाददाता शैलवी शारदा से आवास खाली कराए जाने की संस्तुति की गई है। इसके साथ ही दैनिक सुल्तान ए अवध के सम्पादक जितेन्द्र सिंह, सियासत जदीद के सम्पादक मोहम्मद इरशाद इल्मी, दैनिक जागरण के सम्पादक रहे शशांक शेखर त्रिपाठी, उद्यमी राजधानी टाइम्स की सम्पादक प्रतिभा सिंह, सहारा न्यूज के प्रदेश प्रभारी पवन मिश्रा और वारिस ए अवध के सम्पादक आफिस बर्नी आवेदन पत्रों पर संशय होने के कारण यह निर्णय लिया गया कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग इस बात की पुष्टि करके बताए कि जिस संस्थान का हवाला दिया गया है कि उसमें कार्यरत हैं कि नहीं।

राज्य सम्पत्ति विभाग ने तमाम मान्यता प्राप्त पत्रकारों के प्रार्थना पत्र को खारिज किया है। जिसमें खोज इंडिया के ब्यूरो चीफ अभिलाष भट्ट, इंडिया टुडे के मनीष अग्निहोत्री, सहारा समय के राजेश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र सिंह सेंगर, एक्सप्रेस मीडिया सर्विस के जितेन्द्र शुक्ला, पीटीआई के संवाददाता अभिनव पाण्डेय, वीक एंड टाइम्स के संजय शर्मा, स्वतंत्र चेतना के उमेश चंद्र मिश्रा, दैनिक त्रिगुट के रजा रिजवी, इंडिया इनसाइट के शेखर श्रीवास्तव, साधना न्यूज चैनल के अनुराग शुक्ला, सहारा समय के संजीव सिंह, राहत टाइम्स के अजय शुक्ला, दैनिक सहाफत की संवाददाता श्रीमती सुमन हुसैन, लोहिया क्रांति के अरूण कुमार त्रिपाठी, राहत टाइम्स के अमित सक्सेना, साप्ताहिक मधुपाल टाइम्स की श्रीमती कुमकुम गुप्ता, लोक प्रिय इंडियन न्यूज के सम्पादक मोहम्मद जुबैर अहमद, राष्‍ट्रीय सहारा के राकेश कुमार सिंह, उपभोक्ता की दुनिया के शारदा प्रसाद पाठक, निषाद चेतना के सम्पादक जे.आर. निषाद, कमल समाचार पत्र के सम्पादक सुधीर कुमार सिंह, अवल्ल न्यूज के मोहम्मद वसीम, चर्चित राजनीति के संवाददाता संजय कुमार शर्मा, हिन्दी मीडिया सेंटर के सचिव सत्य प्रकाश सिंह, वारिस टाइम्स के एम.ए. वारसी और दैनिक किरण कमल के सम्पादक सुधीर कुमार सिंह हैं। राज्य सम्पत्ति विभाग ने प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री राकेश गर्ग की अध्यक्षता वाली बैठक के तमाम निर्णयों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार रजनीकांत वशिष्ठï ने कहा कि कुछ सफेदपोश पत्रकारों की वजह से पत्रकारिता में काफी गिरावट आई है। पूर्व में यह व्यवस्था थी कि जिन पत्रकारों के पास आवास नहीं होते थे, सरकार उनको सरकारी आवास उपलब्ध करा देते थे। इनमें से कई पत्रकारों ने गलत परम्परा डाल दी है। सरकार से सरकारी प्लाट और आवास लेने के बाद भी सरकारी आवासों पर कब्जा किए बैठे हैं। ऐसे लोगों को तत्काल सरकारी आवास खाली कर देने चाहिए। जिससे जरूरतमंद पत्रकारों को आवास मिल सके। जरूरतमंद पत्रकारों की लम्बी फेहरिस्त है। पत्रकारों के गलत आचरण की वजह से अब सरकार सिर्फ एक वर्ष के लिए आवास आवंटित करती है। मायाजाल में जकड़े कुछ पत्रकारों ने पत्रकारिता के साथ विश्वासघात तो किया ही, लेकिन राजनीतिक लाभ पाने के लिए अपनी निष्ठा, ईमान को दांव पर रखकर गिरगिट की तरह रंग बदला। ऐसे कई पत्रकार राजनीतिक दलों के चिहिन्त कार्यकर्ता बनने की उपलब्धि भी हासिल की। इसी उपलब्धि को नौकरशाही पर बेजा इस्तेमाल कर अकूत सम्पत्ति बनाई है।

त्रिनाथ के शर्मा की रिपोर्ट. यह रिपोर्ट दिव्‍य संदेश में भी प्रकाशित हो चुकी है.

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